भारत आज़ाद है यह सबसे बड़ा मजाक हैं। .


भारत आज़ाद हैं यह सबसे बड़ा मजाक हैं 



विषय सूचि 

१- भूमिका

गुलाम कौन हुआ था 

आज़ादी किसको मिली

२-विश्वगुरु और सोने की चिड़िया वाला भारत 

३- १५ अगस्त १९४७ को क्या हुआ था ?

४ -अंग्रेज गाँधी की वजह से नहीं सुभाष बाबू के डर से गए थे। 

५- आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू नहीं सुभाष चंद्र बोस थे। 

६- इंडियन इंडिपेंडेस एक्ट 

6-आज़ादी या सत्ता का हस्तारान्तरण

8- कथित आज़ादी के बाद क्रांतिकारियों की दुर्दशा 

यदि अंग्रेज जयदा होशियार थे तो आज भी भारत में मुस्लिम जयदा हैं 



भूमिका 

जरुरी नहीं की कोई प्रकांड विद्वान् या इतिहासविद ही स्वतंत्रता की बात करें। एक जानवर जिसका ज्ञान शिक्षा से कोई लेना देना नहीं है यदि उसके भी सहज प्रकृति को रोकने का प्रयास किया जायेगा तो वो लड़ेगा अपनी पूरी क्षमता अनुसार लड़ेगा


दूर-दराज के गाँव से लेकर वैश्विक पटल तक मानवाधिकार के नाम पर हिंसा और अत्याचार सिर्फ अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लालसा में दया, प्रेम, स्वास्थ्य, पर्यावरण और मानव संसाधन के घोर विनास को देखने से लगता हैं कि अभी भी मानव स्वतंत्र नहीं हैं।


यदि वास्तव में सही मायनों में मनुष्य स्वतंत्र होता तो मानवता स्वतंत्र होती तो अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की, इराक, तिब्बत, म्यांमार, पाकिस्तान आदि देशों में हिंसा का तांडव नही होता इससे कौन प्रभावित हुआ सिर्फ और सिर्फ उस देश के आम जनता जो VIP या नेता थे, वे तो देश छोड़ के भाग गए या सुरक्षित स्थान पर चले गए। 


सड़को पर गोली किसको लगी? भीड़ के बीच मे सामूहिक बलात्कार किसका हुआ? भूख के कारण भिखमंगा कौन बना? सिर्फ आम जनता यह कैसी स्वतंत्रता यह कैसी आज़ादी की कुछ समूहों के सैकड़ो लो

विश्व इतिहास में भारत का आज से ही नहीं उत्पत्ति के समय से ही महत्वपूर्ण रहा हैं। 




भारत एक ऐसी भूमि है जहाँ सर्वप्रथम खोज का जन्म हुआ एक से एक व्यक्तियों ने जीवन के सरवोत्तम अर्थों की खोज में जीते जी अपने प्राण त्याग दिए कठोर तपस्याएँ की यह उनकी भूमि रही हैं। 


बिना किसी को नुकसान पहुंचाए खुशी-खुशी जीवन कैसे व्यतीत करें उस मार्ग के खोज की भूमि है, यह परम शांति, मानचित्र, समुद्री यात्रा के खोज की भूमि रही है, यह काल और काल गणना को जन्म देने वाली भूमि है। इसीलिए इस भूमि पर काल की नही महा काल की पूजा होती हैं। THE GREAT TIME THEORY सुनने में बहुत वैज्ञानिक लगती है ज8सके बारे में सो कॉल्ड मॉडर्न वैज्ञानिक अभी तक कुछ सटीक ना ही कर पाए और ना ही कह या लिख पाए। लेकिन इसी थ्योरी को मैं हिंदी में महाकाल थ्योरी कहुँ तो यह आपको पूजा पाठ तक सीमित या कुछ लोगों को नाम सुनते ही अंधविस्वास की पराकाष्ठा ही लगेगी। लेकिन क्या जाता है यह सोचने में यह खोजने में यह जाँच करने में की जहाँ महान वैज्ञानिक आकर रुक जाते है जिस विषय के आगे अर्थात समय के आगे नही बढ़ पाते उससे मिलता जुलता एक कांसेप्ट मेरे यहाँ घर में रखा हुआ हैं। महाकाल शब्द मेरे लिए वह कुँजी है जो आजके मॉडर्न विज्ञान जो भौतिक तक ही सीमित है उसकी सीमाओं को खोल सकता हैं। यह एक महान वैज्ञानिक शब्द है ऐसे ही अनेक वैज्ञानिक शब्दों जिनको बदलकर अंग्रेजी से मिलता जुलता बना दिया गया मैं उसी भारत के स्वतंत्रता की बात इस पुस्तक में पूरी गहराई के साथ करूँगा जो वास्तव में गुलाम हुआ और आज तक कई मायनों में गुलाम ही हैं। 


भारत किसी मनुष्य के उत्पत्ति से पहले की पवित्र भूमि है भारत ने मनुष्य की खोज की उसे माता की तरह गोद मे रखा उसे पाला पोषा सभ्य बनाया और अखंड पृथ्वी पर सबसे पहली सभ्यता की स्थापना कर अपने बच्चों को उस सभ्यता संस्कृति के साथ रहना सिखाया। 


हमे पढ़ाया गया कि भारत की खोज वास्को डिगामा ने की और वही से हमारा इतिहास शुरू होता है मुघलो की महानता और हिन्दू की हार वाले कहानी से होते हुवे विकसित जेंटलमैन अंग्रेजो से होते हुवे और सुभाष बाबू को दबा कर नेहरू की वीरता पर खत्म हो जाता हैं।  


यह पुस्तक इसी मानसिकता के गुलामी जिसे 1947 के बाद भी सरकार द्वारा शिक्षा तंत्र द्वारा, न्यायलय और न्याय व्यवस्था द्वारा पोषित करने वालो से आज़ादी की बात करता हैं। 

यदि आप सर्वशक्तिशाली है तो यह आपकी जिम्मेदारी है कि मानवाधिकार का पूरी ईमानदारी से सुरक्षा होनी चाहिए। लेकिन यदि जब आप ही मानवाधिकार के आड़ में अपने षड़यंत्रों को चला रहे है और मनुष्यतत्व का शोषण कर रहें है तो गती का प्राथमिक नियम है कि एक्शन का रिएक्शन जरूर होता हैं।


यह पुस्तक वही रिएक्शन हैं यह पुस्तक वही प्रेरणा है जिसने मंगल पाण्डेय को जागृत किया था। मैंने इस पुस्तक को नहीं लिखा हैं। मैं तो सिर्फ माध्यम हूँ, कलम और स्याही हूँ, शब्द गुलाम हुवे मानवता के है।


पुस्तक उसी मनुष्यतत्व के स्वतंत्रता की बात करती हैं। अपने वर्चस्व की लड़ाई में आम जनता ही हमेशा से विश्व के इतिहास जो


आज़ादी की बहुत सी कहानियाँ या इतिहासों को आपने सूना होगा, देखा होगा, पढ़ा होगा यहाँ तक की शोध भी किया होगा और कई शोध पत्र भी लिखे होंगे।


आपने अधिकत्तर कहानियों या इतिहासों में एक बात समान पाई होगी की जो गुलाम था वो ही आजाद हुआ। अधिकतर ने युद्ध लड़कर पूर्ण स्वराज्य को छीना। बहुतों ने युद्ध लड़ा लेकिन कभी विजय नहीं हो पाए और ना ही अपना नाम इतिहास में भी दर्ज करा पाए। जिस कारण आज हजारों संस्कृतियाँ, परम्पराएँ, भाषाएँ आदि विलुप्त हो चुकी हैं। 


पूरे विश्व मे भारत के आज़ादी की कहानी अन्य सभी कहानियों में सबसे यूनिक और विचित्र केस वाला हैं। यहाँ जो गुलाम था वो आज तक गुलाम ही हैं फिर भी अभी तक विलुप्त नही हुआ हैं लेकिन अपने अंत के बहुत समीप हैं।


एक लंबे काल खंड तक गुलाम रहा यह देश, संघर्ष में और युद्ध में करोड़ो-अरबो जीवन न्यौछावर कर दिए। यहाँ का असिमित अमूल्य संसाधनों की लूट खसोट हुई फिर भी जब भी मिली तब आज़ादी भारत को या भारतीयता को नही मिली।


भारतीयता से मेरा क्या तात्पर्य है और मैं किस भारतीयता के पूर्ण स्वतंत्रता कि बात करना चाहता हूँ इसके लिए मैं आपको कुछ उदाहरणों द्वारा पहले स्पष्ट करना चाहता हूँ फिर हम विस्तार से प्रमाण के साथ इस किताब में चर्चा करेंगे।


एक मानवता का शिकार करने वाला शिकारी को घूमते-घूमते एक सोने की चिड़िया दिखी। वह सोने की चिड़िया कोई आम चिड़िया नही थी। मानवतावादी द्वारा प्राप्त समृद्धि, धन, वैभव का प्रतीक थी। 


इस अमूल्य धन को देखकर शिकारी ने ठान लिया कि जब तक इस सोने के चिड़िया को कैद नहीं कर लेगा चैन से नही बैठेगा। लाख जतन करने पर आखिरकार उस दुष्ट ने सोने की चिड़िया को अपने पिजड़े में कैद कर लिया। 


चिड़िया को सैकड़ो वर्ष बीत गए उस पिजड़े में रहते हुवे। एक दिन रात को एक चूहा घुस आया और सोने के चिड़िया के लिए रखा हुआ खाना खा लिया। अब उस चूहें को खाने का चस्का लग गया वो प्रतिदिन आकर चिड़िया का खाना खा लेता था। 


समय बीतता गया, चूहा बढ़िया खाना खा-खा कर अब मोटा हो चुका था। मोटेपन के चलते उसे पिंजड़े में अंदर और बाहर जाने में दिक्कत होने लगा। एक दिन चूहा बड़ी मुश्किल से पिंजड़े में घुसा और भूखड़ कि तरह खाने लगा। 


