क्या आप जानते है पितृ पक्ष के पीछे क्या विज्ञान हैं ? क्यों किया जाता हैं पितृ श्राद्ध ?

Pitra Paksh :- हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा करना सबसे बड़ी पूजा मानी जाती हैं लेकिन उनके शरीर छोड़ने के पश्चात भी हम उन्हें भुला न दे और उन्हें भूखा प्यासा प्रेत योनि में ही न छोड़ दे इसीलिए बाद में भी उनकी तृप्ति के लिए हर वर्ष एक विशेष काल जिसे पितृ पक्ष कहा जाता हैं में उनका श्राद्ध करने को सबसे सर्वश्रेष्ठ धर्म बताया गया हैं।

मृत्यु होने के बाद दसवे दिन (दशगात्र) और सोलहवे दिन होने वाला श्राद्ध कर्म (षोडशी सपिण्डन) तक आत्मा एक सूक्ष्म शरीर धारण करती हैं वह शरीर अभी भी मोह, भूख, प्यास के बंधन में बंधी रहती हैं। पुराणों में इसी सूक्ष्म शरीर को प्रेत कहा गया हैं जिसे आत्मा मृत्यु के बाद धारण करती हैं। 


Pitra Paksh 

प्रेम के अतिरेक की अवस्था "प्रेत" है क्युकी आत्मा जो सूक्ष्म शरीर धारण की हुई हैं उसमे अभी भी भूख, प्यास और मोह के प्रेम का अतिरेक रहता है। जिस कारण वह प्रेत बेचैन रहता हैं चारों तरफ भटकता हैं लेकिन ना तो शीतल जल ही प्यास बुझा पाती हैं, ना ही भोजन का भण्डार भूख मिटा पाते हैं और ना ही अपने पुत्र-पुत्री का मोह मिट पाती हैं। 

सोलहवे दिन विधि पूर्वक श्राद्ध, चावल का पिंडदान, तर्पण, जलांजलि आदि देने से पितृ को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती हैं। उसके बाद आत्मा प्रेत से पितरों में सम्मिलित हो जाती हैं फिर हर वर्ष Pitra Paksh में उनके मृत्युतिथि के अनुसार उनका श्राद्धकर्म किया जाता हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता हैं। 

पितृ पक्ष प्रत्येक वर्ष हिन्दू कैलेंडर अनुसार अश्विन मास के कृष्णपक्ष प्रतिपदा अर्थात पूर्णिमा से शुरू होकर सोलह दिन बाद अमावस्या के दिन ख़त्म हो जाती हैं। इस अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या भी कहते हैं। 2020 में यह 2 सितम्बर से शुरू कर 17 सितम्बर को ख़त्म हो रहा हैं।

अश्विनी मास के यह सोलह दिन Pitra Paksh पर्व के नाम से विख्यात हैं। इन सोलह दिनों में पुत्र अपने पितृ (पूर्वजों) जो अपने शरीर को छोड़ चुके हैं उनको याद करते हैं उनकी पितृ पूजा या श्राद्ध करते हैं, उन्हें जल अर्पित करते हैं उनके मृत्यु तिथि पर विशेष रूप से भोजन प्रसाद रूप में चढ़ाते हैं साथ ही पिण्डदान, तर्पण आदि करते हैं। शास्त्रों में पितृ पक्ष में पितृ पूजा या पितृ श्राद्ध करना पितृ ऋण से मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग बताया गया हैं।  

Pitra Paksh 2020:- श्राद्ध क्या हैं ? 

