Neera Aarya- नीरा आर्य- जेल में जब अंग्रेजो द्वारा मेरे स्तन काटे गए.

Neera Aarya : नीरा आर्य भारत वर्ष की आज़ादी पूरी दुनिया में सबसे विचित्र प्रकार की हैं। भारत की आज़ादी के बारे में कुछ बात बड़ा ही आश्चर्यजनक हैं जैसे की कहा जाता है "बिन खडग बिन ढाल गाँधी तूने कर दिया कमाल" इसका अर्थ यह हुआ की बिना किसी हिंसा के गाँधी जी आपने भारत को आज़ादी दिलाकर कमाल कर दिया। लेकिन क्या सही में बिना एक बून्द खून बहाए गाँधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन मात्र से भारत को आज़ादी मिली ?

भारत के पाठ्यपुस्तकों से पता चलता हैं की पूरी दुनिया में एकमात्र आज़ादी भारत की आज़ादी हैं जिसको बिना खडग बिना ढाल यानि की बिना हिंसा के एक क्रूर हिंसात्मक शासक(अंग्रेज) से प्राप्त किया गया हैं।  जबकि अन्य कई इतिहासकारो का कहना हैं की लाखो क्रांतिकारियों के प्राणो के बलिदान का परिणाम भारत की आज़ादी हैं।

तथ्यों पर ध्यान देने से पता चलता हैं की गुलामी काल में जिन्होंने अपने पेट और अपने स्वार्थ की चिंता से दूर सिमित संसाधन होते हुवे भी अंग्रेजो से स्वतंत्रता की लड़ाइ लड़ते हुवे अपने प्राण दे दिए उनको भुला दिया गया और जिन्होंने अंग्रेजो के साथ उनके महलो में लंच डिनर किया, उनके साथ हवाई जहाज पर घूमें।

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आज़ादी के नाम पर जिन लोगो ने लाठी तो छोड़िए तबियत से एक पत्थर भी अंग्रेजो की तरफ कभी नहीं उछाला उन्ही दो चार लोगो को भारत से अंग्रेजो को भगाने का श्रेय जानबूझ कर दिया गया। उन लोगो को भारत का बापू, चाचा, गुरुदेव, मदर आदि बना दिया गया।


अंग्रेजो ने सत्ता का हस्तारान्तरण इन्ही लोगो के हाथ में किया क्युकी यह लोग अंग्रेजो के प्रिये थे। बाद में यही लोग भारत पर राज किया और भारत के विकास को एक गलत दिशा दी। असली क्रन्तिकारीयो ने तो आज़ादी के बाद फूल या चाय बेच कर या भारत छोड़ कर  जीवन बिताया।असली स्वतंत्रता सेनानियों के सपने का भारत अभी अधूरा हैं  इसीलिए मै कहता हूँ भारत आज़ाद हैं यह सबसे बड़ा मजाक है।


जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अपना जान तक दिया अपनी दुनिया भारत को आज़ाद करने में लगा दिया उनका जीवन आज़ादी के बाद कभी सड़को पर फूल बेच कर बिता(नीरा आर्या) तो कही रेलवे पर चाय बेच कर(तात्या टोपे के वंशज) तो किसीका लाल किले के जेल में (वीर सावरकर) तो किसी को देश निकाला दे दिया गया(सुभाष बाबू) आखिर किस प्रकार की आज़ादी मिली हैं। कही भारत आज़ाद है यह सबसे बड़ा मजाक तो नहीं हैं।

नीरा आर्या उर्फ़ नीरा नागिन
नीरा आर्या उर्फ़ नीरा नागिन 

नीरा आर्य द्वारा लिखित आपबीती के कुछ अंश 

इन्हीं गुमनाम महान क्रांतिकारियों में से एक महिला क्रन्तिकारी नीरा आर्य की कहानी अत्यंत ही ह्रदय विदारक हैं। कथित आज़ादी के बाद नीरा जी का जीवन सड़क किनारे फूल बेचते हुवे बिता। नीरा आर्य की कहानी रूह को कपाने वाली हैं। नीरा आर्या को नीरा नागिन के नाम से भी जाना जाता हैं। नीरा को यह नाम सुभाष चंद्र बोस ने दिया था। नीरा आर्या और उनके भाई बसंत कुमार दोनों आज़ाद हिन्द फ़ौज के सिपाही थे।