खाना खत्म करने के बाद चूहे ने सोचा कि क्यों न मैं भी इसी पिजड़े में रह जाऊ प्रतिदिन मुफ्त का खाना तो मिल ही जा रहा है और बाहर तो दिन-रात खाने के लिए दौड़ते रहना पड़ता हैं। और चूहें ने चिड़िया के साथ ही रहने का निश्चय किया और पिजड़ा से बाहर नही गया। अब चिड़िया और भूखड़ चूहा दोनो पिजड़े में रहने लगे। शिकारी को भी इस बात का पता चल गया लेकिन वो कुछ सोच कर चुप रहा।


सोने की चिड़िया की सुरक्षा करने वाले दिन रात शिकारी से सोने की चिड़िया के आज़ादी के लिए युद्ध करते रहते थे। बुरी तरह हार कर शिकारी ने सोने की चिड़िया को स्वतंत्र करने का निश्चय किया।


इधर सोने कि चिड़िया की सुरक्षा करने वालो ने शिकारी को हमेशा के लिए मार कर चिड़िया को स्वतंत्र करने का निर्णय लिया। मरो या मारो का अंतिम निर्णय लिया। यह योजना शिकारी को पता चल गई। 


शिकारी बहुत चालाक था उसको पता था कि चिड़िया को आजाद करना ही पड़ेगा नही तो प्राण नही बचेंगे साथ ही वो ये भी जानता था कि सोने की चिड़िया हाथ से निकल जाएगी तो सारा धन ही हाथ से निकल जाएगा इसीलिए उसने चिड़िया के पैर में उस मोटे और भूखड़ चूहें को बांध दिया ताकि सोने की चिड़िया कभी पूर्ण आज़ाद ना हो पाए और जब वो शिकारी चाहे उसे फँसा कर अपना इक्षा पूर्ण कर सके। 


अब शिकारी ने खुद ही एक दिन का कार्यक्रम बनाया और सोने की चिड़िया को आज़ाद करने का घोषणा कर दिया। शिकारी ने खूब प्रचार-प्रसार किया अपने चमचो के द्वारा की हम चिड़िया को आज़ाद कर दे रहे हैं। हम बहुत अच्छे हैं। 


सोने को चिड़िया को एक शारीरिक, मानसिक बोझ देकर पिजड़ा खोल दिया गया और चूहें के साथ-साथ उसे भी कथित आज़ादी दे दी गई। सोने की चिड़िया कुछ देर उड़ती फिर मोटे चूहें के बोझ के कारण जमीन पर गिर पड़ती। 


सोने की चिड़िया की सुरक्षा करने वालो को तीतर-बितर कर दिया गया कि अब तो सोने की चिड़िया आज़ाद हो गयी है अब किससे युद्ध करना हैं? आज़ादी का भाषण याद कीजिए बिना खडग बिना ढाल वाला कविता जरूर याद कीजियेगा और साथ मे एक झुनझुना ले ले लीजिएगा आज़ादी दिवस के दिन बजाने के लिए।


आज तक, चिड़िया को सम्मान करने वाले और उसके अपने लोग सोने की चिड़िया को आज़ाद समझ प्रत्येक साल झुनझुना बजाते है और चापलूसी के साथ शिकारी के स्वगात में लिखा गया गाना को झुनझुना बजाते हुवे गा रहे हैं।


किसी भी पिंजड़े में कैद सामान्य चिड़िया को भी स्वतंत्र करने के लिए जब पिंजड़े का फाटक खोला जाता है और जब वह बाहर आती है और पूरे वेग से जब आसमान की तरफ उड़ान भरती है तो उसे पूरा खुला आसमान अब अपना लगने लगता हैं। वह जिस दिशा में चाहे उड़ सकती हैं। 


जिस वृक्ष पर चाहे अपना घोंसला बना, निवास कर सकती हैं। जिस तालाब या नदी में चाहें आसमान से उतर कर अपना पेट भर सकती हैं और अपनी प्यास बुझा सकती हैं। स्वतंत्रता का यही मतलब तो होता हैं।


लेकिन यदि आज़ाद करने से पहले ही चिड़िया के एक पैर में रस्सी से उस मोटे और भूखड़ चूहें को बाँध दिया जाए और फिर पिंजड़े का फाटक खोल कर चिड़िया को स्वतंत्र कर दिया जाए तो क्या सही मायनों में चिड़िया को आज़ादी मिली? 


क्या वो उन्मुक्त गगन में स्वतंत्र होकर उड़ सकती है? क्या वो दूर-दूर स्थित मीठे जल स्रोतों से अपनी प्यास बुझा सकती हैं? क्या वो चिड़िया कभी भी इस भूखड़ चूहें के रहते भरपेट भोजन कर सकती है? या अपने बच्चों का पालन-पोषण कर सकती हैं? निःसंदेह नहीं!! कभी भी नही। 


यह ईश्वर द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता के खिलाफ है अतः धर्म विरुद्ध है। अधर्म कार्य हैं। आप कैसे किसी भी जीव या प्राणी के साथ ऐसा कर सकते हैं? ऐसा करने का अधिकार इस पृथ्वी पर जीवित या मृत किसी के पास नही हैं। 


यह किसी के साथ किया जाने वाला आज़ादी के नाम पर सबसे भद्दा मजाक है कि नहीं? यदि हम कहे कि "चिड़िया आज़ाद है, यह सबसे बड़ा मजाक है" तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए।


मैं क्या कहना चाहता हूँ? किसके आज़ादी की वकालत कर रहा हूँ? यदि आप मेरे पहले उदाहरण से समझ गए तो आप निःसंदेह मेरे जैसे ही भटकती आत्मा है जो भारत माता को पूर्ण स्वराज्य दिलाने के लिए और माँ भारती का वही पुराना गौरव या वैभव वापस लाने की इक्षा से भटक रहा है। 


हम तब तक भटकते रहंगे और तब तक जन्म लेते रहेंगे जब तक मनु महाराज, आदि गुरु शंकराचार्य, चाणक्य, वीर शिवाजी, बाजीराव पेशवा, मंगल पांडेय, झांसी की रानी, चंद्रशेखर तिवारी, भगत सिंह, उधम सिंह, वीर सावरकर, मदन लाल ढींगरा, सुभाष चंद्र बोस, नीरा आर्य का भारत नही बना लेते। 


जिनको मेरी बात अभी तक स्पष्ट नही हो पाई है उनके लिए एक छोटा सा उदाहरण और देना चाहता हूं। फिर उसके बाद विस्तार से सटीक चर्चा प्रारम्भ करेंगे।


पूरे विश्व मे किसी जगह राम नाम का कोई आदमी एक बहुत ही खुशहाल और ज्ञानी उद्यमी था. उसका अपना लाइफस्टाइल था, व्यापार का अपना अलग तरीका था। वह अपने दुनिया मे बहुत खुश और संतुष्ट था। आज तक किसी को भी नुकसान नही पहुँचाया था।


अनेक हमले राम पर होते रहे राम सबका बहुत ही कठोर भाषा मे जवाब देता था। राम के लिए अहिंसा साथ ही धर्म की रक्षा के लिए हिंसा भी बहुत बड़ा धर्म हैं। इसीलिए राम कभी भी शत्रु का गर्दन काटने में पीछे नही रहता था। 


एक बार कुछ बाहरियों ने राम के देश पर हमला बोला राम का एक सबसे छोटा पुत्र 18 वर्षीय स्कन्दगुप्त ने अकेले ही हूण कुषाण के समूह में भयंकर खून खराबा कर के प्रेम और शांति की रक्षा की। लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर था। राम के एक पुत्र अशोक ने राम का मार्ग छोड़ कलयुगी प्रभाव के कारण हिंसा का त्याग कर दिया। 


राम का देश जो एक संघ के रूप में था छोटे-छोटे राज्यों में बटना शुरू हो गया। बटवारा हमेशा भूमि या धन की ही नहीं होती हैं। शक्ति का भी बटवारा करती है हम बट कर कमजोर होते गए। राम के शत्रुओं को मौका मिला। फिर एक दिन जिनका गर्दन काट कर के इस देश से दूर रखा गया था वो अधर्मी एक जुटकर कर राम के देश पर हमला कर दिया।


जिस तरह अफगानिस्तान का माहौल हैं उससे कई गुना ज्यादा उस समय के हालात थे कुछ बाहरी गुंडो, कबीलो के साथ गुंडे मावली आये छल, कपट से राम के परिवार,घर, व्यापार, प्रॉपर्टी सब पर कब्जा कर लिया।


हो सकता हैं इस बुक को पब्लिश करते ही बैन कर दिया जाए और मुझे जेल में भी डाल दिया जाए क्युकी बोलने की आज़ादी तो सिर्फ भारत के हजारों टुकड़े करने का मंशा रखने वालो को हैं।

आजादी तो रोहंगियाँ घुसपैठियों को है जिनके आतंक की वजह से म्यांमार के लोग और सेना ने मिलकर इनको वहाँ से खदेड़ दिया। ऐसे मलेच्छ रोहंगियाँ मुसलमानो को बांग्लादेशी घुसपैठियों को आज़ादी हैं की राज्य सरकार ममता बनर्जी इनके अधिकार के लिए खूनखराबे करने तक की देते हैं।

अविलम्ब उन घुसपैठियों का राशन कार्ड, आधारकार्ड, वोटर कार्ड, आदि बन जाता हैं उनको भारत में सारी सुख-सुविधा बैठे-बैठे मिल जाती हैं।

भारत की राजधानी दिल्ली तक में कई एकड़ सरकारी जमीन इन घुसपैठियों के नाम कर दी जाती है ताकि वो दिल्ली के निवासी बन सके और फल-फूल सके अपनी जनसंख्याँ बढ़ा सके और फिर वो जनसँख्या हमें वोट करेगी और हम लम्बे समय तक सत्ता की चासनी खाते रहेंगे। असल में इन घुसपैठियों के आवभगत करने के पीछे ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसा नेता का यही मंशा हैं।