श्रद्धया इदं श्राद्धम :- श्रद्धा से जो किया जाए वह श्राद्ध हैं। पितृ ऋण से मुक्ति हेतु Pitra Paksh में पुरे विधि-विधान से पितृ पूजा या श्राद्ध करना चाहिए। यह सबसे अनुकूल काल होता हैं पितृ ऋण से मुक्ति के लिए। पितृ पक्ष की विशेषता का वर्णन रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद हर जगह मिलता हैं। 

भारतीय धर्मग्रंथो से हम सभी को एक बात पता चलती हैं की किसी भी मनुष्य के ऊपर तीन प्रमुख ऋण होते हैं - "पितृ ऋण, देव ऋण और ऋषि ऋण। इनमे भी पितृ ऋण सबसे महत्व पूर्ण हैं। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सभी बुजुर्ग जो शरीर छोड़ चुके हैं वो सभी सम्मिलित हैं। मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही पितृ ऋण से मुक्त होना हैं।  

पितृ के तर्पण से पहले दिव्य देव तर्पण, दिव्य ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण करने के पश्चात ही स्व- पितृ तर्पण किया जाता हैं। पितृ पक्ष में पितृ पूजा करके हम इन तीनो प्रमुख ऋण देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण से मुक्त हो सकते हैं।    





यह पर्व, महापर्व हैं। पुराणों में कहा गया हैं की इन 16 दिन  के लिए यमराज द्वारा सभी आत्माओं को मुक्त कर दिया जाता हैं। ब्रह्मांडीय ऊर्जा द्वारा वे सभी पितर Pitra Paksh में पृथ्वी पर उपस्थित होते हैं। ये सभी अपने वंशजो के पास सूक्ष्म रूप में जाते हैं ताकि मनुष्यों को अपने पितृ पूजा द्वारा पितृ ऋण से मुक्त हो सके और वे अपना आशीर्वाद दे सकें।  

महाभारत में पितृ पक्ष का वर्णन 

इस पर्व की महत्ता समझने के लिए महाभारत से जुड़ा एक छोटा सा प्रसंग की चर्चा हम यहाँ करना आवश्यक समझते हैं जिससे की इस पर्व की विशेषता समझ में आ सके। 

उसके बाद पितृ पक्ष और पितृ पूजा से जुड़ी, रहस्य और विज्ञान की चर्चा करेंगे साथ ही पितृ पूजा का विधि-विधान की भी चर्चा की जाएगी। तो बने रहिये हमारे साथ अंत तक तो चलिए महाभारत का वह प्रसंग शुरू करते हैं - 

महाभारत युद्ध के पश्चात् उसमे भाग लिए सभी वीर अपने कर्मो के फल के कारण कुछ समय स्वर्ग तो कुछ समय नरक में बिताया।  योद्धा कर्ण जब स्वर्ग में थे तो एक बार उन्हें खाने में सोना-चाँदी, हिरा-मोती आदि परोसा गया उन्होंने देवराज इंद्र से इसका कारण पूछा। 

देवराज इंद्र ने उत्तर देते हुवे कहा की महादानी कर्ण तुमने अपने पुरे जीवन में बहुत हिरे-मोती जमीन यहाँ तक अपना जीवन तक मित्रता के नाम पर दान कर दिया लेकिन आपने कभी भी अन्न का दाना भी  पूर्वजों के नाम पर दान किया इसीलिए आज आपको अन्न नहीं परोसा। 
 

कर्ण के पुनर्जन्म की कहानी 

कर्ण ने कहा मुझे नहीं पता था की मेरे पूर्वज कौन थे ? महाराज इंद्र ने कहा की प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है की वह अपने पूर्वजों के नाम दान उपदान करें भले वो उन्हें जनता हो या न जानता हो। पितृ पूजा प्रत्येक पुत्र का सर्वप्रथम कर्तव्य हैं। कर्मफल के कारण कोई कोई अपने पूर्वजो को नहीं जान पाता हैं। 

महादानी कर्ण ने इसका समाधान पूछा तब भगवान् इन्द्र ने उन्हें पृथ्वी पर जाकर पितृ पक्ष में 16 दिनों तक श्राद्धकर्म करने का दान-उपदान करने का मार्ग सुझाया था। कर्ण ने पुनर्जन्म लेकर इस मार्ग का अनुसरण किया और पितृ पक्ष के 16 दिनों श्राद्धकर्म पुरे विधि-विधान से किया।  यही पितृ पूजा कर्ण के मुक्ति का कारण भी बनी। 

