शारदीय नवरात्र : देवी दुर्गा के नौ रूप और पूजा विधि।

भारत में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाने वाला शारदीय नवरात्र प्रमुख त्योहारों में से एक हैं। नौ दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में शक्ति के नौ रूपों की विधिवत पूजा अर्चना की जाती हैं। शिव और शक्ति के सम्मलेन से ही सृष्टि चलती हैं। 

सृष्टि को सुचारु रूप से चलाने के लिए तथा अपने भक्तो को वरदान देने के लिए, उनके दुःखों को हरने के लिए साथ ही प्रत्येक जिव और प्राणियों की रक्षा हेतु शिव और शक्ति ने समय-समय पर विभिन्न रूपों को धारण किया हैं और अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना की हैं। 


शारदीय नवरात्र माता शक्ति के नौ रूपों को समर्पित हैं। शक्ति के नौ रुप को नौ दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। शारदीय नवरात्र के अगले दिन दशमी तिथि को  दशहरा या विजयादशमी मनाया जाता हैं।

shardiye Navratra 2019 durga puja
shardiye Navratra 2019 Durga Puja

नवरात्र भारत में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहारों में से एक हैं कुल चार प्रकार के नवरात्र। जिनमे से दो नवरात्र शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र बहुत प्रसिद्ध हैं वही अन्य दो गुप्त नवरात्र तांत्रिक सिद्धियों की द्रिष्टि से प्रसिद्ध है। 

सनातन धर्म में रात्री का महत्व दिन से ज्यादा रहा हैं. सनातन काल से ही योगियों द्वारा, तपस्वियों द्वारा रात्री के समय का सदुपयोग किया गया हैं और अनेक सिद्धियाँ और शक्तियाँ प्राप्त की हैं। भारत में लगभग सभी प्रमुख त्यौहार रात्रि में ही मनाया जाता हैं जैसे दिवाली, नवरात्री, शिवरात्रि, विजयादशमी आदि। शादी आदि पूजा कर्म भी विशेषतः रात्री में ही सम्पन्न किए जाते हैं।

An 1834 sketch by James Prinsep showing Rama Leela Mela during #Navratri in Benares (Varanasi).

शारदीय नवरात्र पर माता दुर्गा की विशेष रूप से पूजा की जाती हैं। इस पोस्ट हम घर पर नवरात्र की पूजा विधि साथ ही कलश स्थापित करके पूजा करने के विधि निम्नलिखित हैं....

१- नवरात्रि पर सुबह जल्दी उठें और नित्यकर्म और स्नान करने बाद साफ़ और स्वच्छ कपड़े पहने साथ ही पूजा घर और हो सके तो पुरे घर को पहले ही साफ़-सुथरा बना ले। 

२- नवरात्रि में माँ दुर्गा की पूजा आरम्भ करने से पहले सभी तरह की पूजा सामग्रियों को पूजा घर में  इकठ्ठा कर लेना चाहिए। 

३- पूजा की थाली को पूजा सामग्री( अक्षत, दही, रौली, कपूर, भोग लगाने के लिए कोई मिष्ठान आदि ) से सजाये फूल को पर्याप्त मात्रा में फुलडाली में एकत्र कर के रखें। 

४- माँ दुर्गा की फोटो को लाल रंग के कपड़े से ढक के रखे माँ दुर्गा का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में होना कल्याणकारी बताया जाता हैं। 

५-मिट्टी के पात्र में जौ के बीज को बोएं और अगले नौ दिनों तक उसमें पानी का छिड़काव करें।

६-नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर शुभ मुहूर्त में कलश को को लाल कपड़े  लपेटकर स्थापित करें।  

७-फिर कलश में गंगा जल या गंगाजल मिश्रित जल डाले (उपलब्धता पर) और आम की पत्तियाँ रखकर उस पर जटा रखें।  नारियल में लाल चुनरी को कलावा के माध्यम से बांधे।

८-इसके बाद कलश को मिट्टी के बर्तन के पास जिसमें जौ बोएं है उसके पास रख दे। 

९- फूल-माला, अक्षत, रौली से माँ दुर्गा का चरणवन्दन करें, माँ दुर्गा को भोग अर्पण करे, घी के दीपक जलाये, कपूर भी जलाये साथ ही सुगन्धित धुप या अगरबत्ती जलाये और उनकी पूजा करें। यही प्रक्रिया प्रतिदिन पुरे नवरात्र भर करें। 

