इस कार्य के बदले में आज तक कभी भी कुछ माँगा ही नहीं खुद धुप सहा लेकिन इस प्रकृति ने हम प्राणियों को छाव प्रदान किया हैं. इसीलिए हिन्दू धर्म में प्रकृति को माता कहा गया हैं तथा इसी देवतुल्य समझ इसका संरक्षण और संवर्धन की उचित व्यवस्था भी की गई हैं. Poem On Nature In Hindi.
यह प्रकृति अपने अंदर अनेक प्रकार के रंगो और भवनों को जागृत करने वाली शक्तियों के समाहित किया हैं. प्रकृति के इस सौंदर्य ने हमेशा से ही कवी, लेखकों और शायरों का ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट करती रही हैं सबने अपने-अपने राग में अपने-अपने शब्दों में प्रकृति का भरपूर महिमा मंडन किया हैं, और Nature Poem In hindi.
तो चलिए हम भी आज प्रकृति पर कविताएँ का भरपूर आनंद उठाते हैं और प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन की कसम खाते हैं.
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे
प्रकृति की एक अभिन्न अंग पेड़-पौधे और वृक्ष होते हैं. वृक्ष हमारी साँसे हैं वृक्ष हमें हर तरफ से सहायता करते हैं बिना वृक्ष के जीवन की कल्पना करने का कोई औचित्य नहीं हैं. वृक्ष हैं तो जीवन हैं तो चलिए इसी कड़ी में कविता के माध्यम से हम वृक्ष के सन्देश को देखते हैं- Poem On Nature.
प्रकृति बिना जीवन की कल्पना करना दूभर हैं प्रकृति हैं तो प्राण हैं हमारा एक एक सांस इस प्रकृति माता का क़र्ज़ है. प्रकृति हर प्रकार से निःस्वार्थ भाव से हम सभी जीवों का भरा-पोषण एक माँ की तरह करती हैं. प्रकृति का बखान शब्दों में नहीं हो सकता फिर भी कवी ने प्रकृति की जरुरत को बताने के लिए एक छोटा सा प्रयास किया हैं “बिन प्रकृति कैसे तू जी पायेगा ?” Poem On Nature.
प्रकृति और पर्यावरण के कण-कण में आकर्षण हैं, यह आकर्षण उस समय अपने यौवन पर होता हैं जब बसंत का मौसम होती हैं. प्रकृति अपने आप को नए तरीके से सवारती हैं नए-नए रंग भरती हैं प्रकृति का ऐसा तैयार होना मानो कोई अपने प्रेमी के इन्तजार में उसको लुभाने के लिए अपना श्रृंगार कर रही हैं.
प्रकृति और बसंत के प्रेम को बड़े सुन्दर ढंग से कवी ने अपने कविता में शब्दों द्वारा प्रदर्षित किया हैं तो चलिए शुरू करते हैं – “प्रकृति और बसंत का प्रेम” Poem On Nature. Prakriti Par Kavita.
यह अमूल्य धरा, यह अनमोल प्रकृति इनका कोई मूल्य नहीं हैं. जन्म देने वाले माता-पिता के बाद अगर किसी ने पुरे ईमानदारी से निःस्वार्थ भाव से हर पल भर-पोषण किया हैं तो वह प्रकृति ने ही किया हैं, इसीलिए उसे माता की संज्ञा दिया गया हैं. लेकिन हमने अपने प्रकृति माता के साथ छल किया उन्हें दूषित किया, प्रदूषित किया, उनका दोहन और दुरुपयोग किया। Poem On Nature.
हमारे इस छल से आज धरा कुंठित हैं पर्यावरण दुखी हैं, यह दुःख किसी और प्राणी का दें नहीं सिर्फ मनुष्य की ही देन हैं प्रकृति को स्वच्छ और संवर्धन के मामले में तो मनुष्य से बेहतर जानवर हैं काम से कम पर्यावरण को नुक्सान तो नहीं पहुँचाते। जो चलिए आज संकल्प लेते हैं जानवरों से सीखते हैं मनुष्य कैसे बनना हैं प्रकृति को बचाते हैं –
Hindi Poem On Nature
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रागिनी
इंसान को समझना चाहिए कि nature से इंसान है इंसान से nature नही।
Kiran
your all poems are good.
shruti trivedi
Beautiful poems !!!!