सर्वमान्य हिन्दू धर्मग्रंन्थ श्री राम चरित मानस में भी पितृ श्राद्ध का महत्व बताया गया हैं। रामायण काल में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम द्वारा गोदावरी के तट पर अपने पिता श्री दशरथ और जटायु को शरीर छोड़ने पश्चात् जलांजलि  तथा भरत जी द्वारा दशगात्र नामक विधि-विधान करने का वर्णन तुलसी रामायण में हैं।  "भरत कीन्हि दशगात्र विधाना।" 




पितृ पूजा के कुछ नियम - Pitru Paksh 

तो इस प्रकार हमने पितृ पक्ष के महत्व को जाना। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पितृ का श्राद्ध या पूजा किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। जिस तिथि को माता-पिता  देहांत होता हैं, उसी तिथि को पितृ पक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता हैं। 

शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में पितरो के नाम पर जो अपने शक्ति सामर्थ्य अनुसार शास्त्रविधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध,  पूजा दान आदि करता हैं उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। और घर परिवार व्यवसाय में उन्नत्ति होती हैं। 

पितृ दोष के कारण 

पितृ दोष के अनेक कारण होते हैं। परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो जाने की वजह से, किसी की मृत्यु हो जाने के बाद उनका श्राद्ध कर्म नहीं करने की वजह से, जीवित माता-पिता या बुर्जुगो का अपमान करने से उनको कष्ट देने से, वार्षिक श्राद्ध पितृ पक्ष में न करने की वजह से और साड़ी सुख-सुविधा होने के बावजूद मन अशांत रहता  हैं यह भी एक पितृ दोष का कारण होता हैं।

फलस्वरूप परिवार में अनेकानेक दुःख अशांति आने का डर बना रहता हैं कई बार परिवार में अशांति, वंश वृद्धि में रुकावट, बीमारी या आर्थिक हानि भी पहुँच जाती हैं। 

पितृ दोष के निवारण के लिए शास्त्रीय विधि अनुसार उनकी आत्मा की शांति के लिए किसी पवित्र स्थान जैसे गया या बनारस में श्राद्ध कराएँ। अपने माता-पिता या बुजुर्गो का अपमान न करें। 

वैसे तो आम तौर पर प्रत्येक अमावस्या को पितरो का श्राद्ध किया जा सकता हैं लेकिन अश्वनी कृष्ण प्रतिपदा से शुरू होने वाले 16 दिन अर्थात पितृपक्ष में मृत्युतिथि अनुसार श्राद्ध या पितृ पूजा करने का फल सर्वोपरि हैं। 

जिनको अपने पितरो के देहांत की तिथि की जानकारी नहीं हैं वे पितृ पक्ष के अंतिम दिन अमावस्या को जिसे सर्व पितृ अमावस्या या महालय अमावस्या कहा जाता हैं उस दिन श्राद्ध करते हैं। दुर्घटना से या आत्महत्या से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध पितृ पक्ष के चतुर्दशी तिथि को किया जाता हैं। 

श्राद्ध करने के लिए सबसे पवित्र जगह- Pitra Paksh  

पितृ पक्ष में हिन्दू लोग मन, वचन, वाणी सहित सभी इन्द्रियों पर संयम रखते हैं। हमेशा पितृ को स्मरण करते हैं, उनकी पूजा करते हैं और निर्धनों और ब्राह्मणों को दान करते हैं। 

पुराणों में बिहार राज्य में स्थित गया नामक स्थान पर अपने पितरो का श्राद्ध करने का विशेष फल प्राप्त होता हैं। 
वैसे तो हमेशा श्राद्ध करने के लिए कोई न कोई अति शुभ मुहूर्त रहता हैं लेकिन गया जी में हर घड़ी शुभ मुहूर्त हैं यहाँ पर किसी भी समय पितरों का श्राद्ध किया जा सकता हैं। 

सोचिए बिहार के पास गया नामक महान स्थान है जो हर पल मुक्ति प्रदान करता हैं लेकिन अव्यवस्था के कारण उचित मार्केटिंग नहीं होने के कारण, आज गया जी सुविधा और मुक्ति कराने वालो के आभाव में हैं। 

गया जी में लोग जलांजलि देने के लिए पानी के लिए तरस जाते हैं आधे समय भयंकर सूखा तो आधे समय भयंकर बाढ़ ही रहती हैं इसी उथल-पुथल में वर्ष बीत जाता हैं। 