१०- नौ दिनों तक माँ दुर्गा के मंत्रो का जाप करें और सुख-समृद्धि और ज्ञान की कामना करें। 

११- अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं को घर बुलाकर उनका पूजन करें और उन्हें भोग अर्पण करें। 

१२- नवरात्रि के अंतिम दिन माँ दुर्गा की पूजा पश्चात घट विसर्जन करें फिर बेदी से कलश को उठाएं। 


दुर्गा जी की आरती (1)

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय। जगजननी ..

तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी ..

आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥ जगजननी ..

अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥ जगजननी ..

तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥ जगजननी ..

राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाँछाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाघा॥ जगजननी ..

दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥ जगजननी ..

तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥ जगजननी ..

सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥ जगजननी ..

तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥ जगजननी ..

मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥ जगजननी ..

शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ जगजननी ..

हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥ जगजननी ..

निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥ जगजननी ....

 दुर्गा जी की आरती (2)

जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ।।जय अम्बे गौरी...                           

मांग सिन्दूर विराजत टीको मृ्ग मद को ।
 उच्चवल से दोऊ नैना चन्द्र बदन नीको। जय अम्बे गौरी...

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
 रक्त पुष्प गलमाला कंठन पर साजै।।जय अम्बे गौरी...

केहरि वाहन राजत खडग खप्पर थारी
 सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दु:ख हारी।।जय अम्बे गौरी..

कानन कुण्डली शोभित नाशाग्रे मोती ।।
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति।।जय अम्बे गौरी...

शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाती ।
घूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ।।जय अम्बे गौरी...

चौंसठ योगिन गावन नृ्त्य करत भैरूं ।
बाजत ताल मृ्दंगा अरू बाजत डमरू।।जय अम्बे गौरी...

भुजा चार अति शोभित खडग खप्पर धारी ।
मन वांछित फल पावत सेवत नर नारी ।।जय अम्बे गौरी...

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रत्न ज्योति।।जय अम्बे गौरी.

श्री अम्बे की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पति पावै।। जय अम्बे गौरी

आरती के बाद माँ को शाष्टांग प्रणाम कर प्रसाद को बांट दें। भक्त प्राय: पूरे नवरात्र उपवास रखते हैं. सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्र और एकरात्रव्रत का विधान भी है. प्रतिपदा से सप्तमी तक उपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है.

अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण (पूर्ण) करते हैं.

माता दुर्गा ने सृष्टि के सही संचालन हेतु अपने भक्तों की रक्षा हेतु, भक्तों को सिद्धि का वरदान देने हेतु समय-समय पर विभिन्न रूपों में अवतरित हुई हैं। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र के इस उत्सव में माँ दुर्गा द्वारा लिए गए नौ रूपों का विधि-विधान से पूजा-अर्चना किया जाता हैं। माँ दुर्गा के नौ रूप निम्न लिखित हैं :-

शैलपुत्री : माँ दुर्गा का पहला रूप 

माता दुर्गा के नौ रूप होते है। देवी दुर्गा के पहले रूप का नाम शैलपुत्री हैं। नवरात्र के पहले दिन यानी की एकम को  सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप की पूजा-अराधना की जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। 

शैलपुत्री को ही पार्वती और हेमवती के नाम से भी जाना जाता हैं। माता शैलपुत्री ने अपने दाए हाथ में त्रिशूल तो बाए हाथ में कमल धारण कर रखा हैं। वृषभ की सवारी करने के कारण माता शैलपुत्री को वृषारूढ़ा भी कहा जाता हैं। माता पार्वती के पूर्वजन्म को याद करते हुवे इन्हे  सती भी कहा जाता हैं इनसे जुडी बहुत ही प्रिसद्ध कहानी हैं।



सतयुग में एक बार जब ब्रह्मा पुत्र दक्षप्रजापति ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया तो उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया बस उन्होंने अपनी पुत्री सती और उनके पति शिव जी को आमंत्रित नहीं किया। 