नेता अपने वोटबैंक के लिए अपने सत्ता के लिए भारत के भविष्य को ऐसे गर्त में डालने का कार्य कर रहे हैं जहाँ से सिर्फ सत्य ही बाहर आ सकता हैं यही कारण हैं की हजारों सालो की गुलामी के बाद भी सनातन बार बार बाहर निकलता है और ज्ञान का प्रकाश पूरी दुनिया में फैलाता हैं।

सनातन ही सत्य है यह पुस्तक भी उसी सत्य का वकालत कर रही हैं उसी सत्य के स्वतंत्रता की बात करती हैं। सनातन को अनेकानेक प्रकार के षड़यंत्रो के जाल में जकड़ा हुआ देख रहा हूँ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पल-पल मरता देख रहा हूँ। 

साथ ही पुरे विश्व में तीव्र गति से बढ़ते प्रदुषण को देख रहा हूँ  प्रकृति के दोहन को बढ़ते देख रहा हूँ, मनुष्यों के घटते उम्र को देखता हूँ, मृत्यु दर को बढ़ते देखता हूँ, स्वास्थ्य को गिरते देखता हूँ और बिमारी को बढ़ते देखता हूँ। विश्व को भूख मिटाने के योजना बनाने की जगह परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, मदर बम या फादर बम बनाते देखता हूँ 

दया प्रेम क्षमा,शांति को घटते, जलन, स्वार्थ, क्रोध, हिंसा को बढ़ते देखा हैं, ज्ञान की जगह अज्ञान को बढ़ते देखा हैं पृथ्वी के ऊपरी तथा भीतरी जल को प्रदूषित होने से, घटने से बचाने की जगह विश्व को आम जनता के खून पसीने की कमाई से मंगल पर या चाँद पर जल खोजने में पानी की तरह पैसा बहाते देखाता हूँ। 
 औरंगजेब 

इतनी बड़ी दुनिया एक अकेला देश जहा हिन्दू रहते आ रहे हैं वहाँ कभी कुछ हुआ और जबरजस्ती तलवार की नोक पर हिन्दुओं के मंदिरों को तोड़कर, हजरो घोड़ो हाथी हजारो बड़े-बड़े जहाजों में भरकर सोना-चाँदी रत्न संसाधन, हिरा सब लूटकर साथ ही लाखो लोगो को लूटकर, लाखो-करोड़ो लाश गिराकर, लाखो महिलाओं का कई पीढी तक बलात्कार कर के मुस्लिम समुदाय उनके देश जिसका नाम भारत हैं, में रहने लगे 

आज 2020 तक भी एक मुस्लिम, करोड़ो लोगो के आस्था को सविधान के दम पर कानून की सहायता से जो कानून भारत के आज़ादी की गारंटी देता हैं उस कानून के दम पर राम मंदिर नहीं बनने दे रहा था. ऐसी क्या मज़बूरी थी कानून की यह देश राम के मानने वालो का देश हैं तो आजादी भी तो जिनका देश हैं उन्ही को मिलना चाहिए  

एक ही कारन हैं जो सबसे सामान्य और सबसे जरुरी हैं यहाँ आज़ादी हैं लेकिन भारत के मूलनिवासी भारतीय संस्कृति जो गुरुकुल, संस्कृत, आयुर्वेद मंदिर, क्रांतिकारियों को नहीं हैं यहाँ सभी हिन्दू विरोधियों को आज़ादी हैं।

हजारो-लाखो उदहारण हैं लेकिन प्रेसर ऐसा बना दिया गया हैं की हिन्दू जनता जानबूझकर नहीं देख पा रही हैं और जो चल रहा हैं उसी को सत्य और अपना नशीब मान चुकी हैं हमें इस प्रेसर को तोड़ना होगा हमें अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सोचना होगा क्युकी यही सनातन सोच हैं 

आज की सोच हैं अपना कमाओ अपना खाओ सनातन सोच हैं की वर्तमान का आनंद उठाते हुवे भविष्य और अपने आने वाली पीढ़ी के लिए कार्य करो इसी को अंग्रेज सब सस्टेनेबल डेवलोपमेन्ट कहता हैं।  ऐसा कुछ नहीं हैं तो हमारे पूर्वज नहीं जानते थे धर्म की दुर्दशा होने वाली हैं आज से लगभग 6 हजार साल पहले ही वेद व्यास महाराज जी द्वारा भविष्यपुराण में लिख दिया गया था। मैं ऐसे ही सभी पुराण, उपनिषद, वेद, उपवेद आदि आदि के आज़ादी की बात कर रहा हूँ यही पूरी दुनिया को सही मार्ग दिखा सकते हैं। 


भारत की राजधानी दिल्ली में कई एकड़ का सरकारी जमीन इन घुसपैठियों को दे दिया जाता हैं। ताकि ये फल फूल सके जनसँख्या बढ़ा सके और एक वोटबैंक के रूप में बदल जाए और केजरीवाल जीवन पर्यत्न सत्ता की चासनी खाता रहे। 

आज़ादी तो कश्मीरी मुस्लिमो को है जिसने अपने पड़ोसी हिन्दुओ का कत्लेआम किया पेड़ो से अनेक शव लटका दिए गए, हजारो बलात्कार किये गए, रातो-रात मस्जिद से एलान कर दिया गया, दिनदहाड़े सड़को पर जुलूस निकाल कर खुलेआम एलान किया गया की- "24 घंटे के अंदर सभी इस्लाम को कबुल करो नहीं तो काफिरों कश्मीर छोड़ो! कश्मीर छोड़ो!"
आज़ाद भारत में हैवानियत का नंगा नाच देखकर मारे डर के रातो-रात लाखो कश्मीरी हिन्दूओं का पलायन हो गया, सारा संपत्ति धन सब लूट लिया गया। मान-सम्मान, इज़्ज़त, खुशियाँ, सुख-चैन सब तहस-नहस कर दिया गया। जीवन भर कभी न थमने वाला आशु दे दिया गया।

भाई के सामने बहन को, बाप के सामने बेटी को नंगा नचाया गया। ठीक वैसे ही जैसे बाबर, अकबर, औरंगजेब आदि जैसे नर पिचाश मुघल अपने हरमो में कराते थे। किसी न्याय तंत्र या सुप्रीम कोर्ट को पता तक नहीं चला एक न्यूज़ तक नहीं बन पाया। आखिर हम हर वर्ष किस आज़ादी का जश्न मनाते है ? जो मुघल करते थे आज भी हो रहा है किसकी आज़ादी ?

कश्मीरी हिन्दू अपने ही देश में प्रवासी हो गए विस्थापित कर दिए गए किसी सविधान, किसी मानवाधिकार कोई भी संस्था ने आजतक कोई सुध नहीं ली।

ऐसे ऐसे छोटे-छोटे कश्मीर भारत के कोने कोने में हैं ,जहा से हिन्दुओं को अपने ही देश में अपने ही घर गांव को छोड़कर पलायन करना पड़ा हैं और वे लोग आज भी झुग्गी झोपडी में रेलवे किनारे रहने पर मजबूर हैं। कोई तंत्र, कोई सविधान कोई कानून देखने या हाल-चाल पूछने नहीं आया।

बहुसंख्यकों के भावना से खेलने वाले उनके आराध्य देव श्री राम, माता सीता और हनुमान जी के अश्लील चित्र बनाने वाले M F हुसैन को आज़ादी हैं, भरी संसद में पुरे भारत के सामने उनके आराध्य देव का निवास स्थान मदिरा और दारु में बताने वाले नरेश अग्रवाल के लिए आज़ादी हैं।
आज़ादी तो उस आतंकवादी के लिए हैं जिसके बचाव करने के लिए रात बारह बजे कोर्ट खुल जाता हैं।
आज़ादी तो उस नाबालिग अफरोज को है जिसने स्त्री जननांग में रोड तक डाल दिया यह बात लिखने में मेरे हाथ काँप जा रहे है फिर सोचिये ऐसा करने वाले से ज्यादा खतरनाक क्या कोई हो सकता हैं ? फिर भी वह दरिंदा आज भी आज़ाद घूम रहा है।
जो बलात्कार करें फिर वो नाबालिग कैसा? लेकिन सविधान की नजर में वह बलात्कारी नही नाबालिग था। राज्य सरकार दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उसको सिलाई मशीन और हजारो लाखो रूपा देकर पुनर्वास किया कुछ दिन बाद वह गायब ही हो गया सभी साइड मुजरिमों को फांसी दे दी गई लेकिन मुख्य बलात्कारी गायब न्यूज़ से गायब ऑनलाइन या ऑफलाइन हर जगह गायब।
आज़ादी तो उन धर्मपरिवर्तन कराने वाले ईसाईयों के संगठनो को हैं जिन्होंने भारत के अनेक राज्य में इतने बड़े स्तर पर धर्मपरिवर्तन किया हैं की अनेक राज्य के मूलनिवासी हिन्दू अल्पसंख्यक बन चुके हैं और विलुप्त होने के कागार पर हैं।
आज़ादी तो उन हिन्दू से ईसाई बने लोगो को है जो एक तरफ ईसाई वाला जीवन जीते हैं चर्च जाते है लेकिन सरकार के रिकॉर्ड में हिन्दू बने हुवे हैं और हमारे दलित भाइयों का हक़ खाने का कार्य कर रहे है। किसी-किसी राज्य में तो सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार हिन्दू बहुसंख्यक है लेकिन वास्तव में उन राज्यों में धर्मान्तरण के कारण हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। और ऐसा बयां बड़ी-बड़ी पार्टी के बड़े लोकल नेता लोगो ने भी कई मौको पर खुलेआम कहा हैं।
आज़ादी तो मस्जिद, मजारो, चर्चों को हैं जिन्हे प्रत्येक वर्ष सरकार द्वारा लाखो करोड़ो रुपया सहयोग और मस्जिद चर्च के विकास के लिए दिया जाता हैं, आज़ादी तो मदरसों को हैं जिनको चलने के िये तो पैसे मिलते ही हैं साथ हक उसके मौलवी और उसके एक सहयोगी को भी सरकारी नौकरी और सभी सुविधा मिलता हैं। और यदि मदरसा और मस्जिद द्वारा विश्व कल्याण या मानवता कल्याण के दिए गए योगदान की बात करू तो जीरो और शून्य से भी कम ऋणात्मक संख्या के बराबर।
वही पुरे विश्व को सबसे पहला सभ्यता देने वाला, पुरे विश्व पढ़ना-लिखना, बोलना सिखाने वाला, पुरे विश्व को सबसे पहली -विज्ञान मंदिरों का देश भारत के सभी मंदिरों का दान का पैसा सरकार उनसे छीन लेती हैं साथ ही मंदिरों के संचित धन और जमीन को भी समय-समय पर सरकार बेच करके धर्मपरिवर्तन करने वाले तथा हजारो सालो तक भारत को लूटने वालो मस्जिद या चर्चों को दिया जाता हैं। यह कौन सा समान विधान होता हैं।