आज से पित्र पक्ष शुरु हो गया ,और ज्यादातर धार्मिक स्थान जहा पर पित्र शांति कराई जाती थी वो इस महामारी के कारण बन्द पड़े है। ऐसी स्तिथि में क्या किया जाए?
तो मित्रो आप अपने घर पर भी श्रद्धा भाव से पितरों के निम्मित उपाय कर सकते है ।

रोज शाम को दिन छिपने के पश्चात एक लोटे जल से पितरों को याद करके घर का मुख्य द्वार सींचे ।
सुबह में पितरों के निम्मित भगवत गीता का पाठ करे उसके पश्चात पितर स्तोत्रम पढ़े ।

घर मे कलह बिल्कुल भी न करे बिल्कुल शांत रहे किसी भी प्रकार के कलह को घर मे बिल्कुल भी जगह न दे।।
श्राद्ध बिना श्रद्धा के नही होता ।

अगर हमारे कुल में कोई पितर प्रेत बाधित है तो साथ मे गजेंद्र मोक्ष का भी पाठ करे ।।

भगवान से प्राथर्ना करे हमारे पितरों का मार्ग प्रकाशमय हो उनको किसी भी प्रकार का कष्ट न हो ।
 गोविंद से पितरों की गति के लिए प्राथर्ना करे।

पितरों को भोग लगाएं उनसे क्षमा याचना करे ।।हमसे कोई भी भूल चुक हुई हो उसे क्षमा कर हमारे कुल पर कृपा दृष्टि बनाये । भोग लगाने के बाद कुछ भोग निकाल कर कौवो के लिए निकाल कर गाय को रोटी दे।।

भगवान ने चाह पित्र कृपा अवश्य प्राप्त होगी ।।
 पितर स्तोत्रम अवश्य पढ़ें या सुने ।।

पितृस्तोत्र
                                                              ।।रूचिरूवाच।।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्। नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा। सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा। तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा। द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च। योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु। स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा। नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्। अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:। नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।
🙏🙏🙏
जय माँ भवानी

आखिर Pitra Paksh के पीछे क्या रहस्य हैं ? हिन्दू लोग सनातन काल से क्यों पितृ लोगो की पूजा करते रहे हैं ?

भारत के लोग पुरे विश्व में पूजा करने के लिए जाने जाते हैं। पूजा के अनेक प्रकार हैं अनेक अर्थ हैं लेकिन सबका उद्देश्य एक ही हैं और वह उद्देश्य यह हैं की उस सर्वशक्तिशाली, परमानन्द का साक्षात्कार करना, उन्हीं को प्राप्त कर उन्हीं में विलीन हो जाना और इस जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति पाना। 

भारतीय इतिहास में अनेक महापुरुष ऐसे हुवे, जिन्होंने उस परम सत्य का साक्षात्कार किया हैं तथा उस सत्य को विभिन्न प्रकार के रूप में व्यक्त किया हैं। विविधता में एकता ही भारत की संस्कृति हैं।  

33 कोटि(प्रकार) देवी देवता, कई कोटि उपासना विधि, कई भाषाएँ, हजारो बोलिया, खान-पान, रहन-सहन सब चीज अलग अलग हैं फिर भी सबका उद्देश्य एक हैं उस सर्वशक्तिशाली तक पहुंचना उसको प्राप्त करना आत्मसात करना। जैसे समुद्र का जल और लोटे का जल वस्तुतः एक ही हैं बस पात्र का ही भेद हैं। 

A hindu performing pitra puja
A hindu performing pitra puja 


परम सत्य का साक्षात्कार करने वाले हमारे ऋषि मुनियो के बनाए गए परम्परा द्वारा, हमारे पूर्वजो द्वारा हमें यह ज्ञान हुआ की मृत्यु अंत नहीं, मृत्यु मुक्ति हैं। परिवार या कोई नजदीकी की मृत्यु हो जाती हैं तो मोह प्रेम के कारण हमें दुःख होता हैं हम विलाप करते हैं।  