जब नारद जी ने माता सती को ये यज्ञ की बात बताई तब अपने घर में बहुत बड़ा यज्ञ का आयोजन होता देख माता  सती का यज्ञ में जाने का मन करने लगा उन्होंने शिव जी को यह बात बताई शिवजी ने कहा - प्रजापति दक्ष किसी बात से हमसे नाराज हो गए हैं, इसीलिए उन्होंने हमें जानबूझकर नहीं बुलाया, तो ऐसे में तुम्हारा वहा जाना उचित नहीं हैं। 

यह सुनकर माता का मन शांत नहीं हुआ।  उनका प्रबल आग्रह देखकर शिवजी ने उन्हें वहा जाने की अनुमति दे दी। उन्होंने फिर बिना आमंत्रण अपने घर चली गई जहाँ उन्हें सिर्फ अपनी माँ से प्यार मिला बाकी बहनो ने बहुत ही व्यंग कसे तथा शिव जी का भी मजाक उड़ाने लगे। 

अपने पति के बारे में अपमानजनक बातें सुन कर सती अत्यंत दुखी हुई और उसी यज्ञ में कूद कर अपने प्राण दे दिए फिर शिव जी ने रूद्र रूप धारण कर यज्ञ को तहस नहस कर दिया। 
यही सती अगले जन्म में पर्वतराज के घर पुत्री रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री के नाम से जानी गई। शैलपुत्री का शिवजी के साथ विवाह हुआ और शैलपुत्री शिव जी की अर्द्धांगनी बनी। माँ शैलपुत्री ढृढ़ता के प्रतिक के रूप में पूजी जाती हैं तथा अपने भक्तो के जीवन को सुख समृद्धि और मंगल बनाती हैं।

माँ शैलपुत्री को स्वेत चीज का भोग लगाया जाता हैं दान स्वेत वस्तुओं का दान भी करना चाहिए। अगर यह गाय के घी से बना हैं तो मनुष्यों को रोगों से मुक्ति मिल जाती हैं। 

देवी शैलपुत्री का पूजा मन्त्र बीज मन्त्र- ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः। 

प्रार्थना- 'वन्दे वाञ्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम। 
             वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रिम यशस्विनीम।'

स्तुति- या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
          नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

सम्पूर्ण माँ शैलपुत्री कथा, पूजा विधि और मंत्र 

ब्रह्मचारिणी:- शक्ति का दूसरा स्वरुप 

माँ दुर्गा के दूसरे रूप का नाम ब्रह्मचारिणी हैं इनकी पूजा तथा अराधना नवरात्र के दूसरे दिन की जाती हैं।  सिद्धि तथा तपस्या का फल जल्दी देने वाली यह देवी दूसरी दुर्गा के रूप में जानी जाती हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ ही होता हैं कठिन तपस्या का आचरण करने वाला। भगवान् शिव जी को अपने पति के रूप में स्वीकार करने के लिए माता ब्रह्मचारिणी ने हजारो सालो तक निर्जला तपस्या की थी।

maa brahmcharini in hindi
Maa Brahmcharini in Hindi

कहा जाता हैं की माँ ब्रह्मचारिणी जैसा कठिन तपस्या करने वाला आज तक नहीं हुआ हैं। इन्ही कठिन तपस्या करने के कारण देवी दुर्गा के दूसरे रूप का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। जिसमे ब्रह्म का आशय काठीन तप से हैं। इनकी पूजा पाठ से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार तथा सयंम की वृद्धि होती हैं। इनकी उपासना से अनंत कोटि फल प्राप्त होता हैं। 

एक हजार वर्ष तक इन्होंने सिर्फ फल मुन खा कर कठिन तपस्या करके बिताए तथा घोर बारिश और कड़ी धुप को सहते हुवे तपस्या जारी रखी बाद में सिर्फ विल्व पत्र खा कर और कठिन तपस्या प्रारम्भ कर दी फिर कुछ सालो बाद विल्व पत्र भी खाना छोड़ दिया और निर्जला ही तपस्या में लगी रही। पत्तो को खाना छोड़ने के कारण इनका नाम अपर्णा भी पड़ा। 

माँ ब्रह्मचारिणी देवी की उपासना से सर्वसिद्धि का आशीर्वाद मिलता हैं। इनके जीवन से हमें किसी भी विषम परिस्थिति में सयम नहीं खोने का प्रेरणा मिलता हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का रूप ऊर्जावान तथा भव्य हैं इनके एक हाथ में जप माला तो दूसरे में कमंडल हैं। 