कभी-कभी ऐसा लगता हैं की हम भारतियों को कितना मुर्ख समझा रहा हैं और शायद हम मुर्ख भी बन गए हैं।


आज़ादी तो अकबर, बाबर या औरंगजेब को मिली की सरकारी रूप से भारतीय पुस्तक में इन दरिंदो (जिन्होंने अपने हरम में अनगिनत औरतो को बल पूर्वक रखा। लाशो का ढेर लगाया, ये दरिंदे भारत के पवित्र मंदिर और परम्परा को दूषित करने वाले कंस और रावण से भी बड़े खतरनाक राक्षस थे।) के बारे में पढ़ाया जाता हैं की अकबर महान थे। बाबर महान था।


विश्व गुरु भारत के महान ज्ञान-विज्ञान की वकालत करने वाले का गर्दन काट दिया जाता हैं उसके घर को जला दिया जाता हैं भीड़ द्वारा मिलकर ऐसे साधू संतो को लाठी डंडे से पिट-पिट कर मौत के घाट उतार दिया जाता हैं कोर्ट कभी संज्ञान नहीं लेती तो प्रश्न उठता हैं कैसी आज़ादी? किसकी आज़ादी ?


मेरे पास कोई बहुत बड़ा बड़ा डिग्री नहीं हैं मै कोई इतिहासकार या साहित्यकार नहीं हूँ। अपने सूझ-बुझ और विभिन्न प्रकार के इतिहासकारो को पढ़कर अपने आस-पास की घटनाओ, सरकारी कानून,सरकारी तंत्रो के कार्य प्रणाली को देखकर तथा राजनितिक पार्टियों समूहों के विचार को देख कर मैंने भारत को आज़ाद नहीं अभी परतंत्र ही पाया हैं। और इस पुस्तक के माध्यम से आप को भी बताना चाहता हूँ।

यहाँ भारत का अर्थ भारतीय सनातन परम्परा से हैं जिसे बड़ी चालाकी से एक षड़यंत्र के तहत ख़त्म करने का प्रयत्न किया जा रहा हैं। यह लोकतंत्र नहीं षड़यंत्र है। भारत का सिर्फ नाम ही नहीं बदला गया भारत को भी मिटाने का प्रयास किया गया हैं यहाँ इंडिया वाली कुसंस्कृति को विकास करते और भारत वाले संस्कृति को मृत्यु शैया पर पड़ा दिखाई दे रहा हैं।


और यही सब कारण हैं की पुरे विश्व में भारत सिर्फ भ्रस्टाचार के नाम से जाना जाता था थोड़ा बहुत क्रिकेट ने काम कर दिया था बाकी सब ताजमहल पर आकर भारत ख़त्म हो जाता था। देश भक्तो के हाथ से छीनी गई सत्ता लगभग हजारो साल बाद पहली बार पूर्ण रूप से देशभक्तों के हाथ में आई 2014 के बाद एक बार फिर से आज भारत का डंका पुरे विश्व में बजना शुरू हुआ हैं।


भारत मूलतः वही था जो पहले के सरकारों में था लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व ने भारत को एक नई दशा और नई दिशा दी और सिद्ध कर दिया की सत्य को चाहे आप जिस मार्ग पर धकेल दो उसकी प्रकृति नहीं बदलती जो बदल जाए वो फिर सत्य नहीं।


यह सर्व विदित हैं पूरी दुनिया में जितने आक्रमण भारत या भारतीय संस्कृति पर हुवे हैं उतना लम्बे समय तक दुनिया की किसी भी संस्कृति ने आक्रमण को झेल नहीं पाय हैं बरबाद हो गया। कितनी संकृतियाँ तो 10 से 20 साल के अल्प समय में ही ख़त्म कर दी गयी। अरबी कबीलो और ईसाईयों के विस्तारवाद ने हजारो संस्कृतियों, भाषाओं को निगल लिया वो सभी संस्कृतियाँ, भाषाएँ, परम्पराये जीवन जीने के कपडे पहने के अलग-अलग तरीके सब डायनासोर की तरह विलुप्त हो गए। इतिहास में नाम तक कितने दर्ज नहीं करा पाए।


अंग्रेजी पश्चातय इतिहासकारो को जब से लिखना आया तभी से इतिहास को आप देख लीजिये अकेला भारतीय संस्कृति ही जीवित बच पाई हैं। क्यों? एकमात्र कारण हैं हमारी संस्कृति की शक्ति जो हमारा धर्म हैं वह सत्य हैं। महाभारत में भी कहा गया हैं -धर्म की रक्षा होगी तो धर्म आपकी रक्षा करेगा। हमने अपना धर्म नहीं छोड़ा इसीलिए धर्म ने आज भी हमारी सामूहिक रूप से रक्षा और भरण-पोषण कर रहा हैं।


धर्म ने अब प्रेम दया शांति फैलाने का मन बना लिए हैं जिसके लिए यदि हिंसा करनी पड़े तो वो भी धर्म हैं यह सब गूढ़ ज्ञान पहले से हैं। हम भारतीय बहुत भाग्य शैली हैं की हमें सबकुछ पूर्वजो द्वारा बना बनाया मिला हैं। जिसके परिणाम स्वरुप भारत विश्व गुरु सोने की चिड़िया कहलाया हैं।


18 वी सदी से पहले तक हिरा, मोती, मूँगा इन बेशकीमिति पत्थरो का ज्ञान साथ ही सभी प्रकार का ज्ञान सिर्फ भारत में ही था। पूरी दुनिया जानवरो की तरह असभ्य आचरण करती थी आज भी करती हैं लेकिन कलयुग का प्रकोप ही कहिये की उन जानवरो के हाथ में विश्व गुरु और सोने की चिड़िया आ गई और हम बरबाद हो गए।


यदि आज़ादी मिली तो 1947 से ही युद्धस्तर पर क्षति पूर्ति शुरू होनी चाहिए थी लेकिन आम जनता का शोषण उससे भी ज्यादा होने लगा जैसे की इन जानवरो के हाथो गुलामी काल में होता था। हमारी ज्ञान और महान परंपरा को किसी से सर्टिफिकट की आवश्यकता नहीं हैं फिर भी विश्व के बड़े बड़े ज्ञानी विज्ञानी कहे जाने वाले लोगो ने भारत के सनातन ज्ञान और संस्कृति को पुरे जोर-शोर से चिन्हित भी किया हैं। दुनिया के लोग सराहना करते हैं और अनेक विश्व प्रसिद्ध लोग धर्म का अनुसरण भी करते हैं।


फिर भी हम भारत के लोग अंग्रेजो के बनाये तंत्र पर चलते हैं जिस तंत्र ने हमें विश्व गुरु बनाया उसको काल्पनिक मान बैठे हैं। नरेंद्र मोदी पहली बार कोई प्रधानमन्त्री खुल कर इंडिया को नहीं भारत को प्रमोट कर रहे हैं। अंग्रेजो के तंत्र पर ही सही लेकिन भारत में धीरे धीरे विकास की गाडी को गति मिली हैं लेकिन इस अंग्रेजी तंत्र का भविष्य अन्धकारमय हैं इससे भुखमरी, बेरोजगारी, जनसँख्या, प्रदुषण, गरीबी, भ्रस्टाचार, असामनता, अज्ञानता, कट्टरता और बिमारी ही फैलेगा।


हमें जरुरी हैं की हम अपनी जड़ो को खोजे अपने सनातन तंत्र को आत्मसात करे भविष्य उसी तंत्र के अनुसार जीवन यापन या सामाजिक व्यवस्था करने से सुरक्षित हैं।

मोदी जी की सरकार आने से एक नए बदलाव की बेयार बह चली हैं। सदियों से फँसे पड़े मामले बदल रहे हैं।  इसी बिच भारत के स्वर्णिम इतिहास और इतिहास में हुवे छेड़छाड़ की पोल भी खुलनी चाहिए। कैसी आज़ादी किसकी आज़ादी आज़ादी की परिभाषा की भी खोज होनी चाहिए। राष्ट्र पुरुष भारत ने एक बड़ा महा परिवर्तन का मन बना लिया हैं।


हम एक महापरिवर्तन की तरफ बढ़ चुके हैं अब जरुरी हैं की इतिहास में जो दाग धब्बे हमारे ऊपर लगाए गए हैं उसको साफ़ किया जाए जरुरी हैं की सभी कुछ जिसको जानबूझकर छिपाने की कोशिश की गई हैं वह खुले सत्य कड़वा होता हैं. मोदी सरकार अभी कड़वा बनने के स्थान पर नहीं हैं इसी लिए भारत आज़ाद हैं यह सबसे बड़ा मजाक हैं खुलकर नहीं कहती हैं।


बहुत कूटनीति हैं लेकिन हम जनता को यह अधिकार हैं और यह अधिकार, जिस अधिकार ने मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाया हमें अंग्रेजो ने ही दिया हैं इंग्लैंड के ब्रिटिश पार्लियामेंट से मिला सर्टिफिकट ही हमारा पहचान हैं। यह पुस्तक इसी पहचान को मिटाने का एक प्रयास हैं। पूजनीय वाजपेयी जी ने भी अपनी कालजयी रचना के माध्यम से आज़ादी अभी अधूरी हैं की बात कह चुके हैं -