नीरा नागिन और उनके भाई बसंत कुमार के जीवन पर कई लेख लिखे गए हैं। कई लोक गायको ने दोनों भाई-बहन के जीवन पर लोक गीत, काव्य संग्रह तथा भजन भी लिखे हैं। नीरा आर्या नीरा नागिन के नाम से प्रसिद्द हैं तथा इनके नीरा नागिन नाम से एक महाकाव्य की भी रचना की लेखकों द्वारा की गई हैं। नीरा आर्या का पूरा जीवन संघर्ष, थ्रिलर और सस्पेंस का मिश्रण हैं।

नीरा आर्य के जीवन पर एक मूवी निकलने की भी खबर कई बार आई हैं। नीरा आर्या एक महान देशभक्त, क्रन्तिकारी, जासूस, सवेदनशील लेखक, जिम्मेदार नागरिक, साहसी और स्वाभिमानी महिला थी। जिन्हे गर्व और गौरव के साथ याद किया जाता हैं। हैदराबाद की महिला नीरा आर्या को पेदम्मा कहते थे।

नीरा आर्या ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्राण की रक्षा के लिए सेना में अफसर अपने पति जयकांत दास की हत्या कर दी थी। मौका देखकर जयकांत दास ने सुभाष चंद्र बोस पर गोलियाँ दागी लेकिन वो गोली सुभाष बाबू के ड्राइवर को जा लगी लेकिन इस दौरान नीरा आर्या ने अपने पति जयकांत दास के पेट में खंजर घोप कर हत्या कर दी और सुभाष बाबू के प्राणो की रक्षा की।

अपने पति हत्या करने के कारण सुभाष बाबू ने नीरा आर्या को नागिन कहा था। आज़ाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब दिल्ली के लाल किले में मुक़दमे चला तब आज़ाद  हिन्द फौज के सभी सिपाही बरी कर दिए गए लेकिन नीरा आर्या अपने अंग्रेज अफसर पति की हत्या के आरोप में काले  सजा सुनाई गई तथा वह इन्हे घोर यातनाएँ दी गई। आज़ादी के बाद नीरा आर्या ने फूल बेच कर जीवन यापन किया।

नीरा आर्या के भाई बसंत कुमार ने भी आज़ादी के बाद सन्यासी बनकर जीवन यापन किया था। स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका पर नीरा आर्या ने अपनी आत्मकथा भी लिखी हैं। उर्दू लेखिका फरहाना ताज को नीरा आर्या ने अपने जीवन के अनेक प्रसंग सुनाये थे।  प्रसंगो के आधार पर फरहान ताज ने एक उपन्यास भी लिखा हैं,  आज़ादी के जंग में नीरा आर्या के योगदान को रेखांकित किया गया हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा  में काला पानी सजा के दौरान उनके साथ हुवे अमानवीय घटना के बारे में लिखा हैं की
           
 "मैं जब कोलकत्ता जेल से अंडमान के जेल में पहुँची, तो हमारे रहने का स्थान वही कोठरियाँ थी, जिनमे अन्य राजनितिक अपराधी महिला रही थी अथवा रहती थी।

हमें रात के 10 बजे कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कम्बल का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा। मन में चिंता होती थी इस गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, जहाँ अभी तो ओढ़ने बिछाने का ध्यान छोड़ने की आवश्यकता आ पड़ी हैं ?

जैसे-तैसे जमीं पर लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो कम्बल ले कर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेक कर चला गया। कम्बलो का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा लेकिन कम्बलो को पाकर संतोष भी आया।

अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था।

सूर्य निकलते ही मुझे खिचड़ी मिली और लोहार भी आ गया, हाथ का सांकल काटते समय चमड़ा भी कटा परन्तु पैरो में से आड़ी-बेड़ी काटते समय केवल दो-तीन बार हथौड़ी से पैरो की हड्डी को जाँचा की कितनी पुष्ट हैं।

मैंने एक बार दुखी होकर कहा "क्या अँधा हैं, जो पैर में मारता हैं ? पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे क्या कर लोगी ? उसने मुझे कहा था। 
तुम्हारे बंधन में हूँ कर भी क्या सकती हूँ ? फिर मैंने उसके ऊपर थूक दिया और बोला औरत की इज़्ज़त करना सीखो। 

जेलर भी साथ में था उसने कड़क आवाज में कहा "तुम्हे छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम सुभाष चंद्र बोस का ठिकाना बता दोगी"

"वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे" मैंने जवाब दिया  "सारी दुनिया जानती हैं।"

"नेताजी जिन्दा हैं", तुम झूठ बोलती हो की वे किसी हवाई दुर्घटना में मर गए" जेलर ने कहा

"हाँ नेताजी जिन्दा हैं। "

"तो कहा हैं ?"

