महीनो दर्द से तड़पते तड़पते हुई थी औरंगजेब की मृत्यु।

 भारतीय पाठ्य पुस्तक मुगलो बादशाहो के झूठा गुणगान से भरा हुआ है। आपसी ईर्ष्या, नफरत, जलन से भरे मुस्लिम बादशाहो ने क्रूरता तथा निर्दयता की सारी हदे पार कर दी थी। कोई अपने बाप को भट्टी में झोक दिया तो कोई अपने बाप को प्यास से तड़पा तड़पा के मार दिया तो कोई अपनी 63 पत्नियों को जिन्दा कब्र में दफना दिया तो कोई अपने मित्र के ही नाबालिग बेटी से निकाह किया। मुग़ल इतिहास घृणा और नफरत से भरा पड़ा हैं फिर भी भारत में इन बादशाहो को महान बताया जाता हैं। आज हम इस लेख के माध्यम से एक क्रुरु मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के बारे में जानेंगे की वो कितना हरामी था।



औरंगजेब का पूरा नाम अबुल मुजफ्फर मुहि-उद-दिन मुहम्म्द था। औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को गुजरात के दाहोद नामक स्थान पर हुआ था। औरंगज़ेब के पिता का नाम शाहजहाँ तथा माता का नाम मुमताज था। औरंगजेब अपने माता पिता का तीसरा बेटा तथा छठा संतान था। औरंगजेब की माता मुमताज महल का निधन 18वा बच्चा पैदा करने के दौरान हुआ था।

 औरंगजेब ने अपने बाप को प्यास से तड़पा तड़पा के मार डाला था :-

औरंगजेब ने सत्ता को अपने हाथ में लेने के लिए अपने बाप को जंजीरों में बाँध कर कैद कर दिया था। वह अपने जन्म देने वाले बुड्ढे हो चुके पिता से इतना नफरत करता था की जानबूझकर पिने का पानी एक फूटे हुवे बर्तन में भिजवाता था ताकि जल्दी ही बर्तन का पानी गिर जाए और उसका बाप शाहजहाँ की प्यास ना बुझ सके। प्यास और भूख से तड़पते हुवे शाहजहाँ ने अपने बेटे औरंगजेब को एक पत्र लिखा था की " तुझसे अच्छे तो हिन्दू हैं जो अपने मृत पितरो को भी पानी देते हैं और तू कैसा मुसलमान हैं जो अपने जीवित पिता को भी पानी के लिए तरसा रहा हैं। " यह शब्द शाहजहाँ द्वारा लिखे गए अंतिम शब्द थे और भूख प्यास से तड़पते हुवे शाहजहाँ ने कारागार में ही अपना प्राण त्याग दिया। 



पाँचो समय का नमाज पढ़ने वाले औरंगजेब को पूरा कुरआन कंठस्थ याद था वह नियमित हदीस का पाठ करता था और सच्चा मुसलमान की भाँति अल्लाह की पूजा करता था। इससे हमें यह ज्ञान मिलता हैं की कुरआन हदीस और अल्लाह का पूजा भी पिता के प्रति प्रेम को नहीं जगा सकता। शायद इसीलिए एक सच्चे मुसलमान ने अपने ही पिता को भूख प्यास से मरने को मजबूर कर दिया।  

काशी विश्वनाथ मंदिर तथा मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि का विध्वंशक भी था :-

कहा जाता है की औरंगजेब इतना अधर्मी मुस्लिम आज तक कोई नहीं हुआ हैं। शिक्षा तथा आश्था का केंद्र कहे जाने वाले हजारो मंदिरो, गुरुकुलों को औरंजेब ने तोड़ फोड़ के बराबर कर दिया था। कशी विश्वनाथ मंदिर भारत के सबसे प्रमुख मंदिरो में से एक है उसको भी इस औरंजेब ने हमेशा के लिए ख़त्म करने का प्रयास किया साथ ही मथुरा स्थित श्री कृष्ण जन्मभूमि को भी तहस नहस कर दिया था। आज भी कशी विश्वनाथ मंदिर के ऊपर बना ज्ञानवापी मस्जिद उसके गुनाहों का प्रमाण हैं। 