चलिए मान लेते हैं मुस्लिम हमारे साथ थे लेकिन फिर प्रश्न ये उठता हैं की जब साथ थे तो पकिस्तान किसने बनाया और ट्रेन में भरकर कौन लाश भारत को भेज रहा था क्या उन लाखो लाशो में एक भी मुस्लिम का लाश था ? साथ रह थे या जानबूझकर साथ रखा गया एक वोट बैंक को बनाने के लिए ताकि सत्ता की चासनी एक लम्बे समय तक खाई जा सके और हुआ भी यही।


कांग्रेस ने 1947 से अब तक लगभग 60 साल तक सत्ता में रही सिर्फ मुस्लिम वोटबैंक की बदौलत। इस वोटबैंक की वजह से सत्ता में आई सभी सरकारों ने सभी सरकारी तंत्र जिनका उपयोग भारत के विकास के लिए होना था उन सभी सरकारी तंत्रो को सिर्फ एक वोट बैंक के विकास में लगाया गया भारत का विकास जानबूझकर रोक कर रखा गया। शिक्षा पद्धति ने उनके अंदर भी सत्य का बोध करने में क्यों सहयोग नहीं किया शिक्षा का एक अर्थ हैं सत्य की सुरक्षा सत्य का प्रचार

2011 कॉलेज में जाने तक मैं भी सभी की तरह मॉडर्न कम वेस्टर्न ज्यादा था। इंग्लिश बोलना मात्र ही ज्ञानी होने का प्रमाण हैं ऐसा विचारधारा वाला था। अमेरिका इंग्लैंड को ही स्वर्ग समझने वाला और मल्टिनैशनल कंपनी में जॉब करना ही सफल होने का परिभाषा था। मेरा ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम वाला विचार था। क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सब भाई भाई।


फर्क तो तब पड़ा जब कॉलेज में कश्मीरी मुस्लिमो छात्रों का भारतीयता पर टोंट मारना उनका धरना प्रदर्शन करना बिना सोचे-समझे रामायण महाभारत की कहानियों का मजाक बनाना। हमारी पूजा पद्धति का मजाक बनाना साथ ही मूर्तिपूजा को गलत बताना वेद को गलत कहना, मंत्रो का अनर्थ लगाना आदि आदि मेरे अंदर क्रोध को जन्म देने के लिए काफी था।


मैं एक दो बार उनसे बात करने का प्रयास किया लेकिन उल्टा ही उन्होंने मेरा ब्रैनवॉश करने का प्रयास किया लेकिन दाल गलता न देख बोले की यह सब बात तुम्हे समझ में नहीं आयेंगी -"ये सब राजनीति द्वारा शोषण करने की बात है हिन्दू धर्म, मूर्तिपूजा ये सब काल्पनिक हैं और तुमलोग कश्मीर को गुलाम बना के रखे हो और मुस्लिमो पर पुरे भारत में अत्याचार कर रहे हो।


उसकी बाते मुझे इंट्रस्टिंग लगी और चैलेंज करने वाली भी लगी। मैंने कहा ऐसे कैसे समझ नहीं आएगी जब आइंस्टीन की फिजिक्स तुम जैसे लोगो को समझा सकता हूँ तो ये बात भी कोई वैदिक गणित नहीं हैं।


यह सभी बाते मेरे लिए नई थी लेकिन आश्चर्य की बात थी की हमेशा क्लास में टॉप किया मैं फिर यह मुस्लिम राजनीति और अपने मजहब का ज्ञान उसको मुझसे कही ज्यादा था। यह सब बात सिलेबस का भी हिस्सा नहीं था फिर इन सभी बातो का ज्ञान उसको कहा से हो रहा हैं हो रहा हैं ? खोजने में पता चला की उनके नेताओ जैसे ज़ाकिर नायक जैसे इस्लामिक मौलवियों से मदरसे मस्जिद में बैठे मौलवियों से उनका कनेक्शन हमेशा रहता हैं इन सभी बातो का मुख्य स्त्रोत यही मौलवी मस्जिद मदरसे जहा से इनके दिमाग में इस्लाम के लिए कट्टरता भरी जाती हैं अपने मजहब के सपने को पूरा करने के लिए। पूरी दुनिया को काफिर मुक्त करने के लिए।


मेरा दिमाग घुमा ये कश्मीरी मुस्लिम हद से बढ़ती बेरोजगारी, दंगे, बलात्कार, गरीबी, प्रदुषण, जनसँख्या, अपराध, भ्रस्टाचार पर आंदोलन या धरना प्रदर्शन नहीं करते लेकिन आज़ादी लेने के लिए धरना प्रदर्शन करते हैं।


एक मुस्लिम जो श्री राम को नहीं मानता हैं वो भी श्री राम के बारे में बहुत कुछ जनता हैं और मैं उसके धर्म या मजहब के बारे में एक लाइन भी नहीं जानता हूँ। जिस शिक्षा पद्धति से वह मुस्लिम पढता हैं उसी शिक्षा पद्धति द्वारा दी गई पुस्तक को हिन्दू भी पढता हैं फिर अपने अपने मत के ज्ञान के मामले में हिन्दू ही क्यों पीछे हैं, या कही जानबूझकर पीछे तो नहीं रखा जा रहा हैं ?


गहन अध्ययन से मैं भी अब सबकुछ समझ चुका था। उनकी कश्मीर की मांग जायज था या नहीं सब समझ में आ चुका था और उनके द्वारा किये गए कश्मीरी पंडितो पर अत्याचार का भी पता चल चुका था।


फिर कॉलेज में हुआ वाद-विवाद एक बार नहीं कई बार और उन्हें हर बार करारा जवाब मिला और कश्मीर को आज़ाद कराने वाले उनके धरना प्रदर्शन का जम कर विरोध हुआ, हमारे विरोध से उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ा क्युकी भारत का सविधान ही कुछ ऐसा हैं। कश्मीर में तो ये हथियार से संपन्न भारतीय सेना के ऊपर पत्थर बरसाते हैं यदि कोई सैनिक अकेले दिख जाए तो उनके ऊपर लात जुत्ते भी बरसाते हैं फिर हमारे विरोध से क्या फर्क पड़ने वाला था।


उस वाद-विवाद से यह तो तय हो गया की मुस्लिम अपने मजहब और उस मजहब के लिए ज्यादा से ज्यादा जमीन अपने अंडर में करने के लिए बेचैन हैं। मुझे पता चला की कितना जहर इस देश के प्रति कश्मीरी मुस्लिमो में भरी हैं इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। मुझे लगा ऐसी विचार धारा वाले शायद मेरे ही कॉलेज में थे लेकिन मैं गलत था धीरे धीरे जब हमने अपना दृष्टिकोण बदला वेस्टर्न या कथित मॉडर्न का चश्मा हटा के देखा तो ऐसे देशद्रोही सिर्फ मेरे कॉलेज में ही नहीं भारत के कोने-कोने में हैं।

क्यों हैं ऐसे देशद्रोही भारत के कोने-कोने में हम तो आज़ाद हो गए हैं ? हर साल भारत का झंडा लहराते हैं 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मानते है क्युकी १५ अगस्त १९४७ को जो देशद्रोही थे उनसे हमे आज़ादी मिली भारत का बड़ा भाग भी तोड़ कर मुलिम के नाम दे दिया गया फिर भी भारत के टुकड़े करने वाले आजतक भारत में फल फूल क्यों रहे हैं फिर हमें आज़ादी किससे मिली? मैं तो जहा देखता मुझे भारत परतंत्र ही नजर आ रहा हैं आखिर किसकी आज़ादी ? कैसी आज़ादी की देश का नाम विदेशियों ने अपने अनुरूप रखा देश का नाम बदल दिया भारत की आत्मा सनातन धर्म को ख़त्म करने का षड्यंत्र किया।

आखिर क्यों मेरे साथ रहने वाला मुस्लिम या ईसाई अपने मजहब अपनी संस्कृति अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं ? जबकि मैं मल्टीनेशनल कंपनी में बड़ा नौकरी करने के आलावा किसी और भविष्य को जानता ही नहीं था मूलतः मैं कौन हूँ ? मेरी संस्कृति क्या हैं? धर्म क्या हैं? मेरी संस्कृति का भविष्य क्या हैं ? इस बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था।


जबकि इसके उलट मुस्लिम कम उम्र में ही वे अपने मजहब का पूरा ज्ञान भी रखता हैं की उसका मजहब क्या हैं? उसकी संस्कृति क्या हैं ? उसके कुरआन के आयतो का अर्थ क्या हैं ? और इस्लाम का भविष्य कैसे सुनिश्चित हो सकता हैं?


लेकिन इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाले किसी भी हिन्दू लड़के-लड़कियों को शायद ही धर्म की परिभाषा का ज्ञान भी होगा या शायद ही अपने पूर्वजो के महान गौरवशाली इतिहास का उनको ज्ञान होगा। 95% हिन्दू युवा तो ऐसे होंगे जिनको एक मन्त्र का भी अर्थ सहित ज्ञान नहीं होगा। क्यों ?


