आज से लगभग 12 लाख पूर्व सतयुग के समय की यह श्रवण कुमार कथा आज भी उतनी ही उपदेशप्रद और प्रेरणादायी हैं. भारत भूमि अनेक महान कथाओं को अपने अंदर समेटे हुवे हैं शायद किसी मनुष्य को कई जन्म लेने पड़ेंगे इन महान ज्ञानीजनों के शिक्षाप्रद कथाओं को पढ़ने में.
तो चलिए शरू करते हैं Shravan Kumar Story In Hindi
Shravan Kumar Story In Hindi श्रवण कुमार कथा |
सतयुग में अयोध्या नामक एक अपराजित राज्य था. जिस के राजा का नाम महाराज दशरथ था. महाराज दशरथ महान सत्यवादी राजा हिरश्चंद्र और माता गंगा को पृथ्वी पर अपने कठिन परिश्रम से लाने वाले राजा भगीरथ के वंशज थे. अपने पूर्वजों की तरह ही राजा दशरथ बहुत ही न्याय प्रिय धार्मिक प्रवृति के थे.
राजा दशरथ व्यवस्था और युद्ध कौशल में माहिर थे उन्होंने अनेक युद्ध में अधर्मियों को हराकर धर्म की स्थापना की थी महाराज दशरथ की तीन रानियाँ थी. राजा दशरथ के राज्य में सभी प्रजा सुख-पूर्वक अपना जीवन निर्वहन करते थे. राजा का कोई पुत्र नहीं था राजा को बराबर इस विषय का दुःख और चिंता रहती थी.
एक दिन राजा दशरथ शिकार खेलने गए दिन-भर घूमते घूमते उन्हें कोई शिकार नहीं मिला अंत में वो एक नदी किनारे शिकार के इन्तजार में छिप गए।
वहाँ जाकर दशरथ जी देखते हैं की एक नवयुवक के छाती में उनका धनुष घुसा हुआ हैं और उसके ह्रदय से रक्त बह रहे हैं। बगल में ही एक जल भरने वाला लोटा भी गिरा हुआ हैं। राजा दशरथ अचंभित हो गए अनजाने में उन्होंने एक बहुत बड़ा पाप कर दिया। जानवर समझ उन्होंने एक नवयुवक की हत्या कर दी।
उस युवक ने राजा दशरथ से कहा – ‘हे राजन ! मेरा नाम श्रवण हैं मैं अपने अंधे माता-पिता को अपने कंधे पर ढो कर तीर्थ यात्रा करा रहा हूँ। वो दोनों प्यास से बहुत व्याकुल हैं मैं उन्हीके लिए पानी भरने आया था। मै तो अब उनको पानी नहीं पीला सकता लेकिन कृपया आप इस लोटे में पानी भरकर उन्हें पीला दे ताकि उनकी प्यास ख़त्म हो सके इतना कहते ही उस युवक ने प्राण त्याग दिया।
श्रवण कुमार के माता पिता ने कहा की पानी तो लाने हमारा पुत्र गया था वो कहा रह गया। दोनों श्रवण की अनुपस्थिति से व्याकुल होने लगे।
Shravan Kumar Story In Hindi |
समय बीतता गया कई बसंत बीत गए राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु सभी बड़े-बड़े और ज्ञानी सिद्ध ,ऋषिओं और महर्षियों को आदर पूर्वक बुला कर उनसे विनती कर अपने कामना की पूर्ति करने की प्रार्थना की. महाऋषियों के आदेशानुसार एक यज्ञ का आयोजन किया गया.
पुरे अयोध्या नगरी को स्वर्ग की तरह सजाया गया जगह-जगह भंडारे और दान सभागार की स्थापना की गई यज्ञ हेतु भव्य और विशाल हवन कुंड का निर्माण किया गया. वेद शास्त्रों के नियमानुसार सभी सभी विधि-विधान से यज्ञ संपन्न हुआ. उस यज्ञ से प्राप्त खीर को प्रसाद रूप में तीनो रानियों को खिला दिया गया.