चन्द्रघण्टा:- शक्ति का तीसरा स्वरुप  

माँ दुर्गा के तीसरे स्वरुप का नाम चन्द्रघण्टा हैं। नवरात्र के तीसरे दिन देवी दुर्गा के तीसरे रुप चन्द्रघण्टा देवी की पूजा अराधना की जाती हैं। नवरात्र में तीसरे दिन की पूजा यानी की माता चन्द्रघण्टा की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण होता हैं। इस दिन माता की कृपा से साधक के शरीर में मौजूद मणिपुर चक्र विशेष रूप से जागृत अवस्था में रहता हैं। 



देवी चंद्रघंटा के आशीर्वाद से साधक या भक्त को सुगन्धित सुगंध तथा मधुर ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। यह देवी अपने भक्तो को परम शांति तथा सुख प्रदान करती हैं। इस देवी की आराधना से साधक के अंदर वीरता और निर्भयता के साथ सौम्यता और विनम्रता का भी विकास होता हैं। 

तीसरी दुर्गा चन्द्रघण्टा देवी के मस्तक पर घंटे के आकर का अर्ध चंद्र हैं। इसीलिए इस देवी को चन्द्रघण्टा के नाम से जाना जाता हैं। शेर की सवारी करने वाली यह देवी हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहती हैं।  इनकी 3 आँखे भुत, भविष्य, वर्तमान सभी कालों का ज्ञान वाली हैं। यह देवी त्रिकालदर्शी भी हैं। इनके दस हाथो में दस प्रकार के अस्त्र शस्त्र विद्यमान हैं। 

स्वर्ण जैसे चमकिले आभा वाली यह देवी हिम्मत की अभूतपूर्व छवि हैं। इनके घंटे से भयानक ध्वनि  निकलती हैं जिससे अत्याचारी, राक्षस डर के मारे काँपते रहते हैं।

माँ चंद्रघंटा पूजा विधि यहाँ पढ़े 

माँ  कूष्माण्डा : माँ दुर्गा का चौथा रूप 

नौ दुर्गा के चौथे रूप को कुष्मांडा नाम से जाना जाता हैं तथा नवरात्र के चौथे दिन यानी की चतुर्थी को बड़े ही ध्यान से माता कुष्मांडा का पूजा पाठ किया जाता हैं। जब सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था हर तरफ अन्धेरा ही अँधेरा था तभी माता कुष्मांडा ने ही ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का प्रकाश जलाया था इसीलिए इनको आदिशक्ति तथा आदिस्वरूप भी कहा जाता हैं। 

माँ  कूष्माण्डा : माँ दुर्गा का चौथा रूप
                                    माँ  कूष्माण्डा : माँ दुर्गा का चौथा रूप 
ब्रह्माण्ड जननी होने के कारन ही इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। नवरात्र के चौथे दिन विशेष रूप से साधक के शरीर में अदाहत चक्र सक्रिय भूमिका में रहता हैं। माता कुष्मांडा की आठ भुजाये हैं इसीलिए ये अष्टभुजा वाली भी कही जाती हैं। इनके सात हाथ में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, पुष्प कमल, अमृत कलश, चक्र तथा गदा हैं। अपने आठवे हाथ से माता सभी सिद्धियाँ सभी निधियाँ आशीर्वाद स्वरुप अपने साधको को देती हैं। 

माता कुष्मांडा की सवारी शेर हैं तथा  सूर्यलोक में निवास करती हैं। सूर्यलोक में रहने की शक्ति सिर्फ इसी माता के पास होती हैं इसीलिए यह देवी सूर्य सामान देशो दिशाओ में चमकती हैं तथा इन्ही का तेज पृथ्वी के सभी जिव जन्तुओ में प्रकाशमान होता हैं। 