मुस्लिम या ईसाई अपने अपने पूर्वज का कथित स्वर्णिम इतिहास को चिल्ला चिल्ला कर बताते हैं कोई कहता हैं अकबर महान था तो कोई कहता हैं बाबर महान था तो कोई कहता हैं भारत में कुछ नहीं था मुगलो ने सब बड़े बड़े भवन का निर्माण कराया तो अंग्रेजो ने हमें सभ्यता से जीना सिखाया और हम हिन्दू तालिया बजाते हैं क्यों क्युकी हमारी शिक्षा पद्धति भारत की भाषा नहीं बोलती वह ऐसे ही मुस्लिमो और ईसाईयों की भाषा बोलती हैं।


हमे अपने पूर्वजो का ज्ञान ही नहीं होने दिया गया हम तो यह सोचते हैं की सबकुछ इंग्लैंड अमेरिका वालो ने ही सिखाया आगे भी उनका ही मुँह ताकते रहते हैं।


इस भाषा को समझने की सूझ बुझ मेरे अंदर विकसित हुई और फिर मैंने भारत के गुलामी काल का और भारत के आज़ादी का इतिहास पढ़ना शुरू किया। मैंने देश-विदेश के अनेक लेखकों दार्शनिको कूटनीतिज्ञों को पढ़ा साथ ही कई इतिहासकारों द्वारा लिखित इतिहास को भी पढ़ा भारत के कई जगह घूमने के दवारन अनुभव द्वारा मिली जानकारी का भी इस लेख में संग्रह किया गया हैं।


भारत में घट रही घटनाओ को देखने से, बेहिसाब बढ़ती जनसँख्या, बेरोजगारी, प्रदुषण, गरीबी, भुखमरी के आकँड़ो को देखने से और इतिहास को गहराई से पढ़ने से बहुत ऐसी सही बातो का पता चलता हैं जो की पाठ्यपुस्तक से नदारद हैं ऐसा लगता हैं उन्हें छिपाने का प्रयास किया गया भारत का नाम ही नहीं बदला गया बल्कि भारत के पुरे पहचान को मिटाने का षड्यंत्र किया गया हैं और इस षड़यंत्र को बड़ी ही चालाकी से लोकतंत्र का चोला पहनाकर स्वतंत्र घोषित कर दिया हैं एक लिखी हुई स्क्रिप्ट की तरह।



हमने षड़यंत्र के इसी चोले को बेनकाब करने का कार्य कई कड़ियों को जोड़ एक एक अर्थपूर्ण बात पर पहुँचा हूँ की यह लोकतंत्र नहीं षड़यंत्र हैं भारत आज़ाद हैं यह सबसे बड़ा मजाक हैं।

मुझे अपनी संस्कृति पर गर्व करने का और इसके भविष्य की चिंता करने का सम्पूर्ण अधिकार हैं। मेरी संस्कृति कैसी हैं इस पर भी प्रश्न करने का अधिकार किसी को नहीं हैं।


50 से ज्यादा इस्लामिक देश और 70 से ज्यादा ईसाई देश हैं। इन देशो में कोई पूछने नहीं जाता की आपका मजहब या रिलिजन कैसा हैं ? इसीलिए हिन्दू संस्कृति पर भी किसी भी प्रकार का प्रश्न नहीं उठना चाहिए की हम कैसे हैं ?


हम कैसे हैं पूरी दुनिया जानती हैं सिंकदर ने भी जब भारत पर आक्रमण किया था वो भी जान गया था की भारत और भारतीय कैसे हैं लेकिन उसके जानने का तरिका हिंसात्मक था इसीलिए उसे हिंसात्मक ही जवाब मिला क्युकी उस समय गाँधी नहीं थे चाणक्य थे।


सिंकदर फिर कभी लड़ने लायक नहीं बचा। वह युद्ध उसके जीवन का अंतिम युद्ध बना। अपने देश लौटते समय रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गयी। कई ऐसे प्रामाणिक इतिहासकार हैं जो इस बात को कहते हैं। लेकिन भारत के शिक्षा से यह इतिहास गायब हैं।


इस्लामिक आतंकवादियों ने जब पर्शिया पर हमला किया और लोगो को इस्लाम कबुल कराया नहीं तो सबका गला काट दिया तो वहा से कुछ पर्शियन लोग नाव में बैठकर भागे। कही शरण नहीं मिला, हमने भारत ने उनको शरण दी आज हमारे साथ शांति सद्भाव के साथ रहते हैं। भारत के संस्कृति की महानता की बात करू तो शायद मेरा जीवन बित जाए फिर भी सभी बाते पूरी नहीं हो पाएंगी।


फिर भी हमें असहिष्णु कहा जाता हैं। सिंकदर को भारत के योद्धाओ ने हराया फिर भी प्रचारित किया गया की "जो जीता वही सिकंदर।" क्यों झूठा प्रचारित किया गया क्युकी सही इतिहास छुपाना हैं।


गाय को माता न कहे, गाय को काटकर खाये, भारत को माता न कहे, वन्दे मातरम पर गुस्साए फिर भी हम सभी हिन्दू मुस्लिम भाई-भाई चिल्लाय। कही ऐसी ही सच्चाई हमारी आज़ादी का तो नहीं हैं?


दूसरी बात इतने देश जब गर्व से अपने आपको अपने मजहब या रिलिजन के नाम से बता सकते हैं की ख़ुशी हैं की हम इस्लामिक देश हैं या ख़ुशी हैं हम ईसाई देश हैं या ख़ुशी हैं हम बौद्ध देश हैं या ख़ुशी हैं हम कम्युनिस्ट देश हैं या ख़ुशी हैं हम यहूदी देश हैं फिर हम हिन्दू आधिकारिक रूप से क्यू नहीं कह सकते की हमें भी ख़ुशी हैं और गर्व हैं की हम हिन्दू देश हैं ऐसा हम नहीं कह सकते क्युकी पूरी पृथ्वी पर हिन्दू के नाम एक स्कॉर मीटर इतना छोटा देश भी नहीं हैं


2020 के समय पुरे विश्व में जब इतनी बड़े संख्या में इस्लामिक, ईसाई, बौद्ध, कम्युनिस्ट देश आधिकारिक रूप से हैं फिर इस अधिकार से विश्व के तीसरे सबसे बड़े शांतिप्रिय हिन्दू धर्म को अलग क्यों रखा गया हैं ?


पुरे विश्व में एक भी देश ऐसा नहीं हैं जो हिन्दू के नाम से हो आखिर क्यों इस अधिकार से हिन्दू को वंचित रखा गया।


इतना तो तय है की भारत यदि आज़ाद रहता तो उसकी पहचान जरूर भारतीय होती। हिन्दू संस्कृति ही भारतीय संस्कृति हैं इसमें किसी को कोई संदेह नहीं हैं और यदि आपको संदेह हैं तो आपको अपना ज्ञान बढ़ाने की आवश्यकता हैं।


यह वंचित करने वाला कौन था ? आखिर क्यों हिन्दुओं के अपने देश को एक अंग्रेजी पहचान देकर धर्मनिरपेक्ष नया शब्द गढ़ नई परिभाषा बना कर एक कथित धर्मनिरपेक्ष बना दिया गया। क्या यह संस्कृति को मिटाने प्रयास नहीं हैं।


सम्पूर्ण विश्व को सभ्यता की परिभाषा हमने सिखाया जानवर से मनुष्य कैसे बनना है हम भारतियों ने ही सबसे पहले बताया। दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं हैं जो महाभारत में नहीं हैं। जो महाभारत में नहीं हैं वो पूरी दुनिया में नहीं हैं।


इतना आत्मविश्वास से कहने वाले वेद व्यास जी के एक ग्रन्थ में दुनिया के सभी विषयों को विस्तार से बताया गया हैं सोचिये सभी वेद सभी पुराण सभु उपनिषद उपवेद आदि आदि कितना ज्ञान का अथाह सागर हमारे पास हैं इतना ज्ञान रखने वाले देश को कोई असभ्य अंग्रेज आकर रहने का तरिका कैसे सीखा गया ? शासन करने का तरीका कैसे सीखा गया ?


तब प्रश्न उठता हैं की क्या सही में हम आजाद हैं या यह सबसे बड़ा मजाक हैं। इस बात को या इस षड्यंत्र को समझने के लिए जरुरी नहीं आपका दिमाग आइंस्टीन वाला होना चाहिए मैं बहुत बेसिक बात पर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ सर्व विदित हैं की

इसमें कोई संदेह नहीं हैं की भारत की मूल संस्कृति सनातन हिन्दू धर्म हैं कई इतिहासकारों या हिन्दू पंचांग को माने तो लाखो करोडो साल से भारत में सनातन संस्कृति जिसे अब हिन्दू धर्म कहा जाता हैं उसमे विस्वास करने वालो की जन्मस्थली हैं। 

यदि भारत आज़ाद हुआ तो वह भारतीयता या इस जगह के मूलनिवासी सनातन धर्म के संस्कृति की भी आज़ादी होनी चाहिए। मॉडर्न समय में अपने मजहब या रिलिजन का प्रचार प्रसार के लिए करोडो दी गई अनेक देश के हजारो संस्कृतियाँ, हजारी लाखो भाषा अनेक रहन-सहन के तौर तरीके सब मिटा दी गई सिर्फ अपना मत के विस्तार करने में। 

पूरे विश्व मे आधिकारिक रूप से कई ऐसे देश है जो इस्लामिक राष्ट्र है या ईसाई राष्ट्र है बौद्ध राष्ट्र है कम्युनिस्ट राष्ट्र है लेकिन कोई भी ऐसा डाक्यूमेंट्स या दस्तावेज नही है जो 

विस्तारवाद के दो बड़े खिलाड़ी हैं  का काम इस्लाम मत को दुनिया का एकमात्र मत बनाना हैं दूसरा हैं ईसाई जिसे अपने मत को पूरी दुनिया का एक मात्र मत बनाना हैं। भारत की संस्कृति ही एक मात्र ऐसी संस्कृति हैं जो कभी का कार्य नहीं कभी भी ग्रन्थ और तलवार लेकर किसी भी एक व्यक्ति को भी अपने मत में नहीं मिलाया।  पूरा विश्व यह बात अच्छी तरह से जानता हैं इसका प्रमाण यह हैं की इसराइल के राष्ट्रीय पुस्तक में भारत के एक अलग सम्मान दिया गया हैं इसीबात के लिए।