कुछ समय पश्चात ही तीनो रानियों ने चार सूर्य समान तेजस्वी राजकुमारों को जन्म दिया। उनका नाम क्रमशः राम, लक्षम्ण, भरत और सबसे छोटे शत्रुधन था. राजा दशरथ पुत्र सुख प्राप्त करके फुले नहीं समा रहे थे. वे अपने सभी चार राजकुमारों को अत्यंत प्रेम करने लगे.
विशेषकर उनका प्रेम सबसे बड़े पुत्र श्री राम से कुछ अधिक था. श्री राम बचपन से ही दिव्य प्रविर्ती के थे वे करुणा, दया के सागर थे उनको देखते ही सभी उन पर मोहित हो जाते थे. राजा दशरथ अपने पुत्रो को एक पल भी अपने से दूर नहीं रखना चाहते थे.
कठोर हृदय से उन्होंने अपने सभी चारो पुत्रो को वैन में गुरुकुल में शिक्षा और युद्ध कौशल में निपुण होने के लिए भेजा। वहाँ सभी भाइयों ने कठिन परिश्रम से वेद-उपनिषद शास्त्र-शास्त्र आदि की शिक्षा ग्रहण की चारो भाइयों में राम और लक्षमण सबसे ज्यादा निपुण और साहसी थे.
विद्या ग्रहण के दौरान और यज्ञ की रक्षा करते हुवे श्री राम और लक्षमण ने अनेक राक्षसों का वध किया। फिर अपने गुरु की आज्ञा से शिव धनुष को तोड़ कर सीता जी से विवाह किया। श्री राम और सीता के साथ-साथ सभी भाइयों का विवाह सीताजी की अन्य तीन बहन से हुआ जिनमे से मांडवी जी का विवाह लक्षमण जी के साथ हुआ.
जपने पुत्रों के विवाह के बाद राजा दशरथ ने सोचा की अब मैं भी वृद्ध हो रहा हूँ अब राम को राजा बनाने का अवसर आ गया हैं. ऐसा विचार करके राजा दशरथ ने पुरे राज्य में श्री राम जी का राजयभिषेक करने की घोषणा कर दी.
पुरे राज्य में अपने चाहते राजकुमार को राजा बनाने की तैयारी पुरे जोर-शोर से होने लगी पुरे नगर को सजाया जाने लगा जगह लोग ख़ुशी के गीत गाने और नाचने लगे. हर जगह ख़ुशी का माहौल व्याप्त था राजा दशरथ सबसे ज्यादा खुश थे.
लेकिन इतनी ख़ुशी समय को मंजूर नहीं थी. राजा दशरथ की एक रानी का नाम कैकयी था राजा उन्हें बहुत प्रेम करते थे तथा राजा ने कैकयी माता से प्रेम विवाह किया था. कैकयी आजकल के रूस प्रान्त के किसी राजा की राजकुमारी थी जिन्होंने युद्ध में राजा दशरथ की सहायत की थी जिससे राजा दशरथ ने उनसे विवाह किया था. कैकयी ने राजा दशरथ से तीन वचन लिए और तब विवाह किया?
माता कैकयी की एक दासी थी जिसका नाम मंथरा था वह एक कुबड़ी थी दिखने में भी बहुत बदसूरत थी उसने रानी कैकयी के मस्तिष्क में पुत्र मोह को उत्पन्न कर उनके मस्तिष्क में बुरी बुरी बाते भरने लगी उसने रानी का मन दूषित करने के लिए कहा की-
“जब राम राजा बनेंगे तब तुम और तुम्हारा पुत्र भरत एक नौकर से बढ़कर और कुछ नहीं रह जाओगे तुम राजा की पुत्री हो तुम्हारा पुत्र भी राजा बनना चाहिए लेकिन भरत का जीवन राम की जीहजूरी करते ही बीतेगा”
मंथरा ने रानी कैकयी को वह तीन वचन भी याद दिलाये जिसको रानी ने विवाह से पूर्व माँगा था. मंथरा ने कहा की अब समय आ गया हैं राम को वनवास भेजो और भरत को राजा बनाने का वचन दशरथ से माँग लो यही सही अवसर हैं”
माता कैकयी भी मंथरा बातो के प्रभाव में आ गयी तथा उन्होंने इस ख़ुशी के माहौल में कुपित चेहरा बना कर अपने सभी बाल खोलकर कोप भवन में चली कई और विलाप करने लगी.