यदि ज्ञान रूप से देखा जाए तो यही एक सत्य हैं जो अपरिवर्तनीय हैं "जो आया हैं उसको जाना ही हैं " लेकिन जो आया हैं वो कहा से आया है और कहा जाएगा इस बात को जानने की जिज्ञासा हमेशा से मनुष्यों को रही हैं। इस जिज्ञासा को हमारे ऋषि मुनियों ने बड़े ही गूढ़ रूप से अपने ग्रंथो में बताया हैं।  

जरुरी नहीं की जो हम देख रहे हैं, जो हम सुन रहे हैं,जो हम अनुभव कर रहे हैं, वही दुनिया हैं वही अंतिम सत्य हैं। परमाणु को हम नहीं देख सकते लेकिन वो हैं। हम वही देख सकते हैं जितनी हमारी आँखों को देखने की क्षमता हैं ज्यादा क्षमता की आँखों से यही दुनिया बिलकुल उलट दिखेगी जैसे माइक्रोस्कोप दूरबीन। 

भौतिक ही अंतिम सत्य नहीं हैं इस बात को मॉडर्न वैज्ञानिक भी सिद्ध कर चुके हैं ड्यूल नेचर ऑफ़ पार्टिकल। यह शरीर अंतिम सत्य नहीं हैं हम सोचते हैं की यह फिजिकल बॉडी ही मैं हूँ पाश्चात्य सोच यही हैं जन्म होते ही मैं मेरा अस्तित्व बना मृत्यु होते ही सबकुछ मेरा अस्तित्व भी ख़त्म।



परन्तु सनातन लोग ऐसा नहीं सोचते या ऐसा उनके पूर्वजो ने नहीं बताया हैं। सनातन लोगो का विचार यह हैं की इस फिजिकल बॉडी के अलावा भी एक एनर्जी हैं जो इस फिजिकल बॉडी के अंगो को चला रही हैं इस एनर्जी से ही दिमाग और धड़कन को शक्ति मिलती हैं लेकिन यह एनर्जी कभी मरती नहीं हैं फिजिकल बॉडी मरती हैं। "मै नहीं मरा मेरा शरीर मरा।"


ऊर्जा का कभी अंत नहीं होता मनुष्य अपने विवेक से इस एनर्जी को बस ट्रांसफॉर्म कर पाता हैं। हमारे कई ग्रंथो में कितनी ऐसी कहानियाँ हैं की हमारे ऋषि मुनि इस एनर्जी को भली प्रकार जान चुके थे उन लोगो ने इस एनर्जी का सम्पूर्ण कण्ट्रोल सिद्ध कर लिया था। 

मॉडर्न विज्ञान ने कहा हैं एनर्जी को ना ही बनाया जा सकता हैं और ना ही इसको नष्ट किया जा सकता हैं इसके बस एक रूप से दूसरे रूप में ट्रांसफर किया जा सकता हैं। मॉडर्न विज्ञान में इसको "ऊर्जा संरक्षण का नियम" कहते हैं। इस ऊर्जा या एनर्जी को हमारे ऋषि मुनि ने आत्मा कहा हैं।  

इसे आत्मा या सूक्ष्म शरीर भी कहा गया हैं। फिजिकल बॉडी मतलब भौतिक शरीर सिर्फ मनुष्य का ही नहीं सभी जिव, पेड़-पौधे, जानवर, मछली इन सब शरीर में वह एनर्जी रहती हैं तभी यह शरीर शिव हैं बिना एनर्जी, शक्ति या आत्मा के शरीर शव हैं।

A hindu performing pitra puja
A hindu performing pitra puja 


आत्मा कर्मो के फल के बंधन से बंधी हैं आत्मा शरीर द्वारा जिन कर्मो में संलिप्त रहता हैं उसी अनुसार फल रूपी शरीर मिलता है या पुण्य कर्म की अधिकता पर मोक्ष या शरीर बंधन या जन्म-मृत्यु बंधन से मुक्ति मिलती हैं। नाली के कीड़ो वाला कर्म नाली के कीड़े की योनि दिलाता हैं साधू वाला कर्म फल बंधन से मुक्ति या मोक्ष दिलाता हैं।