स्कन्दमाता: माँ दुर्गा का पाँचवा रूप 

देवी दुर्गा के पाँचवें स्वरुप का नाम स्कन्द माता हैं। नवरात्र के पॉंचवे दिन माता स्कंदमाता की पुरे विधि विधान से पूजा पाठ किया जाता हैं। सम्पूर्ण इक्षाओं पूर्ति करने वाली यह देवी शिवजी की पत्नी हैं। इनके पुत्र स्कन्द कुमार उर्फ़ कार्तिए की वजह से इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। देवी  पाँचवे रूप  माता की सवारी सिंह है तथा चार भुजाएँ  हैं। इनके विग्रह में भगवान स्कन्द कुमार बालरूप में इनके गोद में विराजमान हैं।

स्कन्दमाता: माँ दुर्गा का पाँचवा रूप
                                      स्कन्दमाता: माँ दुर्गा का पाँचवा रूप 
पहाड़ो में रहने वाली यह देवी यदि खुश हो गयी तो मूरख को भी ज्ञानी बना सकती। दायी तरफ के एक  कुमार  है तो दाई तरफ के दूसरे भुजा में पुष्प कमल विद्यमान हैं। बाई  तरफ के ऊपर भुजा में भी कमल पुष्प है तो वही दूसरी भुजा वरमुद्रा में हैं। इनका वर्ण शुभ्र है तथा यह देवी कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं इसीलिए इन्हे पद्मासना  जाता हैं। यह देवी सिंह की सवारी करती हैं। 

मन को एकाग्र तथा पवित्र करके पूजा करने वाले साधक को यह देवी भवसागर से पार दिलाती है तथा मोक्ष का वरदान भी देती हैं।  यह देवी विद्वानों और सेवको को पैदा करने वाली शक्ति हैं। कहा जाता हैं की इनके ही आशीर्वाद से कालिदास ने रघुवंशम महाकाव्य तथा मेघदूत की रचना की थी। 

कात्यानी : माँ दुर्गा का छठा रूप 

माँ दुर्गा के छठे रूप को माँ कात्यानी के नाम से जाना जाना जाता हैं।  तथा नवरात्र के छठे दिन इनकी पूजा बड़े ध्यानपूर्वक की जाती हैं। इस साधक के शरीर में आज्ञा चक्र सक्रिय होता हैं। माँ कात्यानी की पुरे हृदय से पूजा करने वालो को यह देवी सरलता से ही धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष चारो फलो का वरदान प्रदान करती हैं। जन्मो के पाप माँ कात्यानी नष्ट करने वाली देवी हैं। 

fifth form of ma durga : ma katyayni
Ma katyani

महर्षि कात्यानन ने भगवती पराम्बा की कठिन तपस्या की उपासना की तथा भगवती के अपने घर पुत्री के रूप में प्राप्त करने का वरदान प्राप्त किया। अतः भगवती ने अपने छठे रूप में कात्यानन के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया इसीलिए इनका नाम कात्यानी पड़ा। 

कहा जाता हैं की श्री कृष्ण को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए ब्रज की गोपियों माँ दुर्गा के छठे रूप कात्यानी देवी की पूजा पाठ किया था। यह पूजा यमुना तट किनारे कालिंदी नामक जगह पर हुई थी। 


माँ कालरात्रि: माँ दुर्गा का सातवाँ रूप 

माँ दुर्गा के सातवे शक्ति या स्वरुप का नाम कालरात्रि हैं। नवरात्र के सातवे दिन इस देवी की पूजा की जाती हैं पुरे नवरात्र में सातवे शक्ति माँ कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व हैं। इस दिन साधक के शरीर में समस्त दुनिया के सिद्धियों का द्वार खोलने वाला सहस्त्रार चक्र सक्रिय रहता हैं। तमाम आसुरी शक्तियाँ माँ कालरात्रि का नाम सुनते ही भय से थर थर काँपने लगते हैं। 

माँ कालरात्रि: माँ दुर्गा का सातवाँ रूप
                                 माँ कालरात्रि: माँ दुर्गा का सातवाँ रूप 
असुरो, राक्षसों को भयभीत करने वाली यह देवी अपने भक्तो पर बहुत दया करती हैं तथा संसार के सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। यह देवी यदि साधक के भक्ति से प्रसन्न हो गई तो साधक को काल के मुँह से भी बचा लेती हैं। कालरात्रि दिखने में भयभीत करने वाली देवी हैं तथा इनका वर्ण गहरा काला होता हैं। बाल बिखरे हुवे तथा बिजली के समान चमकती हुई माला को यह देवी अपने गले में धारण करने वाली हैं। 