इस समाचार से पुरे राजभवन के साथ-साथ पुरे नगर में शोक का लहर छा गया. राजा दशरथ बाकी की दो रानी राम लक्षमण शत्रुधन सभी आनन्फा-नन में कोप भवन की तरफ चल पड़े. भरत उस समय अयोध्या में नहीं थे वे अपने मामा के घर गए हुवे थे.
राजा दशरथ ने रानी कैकयी के पास जाकर उनके परेशानी का कारण पूछा तो माता कैकयी ने अपने तीन वचन का दिलाते हुवे राम को चौदह वर्ष की वनवास तथा भरत को अयोध्या का राजा बनाने का वचन माँगा।
राजा दशरथ को अपने सबसे प्रिये पुत्र राम को राजयभिषेक की जगह १४ वर्ष का वनवास की मांग सुनकर उनको बहुत बड़ा आघात पहुँचा उन्होंने कैकयी से बहुत अनुनय-विनय किया उन्होंने कहाँ कोई भी वस्तु मांगलो पूरी दुनिया के किसी भी कोने से मैं लाकर दूंगा बस राम को वनवास की मांग मत करो.
कैकयी जी अपने मांग से बिलकुल भी पीछे नहीं हटी राजा दशरथ विलाप करने लगे उन्होंने कभी नहीं सोचा था की ऐसा दिन देखना पड़ेगा।
जब श्री राम को अपने पिता के वचन की बात और वनवास की बात पता चली तो उन्होंने वचन की मर्यादा की रक्षा हेतु 14 वनवास जाने का निर्णय लिया।
अपने पत्नी धर्म का निर्वहन करते हुवे उन्होंने भी अपने पति श्री राम के साथ जाने का निर्णय लिया अपने बड़े भाई को पत्नी संग अकेले जाता देख लक्षमण भी बिना किसी की सुने श्री राम के साथ जाने के लिए तैयार हो गए.
पुरे अयोध्या में जितना ख़ुशी का माहौल था उससे ज्यादा दुःख का माहौल बन गया सभी प्रजा में हाहाकार मच गया पूरी प्रजा अपने प्रिये राजकुमार राम और नवविवाहिता माता सीता को लक्षमण जी के साथ वनवास पर जाने को देखने के लिए राजभवन की तरफ दौड़ पड़े.
श्री राम, माता सीता और श्री लक्षमण वनवास की तरफ एक सन्यासी के भेष में राजभवन को छोड़ कर निकल पड़े राजा दशरथ अपना सुध-बुध खो बैठे वो विलाप करते-करते धरती पर धराशाही हो कर बैठ गए.
इधर आधी प्रजा अपने राजा राम के साथ व्यकुलहोकर उनके पीछे-पीछे वैन में जाने लगी. राम जी ने किसी तरह रात में सोते हुवे छोड़कर वनवास गए. इधर श्रवण कुमार के माता पिता द्वारा दिए गए श्राप के पूर्ति होने का समय आ गया था.
राजा दशरथ इस दुःख को सह नहीं पाए तथा वो दिन प्रतिदिन बीमार होते गए और अंत में श्रवण कुमार के माता-पिता की तरह पुत्र वियोग में प्राण त्याग दिए. राजा दशरथ के प्राण चले जाने के साथ ही श्रवण कुमार के माता-पिता का श्राप पूरा हुआ.
यह सत्य हैं की कर्म का फल सबको भोगना ही हैं निष्काम कर्म द्वारा ही कर्म-फल के बंधन से मुक्त हुआ जा सकता हैं. यह विधि का विधान हैं जिसे विधि बनाने वाला भी नहीं तोड़ता हैं.
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