धर्म हमेशा दया शांति प्रेम का सन्देश देता हैं धर्म ही समाज को सभ्य बना सभ्यता को जन्म देता हैं धर्म कोई एक किताब में सिमित होने वाला ज्ञान नहीं हैं धर्म वो हैं जो हम धारण करते हैं और क्या धारण करना चाहिए और क्या धारण नहीं करना चाहिए इन्ही सब चीजों का बहुत ही विस्तार से चर्चा हमारे धर्म ग्रंथो में किया गया हैं। सबसे ज्यादा यदि किसी शब्द का गलत अर्थ भारत में लगाया गया हैं वह शब्द धर्म हैं। बड़ी चालाकी से धर्म के अर्थ को अनर्थ किया गया हैं। गाय खाने वाला और गाय को अपनी माता कहने वाले दोनों लोगो को धर्म कहा जा रहा हैं. "हिन्दू मुस्लिम ईसाई सभी धर्म समान हैं।" यह चुटकुला आप हमेशा सुनते आये होंगे। हमें पहले यह तो निश्चित कर लेना चहिये की धर्म हैं क्या इसकी क्या परिभाषा हैं। 

भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा हैं की मैं हर युग में धर्म की रक्षा करने के लिए अवतार लूँगा इस बात को माने तो क्या भगवान्

लगभग 72 सालो से हम भारतीय हर साल स्वतंत्रता दिवस मानते चले आ रहे है स्वंत्रता दिवस के बारे में हमें जो भी जानकारी मिली वह हमारे विद्यालय के पाठ्यपुस्तकों से मिली। जिसमे गिने चुने क्रन्तिकारी तथा विशेष समूह के लोग का ही महिमा मंडन किया गया हैं। 


हमें बताया गया "बिना खड़ग बिना ढाल साबरमती के संत (मोहनदास करमचंद गाँधी ) तूने कर दिया कमाल।" लेकिन जब हम पाठपुस्तक से अलग के किताबो जिनको सत्य जानने के लिए इग्नोर नहीं किया जा सकता उनसे पता चलता हैं की लाखो भारतियों ने अपने प्राण स्वतंत्रता के लिए, राष्ट्र के लिए अर्पित कर दिया था, हजारो क्रांतिकारी वन्दे मातरम का उद्घोष करते हुवे फाँसी के फंदे को अपने गले लगा लिया था, कितनो ने अंग्रेजी की गोलियाँ हँसते हँसते अपने छाती पर खाई.

क्या इतने बलिदान को भुला कर आप एक व्यक्ति को भारत के आज़ादी का सारा श्रेय कैसे दे सकते हैं? शिक्षा तंत्र, न्याय तंत्र, सविधान,आरक्षण, चिकित्सा तंत्र,  शिक्षण संस्थानों के कार्य प्रणाली और परिणामो को देखकर कई प्रश्न उठता हैं क्या सही में हम आजाद हैं 15 अगस्त 1947 को क्या हुआ था ?

यदि अंग्रेजो ने सिर्फ चुनाव की व्यवस्था कर दी होती तो भारत के आज का लोकतंत्र और अंग्रेजो के गुलामी तंत्र में रत्ती भर भी अंतर नहीं होता और तब हमको पता चलता की हम आज़ाद कहा हैं। बस 1947 के बाद चुनाव करने का अधिकार मिला बाकी सब अंग्रेजो द्वारा पहले ही सेट किया जा चूका था चाहे वो न्याय तंत्र हो, शिक्षा तंत्र हो.


आखिर किस प्रकार की आज़ादी हमें मिली हैं जहाँ पहले गाँव का आम किसान, हजाम, बुनकर, सोनार, बनिया, वेद उपनिषद का प्रमाण दे कर अपनी बात रखता हो, जहाँ गाँव-गाँव गुरुकुलों में वैज्ञानिक, सर्जन, कलाकार, दार्शनिक जनहित में फ्री में बैठा हो, वहाँ स्वतंत्रता के 72 सालो बाद आज भी कई गावो में एक अदद विद्यालय और एक बढ़िया हॉस्पिटल नहीं बन पाया साथ ही अशिक्षित नेरोजगार बीमार लोग तड़प तड़प मर रहे हैं बेरोजगारों और सनातन व्यवसाय को ख़त्म होता देख प्रश्न उठा हैं क्या हम आज़ाद हैं ?


भगवा ध्वज आज़ाद नहीं हैं।
Bhagwa Dhwaj 

क्या भारत आज़ाद हैं ?

  1. श्री राम के देश में अपने मंदिर के लिए न्याय तंत्र पर निर्भर रहना प्रश्न करने पर मजबूर करता हैं की क्या हम आज़ाद हैं? 
  2. हर दिन हो रहे हिन्दू नेताओ के हत्याओं को देख कर प्रश्न उठता हैं की क्या हम आज़ाद हैं ? 
  3. आतंकवादियों को बचाने के लिए रात बारह बजे सुप्रीम कोर्ट खुल जाता है तो प्रश्न उठता है की क्या हम आजाद हैं ? 
  4. कश्मीर में दिनदहाड़े कत्लेआम करके लाखो कश्मीरी पंडितो को मार के उनको उनके घर से भगा दिया जाता हैं तो प्रश्न उठता हैं की क्या हम सही में आज़ाद हैं ? 
  5. राम जन्मभूमि, कृष्ण जन्मभूमि, विश्वनाथ मंदिर जैसे सैकड़ो पवित्र मंदिरो पर खड़े मस्जिदों को देख कर प्रश्न उठता हैं की क्या भारतीय संस्कृति आज़ाद हैं ? 
  6. खँडहर हो रहे संस्कृत विद्यालयों को देख कर प्रश्न उठता हैं की क्या हम आज़ाद हैं ? 
  7. कोई भी गैर मजहबी मक्का मदीना में पैर तक नहीं रख सकता, वैटिकन सिटी में भी गैर ईसाई प्रवेश नहीं कर सकते लेकिन भारत के सांस्कृतिक राजधानी बनारस में मस्जिदों के बड़े बड़े मीनार पर खड़े होकर चिल्लाते मुल्ले मौलवियों और ईसाइयों को देख कर प्रश्न उठता हैं की क्या हम आज़ाद हैं ? 
  8. चमार शब्द कहने पर जात के नाम पर बिना जाँच जेल में ठुसे गए लोगो को देखकर प्रश्न उठता हैं की क्या हम आज़ाद हैं ?
  9.  आरक्षण की वजह से जब गदहे घोड़ों को पछाड़ देते है तो प्रश्न उठता है की क्या हम आज़ाद हैं?
  10.  मरते किसानो को देख कर प्रश्न उठता हैं की क्या हम आज़ाद हैं ? 
  11. प्रकृति के संसाधनों का युद्ध स्तर पर दोहन देखकर यह प्रश्न उठता हैं क्या हम आज़ाद हैं ?
  12. कटती गाय देख कर लगता हैं क्या हम आज़ाद हैं ?
  13. जिस तंत्र ने हमें सोने की चिड़िया बनाया जिस गुरुकुल शिक्षण पद्धति ने हमें विश्व गुरु बनाया उस तंत्र को मृत्यु शैय्या पर देख कर प्रश्न उठता हैं की क्या हम आज़ाद हैं ? 
  14. आज़ादी के बाद भी वीर सावरकर और सुभास बाबू जैसे भारत को आज़ाद करने वाले महान क्रांतिकारियों के साथ हुवे दुर्व्यवहार देख कर उनको आज़ादी के बाद भी देश निकाला या वीर सावरकर को नेहरू द्वारा लाल किला में कैद रखने के कानून को देखकर यह प्रश्न उठता हैं की क्या हम आज़ाद हैं ?  
  15. नीरा आर्या जैसे साहसी क्रन्तिकारी का पहले स्तन काटा गया फिर आज़ादी के बाद फूल बेचकर उन्होंने अपना जीवन गुजरा किया 1998 तक वो लावारिस बीमार वृद्धा का जीवन जी रही थी उनकी झोपडी को भी नेहरू सरकार द्वारा तोड़ दिया गया। नीरा आर्या की कहानी सुनकर मन में प्रश्न उठता हैं क्या हम सचमुच आज़ाद हैं। 


न्याय तंत्र, शिक्षा तंत्र को तथा इनके परिणामो को करीब से देखने पर मन में प्रश्न उठना लाजमी हैं आखिर जिसने हमें गुलाम बनाया हमारे संस्कृति को धरातल में पहुँचा दिया जिसने भारतीयों का नरसंहार किया, हजारो हिन्दू माँ-बहनो को अपने हरम में रखा उनका बलात हर लिया आखिर वो औरंगजेब, शाहजहाँ, अकबर हमारे पाठ्यपुस्तक में प्रेम के निशानी या महान कैसे हैं?


भारतीय शिक्षा तंत्र को देख कर ऐसा लगता हैं जैसे हमसे कुछ छुपाने की कोशिश की जा रही हैं पहला शिक्षा मंत्री कट्टर मौलवी था अब आप सोच सकते हैं हम या हमारी आने वाली पीढ़ी किस विचारधारा से प्रेरित पाठ्यपुस्तक पढ़ रही हैं। फिर हमारी मानसिकता उसी विचारधारा जैसी ही होंगी और हो भी गई है नहीं तो भारत माता की जो जय न बोले गाय जिसकी माता ना हो वो हमारे भाई कैसे फिर भी हम हिन्दू मुस्लिम भाई भाई चिल्लाते रहते हैं। क्या स्वतंत्र भारत की शिक्षा निति, जिसने भारत को कभी विश्वगुरु बनाया वैसा होना चाहिए या मुल्लो-मौलवियों, वामपंथियों, अंग्रेजो का गुणगान करने वाली होनी चाहिए ?