यह देवी तीन नेत्रों वाली हैं इनके मुख से आग निकलता रहता हैं।  इनकी चार भुजाये हैं। यह गर्दभ(गदहा ) की सवारी करती हैं। इनके दाई तरफ ऊपर वाले हाथ से यह देवी अपने भक्तो को वर देती हैं तथा निचे वाला हाथ अभय मुद्रा में हैं। बाई तरफ ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तो निचे वाले हाथ में खडग हैं। यह गृहदोष को भी समाप्त करने वाली तथा समस्त प्रकार के भय से मुक्ति दिलाने वाली शक्ति हैं। 


माँ महागौरी: माँ दुर्गा का आठवाँ रूप 

माँ दुर्गा का आठवाँ स्वरुप का नाम महागौरी हैं। नवरात्र आठवे दिन माँ दुर्गा के महागौरी रूप की पूजा पाठ तथा उपासना की जाती हैं। महागौरी पूजा-अर्चना या उपासना-आराधना अत्यंत कल्याणकारी साथ ही इक्षित फलो को प्रदान करने वाला हैं। सम्पूर्ण गौर वर्ण वाली इस देवी का नाम महागौरी हैं। इनकी उपमा चंद्र, काण्ड के फूल और शंख से होती हैं। इनके सभी आभूषण तथा वस्त्र सफ़ेद होते हैं इसीलिए इन्हे श्वेताम्बरा भी कहा जाता हैं।  
माँ महागौरी: माँ दुर्गा का आठवाँ रूप
                                   माँ महागौरी: माँ दुर्गा का आठवाँ रूप 

वृषभ की सवारी के कारण इन्हे वृषारूढ़ा के नाम से भी सम्बोधित किया जाता हैं। इनकी चार भुजाएँ हैं जिनमे दाई तरफ की ऊपर वाली भुजा में त्रिशूल तो निचे वाली भुजा अभय मुद्रा लिए हुवे हैं तरफ की ऊपर वाली भुजा में डमरू धारण कर रखा हैं तो निचे वाली भुजा में भक्तो को वॉर देने के लिए वर मुद्रा धारण किया हैं।  

शांत स्वभाव वाली यह देवी शिव जी को अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या किया था जिससे  रंग काला पड़ गया था। बाद में शिव जी ने प्रसन्न हो कर इस देवी को अपने पत्नी रूप में स्वीकार किया तथा गंगा जल से पवित्र कर शरीर का रंग पुनः गौर कर दिया इसीलिए  महागौरी के नाम से प्रसिद्ध हैं।  

सिद्धिदात्री: माँ दुर्गा का नवा रूप 

माँ दुर्गा का नवा रूप सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता हैं। नवरात्र के अंतिम दिन या नवे दिन माँ दुर्गा के नवे रूप सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना हैं। इस दिन शास्त्रीय विधि द्वारा पुरे ह्रदय से इस देवी की पूजा करने से सभी सिद्धियों का वरदान प्राप्त होता हैं। सिद्धिदात्री देवी सभी प्रकार  शक्तियों तथा सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी हैं।  

कहा जाता हैं की भगवान् शिव जी ने भी कई सिद्धियाँ माँ सिद्धिदात्री से ही प्राप्त की हैं। इन्ही देवी की वजह से भगवान् शंकर का आधा शरीर स्त्री का हुआ था तथा भोलेनाथ अर्शनारीश्वर भी कहलाए। माता सिद्धिदात्री अष्ट सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी है इनके आशीर्वाद से जटिल से जटिल समस्या भी चुटकी में ठीक हो जाती हैं।
Maa Siddhidatri 


चार भुजाओ वाली इस देवी के दाई तरह ऊपर वाले भुजा में गदा धारण की हुई है वही निचे वाली भुजा में चक्र धारण कर रखा हैं। बाई तरफ ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है तो निचे वाले हाथ में शंख हैं। इनका सवारी सिंह है तथा यह कमल पर भी आसान ग्रहण करती हैं। विधि विधान से नवरात्र के अंतिम दिन या नवे दिन इस देवी की पूजा करने से लौकिक तथा परलौकिक सभी प्रकार की इक्षापूर्ति होती हैं। 


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