"मेरे दिल में जिन्दा हैं वो" जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और उसने बोला था की "तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल लेंगे।" और फिर उन्होंने मेरे आँचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी आंगी फाड़ते हुवे फिर लोहार की ओर संकेत किया  लोहार ने एक बड़ा सा जम्बूड़  हथियार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढे पत्तो को काटने के काम में आता हैं उस ब्रेस्ट रीपर को उठा लिया और मेरे दाएँ स्तन को उसमे दबाकर काटने चला था लेकिन उसमे धार नहीं थी, ठूँठा था और उरोजों(स्तन) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दुस्तरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, "अगर दुबारा जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएँगे। "

उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरे नाक पर मारते हुए कहा "शुक्र मानो महारानी विक्टोरिया का की इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों स्तन पूरी तरह उखड जाते। "

नीरा आर्या की कहानी पढ़ कर कितना भी कोशिस कर लो आँखों से आशु टपक ही पड़ते हैं रूह काँप जाती हैं ऐसी कहानियाँ हमें बताती हैं की हमारी माताओ बहनो ने अपना सब कुछ इस राष्ट्र के लिए न्योछावर कर दिया था। नीरा आर्य आज़ाद हिन्द फौज में रानी झाँसी रेजिमेंट की सिपाही थी, नीरा आर्या पर अंग्रेजो ने गुप्तचर होने का भी इलज़ाम लगाया था।




नीरा आर्या का जीवन परिचय:-

नीरा आर्या का जन्म 5 मार्च 1902 दो तत्कालीन संयुक्त प्रान्त के खेकड़ा नामक जगह पर हुआ था।वर्तमान में खेकड़ा भारत के उत्तरप्रदेश राज्य में बागपत जिले का एक शहर हैं।  नीरा आर्या के पिताजी एक प्रसिद्द व्यापारी थे जिनका व्यापर मुख्यतः कोलकत्ता तथा देश के विभिन्न जगहों पर फैला था। नीरा आर्या के पिताजी का नाम सेठ छज्जूमल था। नीरा आर्या का जन्म एक धनि-मनी संपन्न परिवार में होने की वजह से उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा की बहुत ही उत्तम व्यवस्था थी। नीरा आर्या का शिक्षा कोलकत्ता के प्रसिद्ध विद्यालय में संपन्न हुई।


नीरा आर्य कई भाषाओ  जानकार थी उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला  साथ-साथ अनेक भाषाओ पर अच्छी पकड़ थी। बड़े उद्योग पति होने के कारण सेठ छज्जूमल ने अपनी बेटी नीरा आर्या शादी ब्रिटिश भारत के सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ कर दी। नीरा आर्या के पति जयकांत एक अंग्रेज भक्त अधिकारी था। अंग्रेजो ने नीरा आर्या के पति जयकांत को सुभाष बाबू की जासूसी करने और उन्हें मौत के घाट उतारने की जिम्मेदारी दी थी। 
जेल में जब मेरे स्तन काटे गए : नीरा आर्या
जेल में जब मेरे स्तन काटे गए : नीरा आर्या 

आज़ाद हिन्द फौज की पहली जासूस:-

नीरा आर्या को आज़ाद हिन्द फौज का पहला जासूस के नाम से भी जाना जाता हैं। वैसे तो पवित्र मोहन रॉय आज़ाद हिन्द फौज के गुप्तचर विभाग के अध्यक्ष थे। महिला विभाग और पुरुष विभाग दोनों ही गुप्तचर विभाग के अंदर ही आते थे। पहली जासूसी का सौभाग्य नीरा आर्य को मिला। सुभाष चंद्र बोस ने नीरा आर्या को स्वयं यह जिम्मेदारी दी थी। नीरा आर्या ने अपने साथी बर्मा की सरस्वती राजामणि, मानवती आर्या, दुर्गामल गोरखा और डेनियल काले के साथ मिलकर नेताजी के लिए अंग्रेजो की जासूसी भी की थी। जासूसी की घटनाओ को याद करते हुवे नीरा जी अपने आत्मकथा में लिखती हैं की " मेरे साथ एक लड़की  मूलतः बर्मा की थी जिसका नाम सरस्वती था उसे और मुझे एक बार अंग्रेजो का जासूसी करने का कार्य सौपा गया।