ढाई मन जनेऊ से पानी गर्म कर प्रतिदिन स्नान करता था:-

अल्लाह के आदेशनुसार वह काफिर (मुस्लिम छोड़ कर सभी लोग ) का पृथ्वी से समूल नाश करने के लिए ढृढ़ संकल्पित था जिस वजह से वह प्रतिदिन हजारो हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन कर उनका जनेऊ उतरवा कर उससे  पानी गर्म करता था। जो हिन्दू इस्लाम को काबुल नहीं करता था उसका गाला काट दिया जाता था और उनकी स्त्रियों के साथ खुले सड़क पर सबके सामने बलात्कार किया जाता था। औरंगजेब के इन कार्यो से काफिरो का नाश तो नहीं हो पाया लेकिन औरंगजेब की दर्दनाक मृत्यु जरुर हो गई। 


औरंगजेब का वध का जिम्मा साधू संतो ने अपने हाथ में लिया :-

औरंगजेब और हिन्दुओ के प्रति उसकी क्रूरता से लगभग हम सभी परिचित हैं परन्तु उसके मौत की कहानी बहुत ज्यादा लोग नहीं जानते हैं।  औरंजेब के वध की  वीर पूर्वजो की वीर गाथा हैं जिसे हमें याद करते रहना चाहिए और अपनी भावी पीढ़ी को भी बतानी चाहिए। 

14 वी और 15 वी शताब्दी में अपने ही देश के गद्दारो  मिलीभगत के कारन औरंजेब को हरण बहुत ही मुश्किल हो चूका था। कई युद्धों में हार के बाद हिन्दू साधू संतो ने यह निर्णय लिया की अब व्यक्ति निर्माण का कार्य हम खुद करेंगे ताकि औरंगजेब जैसे दुष्ट तानाशाह का वध हो सके। 

समर्थ गुरु रामदास भी इसी श्रेणी में आते हैं जिन्होंने वीर शिवजी जैसे शूरवीर का निर्माण किया। वही प्राणनाथ प्रभु जी ने बुंदेलखंड से राजा क्षत्रसाल का निर्माण किया। 

उस समय तक शिवजी महाराज का स्वर्गावास हो चुका था तथा संभाजी के अंग अंग काटकर नृशंस हत्या औरंगजेब के सामने ही की जा चुकी थी। 

इसके बाद हिन्दू साधू संतो के अगुवाई में औरंजेब के मारने के कई प्रयास किये गए जिसमे सभी धर्मो के धर्म गुरु तथा योद्धा सम्मिलित थे।  आपको बता दे की उस समय औरंगजेब की सेना धन और शक्ति के मामले में सबसे बड़ी सेना थी फिर भी हिन्दू वीरो ने हार नहीं मानी और औरंजेब को मारने का प्रयास होता रहा। लेकिन वो जेहादी किस्मत का धनि था या गद्दारो की वजह से बच जाया करता था।  



फिर एक दिन अंत में प्राण नाथ प्रभु जी ने कहा की औरंगजेब का मरना बहुत जरुरी है एक एक दिन भरी पड़ रहा हैं और राजा क्षत्रसाल को अंतिम युद्ध के लिए तैयार होने को कहा। राजा क्षत्रसाल मानो अपने गुरु के आदेश का इन्तजार कर रहे थे वो हर पल औरंजेब के वध करने के लिए आतुर थे पहले भी उन्होंने कई असफल प्रयास किया था। 

फिर प्राणनाथ प्रभु जी ने एक ख़ास प्रकार का जहरीली खंजर क्षत्रसाल राजा को दिया और बोले की यह खंजर पूरा नहीं मारना हैं। नहीं तो औरंगजेब की तत्काल मृत्यु हो जाएगी इसीलिए आधे इंच का लम्बा चीरा मारना हैं ताकि  धीरे धीरे फैले और औरंगजेब महीनो तड़प तड़प कर मरे। 

ख़ुशी की बात यह थी की राजा क्षत्रसाल अपने गुरु के आशीर्वाद से इस योजना को सफलता पूर्वक पूरा किया और औरंगजेब को लम्बा चीरा मारा जिससे की महीनो वह अपने बिस्तर पर पड़ा रहा और दर्द से कराहता रहा। 
अंत में कई महीनो के बाद कुत्ते की भाती औरंगजेब की मृत्यु हुई और भारत में खून की नदिया बहनी थोड़ी कम हुई।  

औरंगशाही में औरंगजेब ने खुद लिखा हैं की उसके मृत्यु का कारन प्राणनाथ प्रभु तथा राजा क्षत्रसाल थे।  


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