आज़ादी या सत्ता का हस्तरान्तरण:

सर्वविदित हैं की ब्रिटिश राज में सूरज कभी अस्त नहीं होता था। एक समय था की अमेरिका भी भारत की तरह अंग्रेजो का गुलाम था लेकिन उन्होंने भारत से पहले ही हिंसा के दम पर लड़ कर, मारकर मरकर उन्होंने अंग्रेजो को अपने देश से भगा दिया। फिर आज़ादी बाद अपनी जरुरत अनुसार अपने नियम बनाये, अपना सविधान बनाया।अमेरिकन ने अपने देश में वह सब नियम कानून बंद कर दिए जो कि अंग्रेजो के द्वारा बनाया था।

अंग्रेजी भाषा भी अमेरिकन ने अलग बना लिया सड़क परिवहन यहाँ तक की इलेक्ट्रिक बोर्ड का स्विच बटन भी अपने अनुसार किया।  स्वतंत्रता का अर्थ ही होता हैं की हम अपने तरीके से अपने घर को सजायेंगे जिधर जरुरत

होगा उधर उस हिसाब से नियम कानून बनाएंगे जैसी सिमा बनानी होगी हम अपने सहूलियत अनुसार अपनी सिमा का निर्धारण खुद करेंगे। 

आज़ाद हुवे पंछी को कोई नहीं बताता की उसको किस दिशा में उड़ना चाहिए, कहा जाना चाहिए? किस वृक्ष पर बैठना चाहिए किस पर नहीं। वह पक्षी आज़ाद हुआ हैं तो वह अपने मन से जिधर चाहेगा उधर उड़ेगा यह उसकी इक्षा हैं की वह किस वृक्ष की डाली पर बैठे यही तो उसकी  स्वतंत्रता हैं। या उसके पैर में लम्बी रस्सी बांध पिजड़े का दरवाजा खोल दिया जाये की जैसे ही वह पक्षी पिजड़े का दरवाजा खुला देख अपने आप को स्वतंत्र सोच कर उन्मुक्त गगन में उड़ान भरे कुछ दूर उड़ते ही धड़ाम से गिर जाए इसको आज़ादी नहीं लॉलीपाप कहते हैं जो की अंग्रेजो ने 15 अगस्त 1947 को हमें दिया  

भारत को आज़ाद करने से पहले से ही अंग्रेजो द्वारा बनाये गए नियमो-कानून में थोड़ा बहुत अदल-बदल के कथित नया दिखावे का सविधान निर्माण किया गया हैं सविधान निर्माण या गणतंत्र दिवस यह सब ढोंग हैं। आज भी सुप्रीम कोर्ट में भी बहुत ऐसे कानून हैं जो की अंग्रेजो के बनाये हैं। उन कानूनों के अनुसार ही  सुनवाई और सजा आज भी होती हैं जैसे IPC (इंडियन पैनल कोड)  अंग्रेजो ने जो भी कानून भारत को लूटने के लिए गुलाम बनाने के लिए बनाये थे वह सभी कानून या तंत्र हूबहू अंग्रेजो ने अपने नजदीकी सहयोगियों को दे कर यानी की सत्ता का हस्तारान्तरण नेहरू और गाँधी के हाथ में करके चले गए।

भारत में सत्ता चलाने के सारे नियम कानून वही अंग्रेजो वाले हैं जो आजतक अभी भी चल रहा हैं।  15 अगस्त 1947 को सत्ता का हस्तारान्तरण हुआ न की हमने अंग्रेजो को हरा कर उनको यहाँ से भगा कर आज़ादी पाई और हमने उनको अपना गुरु मान उनके ही सविधान को ढ़ोना शुरू कर दिया। पंडित छोड़ काले अंग्रेज बन गए।


भारत की कथित आज़ादी के बाद एक ऐसा शिक्षा मंत्री भारत को मिला जो किसी भी तरीके से भारतीय नहीं था भारतीयता से दूर-दूर तक उसका कोई लेना देना नहीं था एक मौलवी को पहली बार अंग्रेजो के बाद भारत का शिक्षा मंत्री बनाया गया


शिक्षा मंत्री से जुड़ा हुआ पद तो अंग्रेजो के जामने में ही स्थापित कर दिया गया था जिनका मुख्या उद्देश्य गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को ख़त्म करना और वेस्टर्न एजुकेशन सिस्टम ( पाश्चात्य शिक्षा पद्धति ) को बढ़ावा देना था अंग्रेजो ने शत-प्रतिशत सफलता पाई


आज अंग्रेज नहीं हैं फिर भी भारत को गुलाम बनाये रखने के लिए उनका बनाया हुआ सिस्टम फल फूल रहा हैं और इससे वो आज भी लाभान्वित हो रहे हैं। बहुत ही मास्टर क्लास योजना अंग्रेजो ने भारत देश की पहचान को मिटाने का योजना 200 300 साल पहले बनाया था जिससे देश को धीरे-धीरे उसके पहचान को बदलने का और बिना डंडे के डर के भी लम्बे समय तक गुलाम बनाये रखने का कार्य में अभीतक सफलता पा रहे हैं।



आज भारत में गुरुकुल एक मजाक बन के रह गया हैं सबकी मानसिकता कुछ इस तरह बदल गई गयी हैं की सभी कोई मॉडर्न बनना चाहता हैं और मॉडर्न का अर्थ इंग्लिश स्कूल इंग्लिश लाइफ स्टाइल इंग्लिश संस्कृति जो मॉडर्न के नाम पर असली में वेस्टर्न या पाश्चात्य संस्कृति हैं। मॉडर्न होना अच्छी बात हैं लेकिन मॉडर्न होने के नाम पर हमें वेस्टर्न क्यों बनाया जा रहा हैं।


अंग्रेजो ने हमारे साथ बहुत खतरनाक खेल को खेला हैं यह खेल १० साल बिस साल तक नहीं चलता यह खेल सैकड़ों साल तक चलता रहता हैं और यदि बिच में खेलने वाले और मोहरा बने लोगो को जाग्रति नहीं होती क्रांति नहीं होती तो खेल का एक ही परिणाम हैं और वो परिणाम हैं अंत चाहे संस्कृति के अंत का हो या भाषा के अंत का हो ज्ञान के अंत का हो पहचान के अंत का हो


यह खेल अंत करके ही दम लेती हैं पहले यह खेल तलवार के दम पर खेला गया लेकिन हमारे वीर पूर्वजों ने पुरे साहस के साथ हमारी संस्कृति को बचाये रखा लेकिन अब यह खेल मानसिक खेल हो गया हैं यह खेल विज्ञापन के द्वारा बॉलीवुड के द्वारा, बड़े-बड़े आयोजनों के द्वारा, शिक्षा पद्धति के द्वारा, न्याय तंत्र के द्वारा, धीरे धीरे बड़े प्यार से खेला जा रहा हैं।



हमें पता ही नहीं चलता और कोई दिल दिमाग पर हावी हो जाता हैं। इस खेल को हम भारतीयों को समझाना होगा नहीं तो हमारे पास मुँह में राम और दो चार पत्थर की मूर्तियाँ ही बच जाएगी सारा ज्ञान विज्ञान ग्रंथों वेद उपनिषदों पुराणों को दूषित प्रदूषित कर उसे हमसे छीन लिया जाएगा आधे से ज्यादा छिना भी जा चुका हैं


हम अंत के बहुत करीब हैं पहले तो वीर योद्धा थे लड़कर बचा लेते थे लेकिन अब तो हम तंत्र से लड़ने की भी कोई सोच नहीं सकता। वह तो 15 मिनट पुलिस हटाने पर 100 करोड़ के गर्दन काटने के बात करते हैं हमें संभलना होगा यह खेल सैकड़ो साल का हैं इसके परिणाम अब दिखने लगे हैं जितनी तेजी से गुरुकुल का अंत हुआ हैं उससे ज्यादा तेजी से मदरसे मस्जिदे खोली गई हैं


मुस्लिम आज़ादी के समय 1 या 2 करोड़ की जनसँख्या वाले थे। आज 25 से 30 करोड़ की जनसंख्या वाले हैं 1947 में कुछ मस्जिद या मदरसे थे आज लाखो मस्जिद और मदरसे हैं, जो सरकारी सुविधा पर चलते हैं देश के संसाधनों पर सबसे पहला हक़ मुसलमानो का हैं ऐसा कहने वाले प्रधानमंत्री मिले इस्लाम के नाम पर कश्मीर को स्पेशल सुविधा दी गयी इस्लाम के नाम पर सरकारी योजना निकाली जाती हैं फिर भी इनको

आज़ादी चाहिए। इनके कहने का साफ सीधा अर्थ यह हैं की इनको एक इस्लामिक राष्ट्र चाहिए पकिस्तान ले ही लिया लेकिन विस्तारवाद के विचार से ग्रसित इन लोगो को पूरा भारत भी चाहिए।

सही मायनो में देखा जाये तो आज़ादी तो मुस्लिमो को ही मिली तभी तो देश की राजधानी में भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह ! के नारे लगाते हैं। आज़ादी तो उन कश्मीर या पकिस्तान के मुस्लिमो को मिली जिहोने कश्मीरी पंडितो या पकिस्तान में रहने वाले लाखो करोडो हिन्दुओं का गला काट दिया, सामूहिक बलात्कार कर उनका धन लूट लिया उन्हें कश्मीर घाटी या पकिस्तान छोड़ने पर विवश कर दिया।


आज़ादी तो ईसाइयो को मिली की वे अपने स्कूलों में माँ सरस्वती की पूजा बंद करे, रक्षाबंधन को बंद करे, लेकिन अपनी असंस्कारी लव डे, किस डे, वैलेंटाइन डे, रोज़ डे ये सब मनाने की शिक्षा देने की आज़ादी मिली वनो में निवास करने वाले हमारे वनवासी भाइयों के धर्मपरिवर्तन करने की आज़ादी मिली। हिन्दू के नाम पर सही मायनो में आज़ादी मुस्लिम और ईसाई विचारधारा वाले लोगो को मिली भारत तो आज भी गुलाम हैं आज़ादी इंडिया को मिली हैं। भारत मृत्यु सैया पर पड़ा हैं।


यदि कोई देश की राजधानी में फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन के नाम पर भारत को तोड़ने की कसम खा सकता हैं तो हम फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन का सही उपयोग कर भारत को जोड़ने की बात क्यों नहीं कर सकते हैं और यह किताब एक भारतीय युवा द्वारा फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन को प्रैक्टिस करने का ही परिणाम हैं।

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