सब कर्म के फल पर निर्भर हैं यह एनर्जी, शक्ति या आत्मा कभी मरती नहीं बस कर्म के फलो अनुसार शरीर बदलती रहती हैं जैसे हम कपडे बदलते हैं वैसे ही आत्मा शरीर बदलती हैं। जब आत्मा मरती ही नहीं और जीवन भौतिक शरीर का और आत्मा का योग हैं तो वास्तव में कोई कभी मरता कहा हैं ? वह तो उसका शरीर काम लायक नहीं रहता, एक्सपायर हो जाता हैं। वह तो हैं बस उसका भौतिक शरीर ना रहा।

A hindu performing pitra puja
A hindu performing pitra puja 

अब कर्म फल के अनुसार मुक्ति पायेगा या फिर किसी योनि में भौतिक शरीर धारण करेगा। इसी सत्य को ऋषि मुनियों ने पुनर्जन्म कहा आत्मा के द्वारा शरीर बदलना ही पुनर्जन्म कहलाता हैं। ठीक इसी अवधारणा के तहत सनातन हिन्दू अपने पितृ लोगो के आत्मा की मुक्ति के लिए पूजा करते हैं। आत्मा द्वारा मुक्ति मिलने में या दूसरा शरीर मिलने में कर्म के फल के अनुसार कुछ समय लग भी सकता हैं अपने कर्मो के अनुसार आत्मा कुछ समय के लिए स्वर्ग तो कुछ समय के लिए नर्क में रहती हैं कभी कभी कर्मानुसार आत्मा प्रेत योनि में भी प्यासा तड़पती रहती हैं।

यह एनर्जी, शक्ति या आत्मा, शरीर द्वारा जैसा कर्म करती हैं वैसा ही गति को प्राप्त होती हैं। विज्ञान में भी न्यूटन ने एक सिद्धांत दिया जिसका नाम हैं 'गति का नियम' जिसका तीसरा और आखिरी नियम भी यही कहता हैं "Every action has a equal reaction." हम भारतीय इस नियम को बहुत ही सरल रूप में जानते हैं "जैसी करनी वैसी भरनी " .

कर्म का फल तो मिलता ही हैं लेकिन पुण्य कर्म करके, पूजा करके, भक्ति करके, अच्छे फल सुनिश्चित किया जा सकता हैं इसलिए हर एक पुत्र का कर्तव्य हैं की वो अपने पिता के भौतिक शरीर के मृत्यु के बाद भी उनके आत्मा के उच्च गति के लिए मुक्ति के लिए वह पुत्र अपने पितरो की पूजा करे। जिससे की उनके आत्मा को शांति मिले यदि वह प्रेत योनि में हो तो तर्पण द्वारा उनकी प्यास बुझाया जा सके।


पुत्र ही क्यों ? क्युकी पिता के गुण ही पुत्र में आते हैं पिता के आत्मा के कुछ अंश पुत्र में ही होते हैं। पुत्र के हाथो की गई पूजा, पुत्र के हाथो श्रद्धा पूर्वक अर्पित किया गया जल पितृ को प्राप्त होता हैं यह बहुत ही सूक्ष्म विज्ञान हैं बहुत ही गूढ़ हैं। भौतिकता के पैमाने पर इस विज्ञान को अभी तक डिटेक्ट नहीं किया जा सका हैं। 

इसीलिए हमें अपने पितरो की पूजा करनी चाहिए खास कर पितृ पक्ष के समय क्युकी इस समय पितृ एनर्जी का लेवल अलग होता हैं। पितृ पक्ष में किया गया विधि पूर्वक पूजा शुभ फलो को प्रदान करने वाला होता हैं। यदि पितृ खुश तो आपका जीवन भी खुश आपके बच्चे भी खुश।

पितृ ऋण को चुकाने का सबसे सुगम मार्ग यह हैं की यदि आपके पिताजी, दादाजी या परदादाजी जो भी जीवित हैं तो पूरी ईमानदारी और धर्मानुसार उनकी सेवा करें और जो पितृ(पूर्वज) शरीर छोड़ चुके हैं उनकी आराधना और पूजा अवश्य करें। 

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