हम लड़कियों ने लड़को की वेशभूषा अपना ली और अंग्रेज अफसरों के घरो और मिलिट्री कैंपो में काम करना शुरू किया। हमने आज़ाद हिन्द फौज के लिए बहुत सूचनाएँ इकठ्ठी की। हमारा काम होता था अपने कान खुले रखना, हासिल जानकारियों को साथियों के साथ डिस्कस करना, फिर उसे नेताजी तक पहुँचाना। कभी-कभार हमारे हाथ महत्वपूर्ण दस्तावेज भी लग जाते थे। जब सभी लड़कियों को जासूसी के लिए भेजा गया था, तब हमें साफ़ तौर से बताया गया था कि पकडे जाने पर हमें खुद को गोली मार लेनी हैं। एक लड़की ऐसा करने से चूक गई और जिन्दा गिरफ्तार हो गई। इससे तमाम साथियों और ओर्गनाइजेशन पर खतरा मडराने लाना।


मैंने और सरस्वती राजमणि ने फैसला की हम अपनी साथी को छुड़ा लाएंगी। हमने हिजड़े नर्तकी की वेशभूषा की और पहुँच गई उस जगह जहाँ हमारी साथी दुर्गा को बंदी बना के रखा हुआ था। हमने अफसरों को नशीली दवा खिला दी और अपने साथी को लेकर भागी। यहाँ तक तो सब ठीक रहा लेकिन भागते वक़्त एक दुर्घटना घट गई, जो सिपाही पहरे पर थे, उनमे से एक की बन्दुक से निकली गोली राजामणि की दाई टांग में धस गई, खून का फव्वारा छूटा। किसी तरह लंगड़ाती हुई वो मेरे और दुर्गा के साथ एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गई।


निचे सर्च ऑपरेशन चलता रहा, जिसकी वजह से तीन दिन तक हमें पेड़ पर ही भूखे-प्यासे रहना पड़ा। तीन दिन बाद ही हमने हिम्मत की और सकुशल अपनी साथी के साथ आज़ाद हिन्द फौज के बेस पर लौट आई। तीन दिन तक टांग में रही गोली ने राजमणि को हमेशा के लिए लंगड़ाहट बख्श दी। राजामणि की इस बहादुरी से नेताजी बहुत खुश हुए और उन्हें आईएनए की रानी झाँसी ब्रिगेड में लेफ्टिनेंट का पद दिया और मै कप्तान बना दी गई।   

नीरा आर्य ने आज़ादी के बाद अपने जीवन के अंतिम समय में फूल बेचकर गुजरा किया था तथा फलकनुमा, हैदराबाद में एक झोपडी में रही। अंतिम समय में इनकी झोपडी को भी तोड़ दिया गया क्युकी वो सरकारी जमीन पर थी। वृद्धावस्था में चारमीनार के पास उस्मानिया अस्पताल में 26 जुलाई 1998 में एक गरीब, असहाय, निराश्रित, बीमार वृद्धा के रूप में मौत को आलिंगन कर लिया। एक पत्रकार ने अपने साथियों संग मिलकर इनका अंतिम संस्कार किया। 



नीरा आर्या द्वारा रचित ग्रन्थ:-

  • मेरा जीवन संघर्ष 
  • मेरे गुमनाम साथी 
  • अंडमान की अनोखी प्रथाएँ 
  • सागर के उस पार 
आज़ाद हिन्द फौज , नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सुभाष चंद्र बोस हिंदी , नेताजी इन हिंदी, नीरा आर्या

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4 टिप्पणियाँ

  1. Please provide the link to her autobiography. The details given here are at best sketchy and incomplete. I'll be grateful.
    Regards.

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  2. बेहद गर्व होता है भारत माता की ऐसी महान क्रांतिकारी बेटी पर... ऐसी महान वीरांगना के साथ जिन दुराआत्माओं ने अत्यंत ही बुरा अमानवीय,तथा रूप कंपा देने वाला व्यवहार किया... ईश्वर उनको हजारों, लाखों जन्मों तक ऐसी भयानक सजा दे, कि ये सभी दरिंदे भगवान से पल-पल मौत की भीख मांगे।😢😢

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  3. नीरा आर्य की कहानी स्कूली पाठ्यक्रम में न होना स्वतंत्र भारत के षड्यंत्र का घिनौना सच है जिसके लिए हम सब दोषी हैं।

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