तो चलिए शुरू करते हैं, Moral Stories In Hindi.
एक संत थे। वे एक जाट के घर गए। जाट ने उनकी बड़ी सेवा की। संत ने उससे कहा की रोजाना नाम जप करने का कुछ नियम ले लो। जाट ने कहा की बाबाजी हमारे को वक़्त कहा मिलता हैं। संत ने कहा की अच्छा, रोजाना एक बार ठाकुर जी की मूर्ति का दर्शन कर आया करो। Moral Stories In Hindi
जाट ने कहा की मैं तो खेत में रह जाता हूँ, ठाकुरजी की मूर्ति गाँव के मंदिर में हैं, कैसे करूँ ? संत ने उसको कई साधान बताये की कोई न कोई नियम ले ले, पर वह यही कहता की यह मेरे से बनेगा नहीं। मैं खेत में काम करूँ या माला ले कर जाप करूँ। इतना समय मेरे पास कहाँ हैं ?
बाल-बच्चों का पालन-पोषण करना हैं ; आपके जैसा बाबाजी थोड़े हूँ की बैठकर भजन करूँ। संत ने कहा अच्छा तू क्या कर सकता हैं ? जाट बोला की मेरा एक पड़ोसी कुम्हार हैं, उसके साथ मेरी मित्रता हैं; खेत भी पास-पास में हैं और घर भी पास-पास में हैं; रोजाना नियम से एक बार उसको देख लिया करूँगा।
संत ने कहा ठीक हैं, लेकिन उसके देखे बिना भोजन मत करना। Moral stories In hindi.
जाट ने स्वीकार कर लिया। बाबाजी उस जाट के सेवा-सत्कार से खुश हुवे और फिर वहा से किसी और को शिक्षित कर चल दिए। इधर वह जाट ईमानदारी से बाबाजी द्वारा बताये नियम का पालन करने लगा। जब उसकी स्त्री कहती की रोटी तैयार हो गयी, भोजन कर लो तो वह चट बाड़ चढ़कर कुम्हार को देख लेता और भोजन कर लेता।
इस नियम में वह पक्का रहा। एक दिन जाट को खेत में काम करने के लिए जल्दी जाना था, इसीलिए उसकी स्त्री ने भोजन जल्दी तैयार कर दिया था। जाट ने भोजन करने से पहले बाड़ पर चढ़कर देखा तो कुम्हार नहीं दिखा। पूछने पर पता लगा की वह मिट्टी खोदने बाहर गया हैं ! Moral Stories In Hindi शिक्षाप्रद प्रेरक कहानियाँ हिंदी में।
जाट बोला की कहाँ मर गया, कम-से-कम देख तो लेता। अब जाट उसको देखनी के लिए तेजी से भागा। उधार कुम्हार को मिट्टी खोदते-खोदते एक हाँड़ी मिल गयी, जिसमे तरह-तरह के रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थी। उसके मन में आया की कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जाएगी !
अतः वह देखने के लिए ऊपर चढ़ा तो सामने वह जाट आ गया ! कुम्हार को देखते ही जाट वापस भागा तो कुम्हार ने समझा की उसने वह हाँड़ी देख ली और अब वह आफत मचाएगा सबको बताएगा।
कुम्हार ने आवाज लगाईं की अरे, जा मत, जा मत ! जाट बोला की –‘बस, देख लिया, देख लिया !’
कुम्हार बोला की अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा, आधा मेरा,पर किसी से कहना मत ! जाट यह बात सुनकर रुक गया और फिर वापस आया तो सब बात समझ गया और उसको भी धन मिल गया।
उसके मन में विचार आया की संत से अपना मनचाहा नियम लेने में इतनी बात हैं, अगर सदा उनकी आज्ञा का पालन करूँ भगवान् के नाम का जाप करूँ तो कितना लाभ हैं ! ऐसा विचार करके वह जाट और उसका मित्र कुम्हार दोनों ही भगवान् के भक्त बन गए। Moral Stories In Hindi
तात्पर्य यह हैं की हमें दृढ़ता से अपना एक उद्देश्य बना लेना चाहिए और ईमानदारी और निष्ठा के साथ उस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु नियमों का पालन करना हैं। ईमानदार से अनुशासन द्वारा पालन किये गए नियम हमेशा उत्तम फल को देने वाले होते हैं।
एक राजकुँवर थे। विद्यालय में पढ़ने के लिए जाते थे। वहाँ प्रजा के बालक भी पढ़ने जाया करते थे। उनमे से पांच-सात बालक राजकुमार के मित्र हो गए। वे मित्र बोले आप राजकुमार हो, राजगद्दी के मालिक हो। Moral Stories In Hindi: 10 प्रेरक कहानियाँ हिंदी में।
आज आप हमें प्रेम और स्नेह करते हो, लेकिन राजा बनने पर भी ऐसा ही प्रेम निभायेंगे, तब हम समझेंगे की मित्रता हैं, नहीं तो क्या हैं? राज कुँवर बोले अच्छा बात हैं। समय बीतता गया। सब बड़े हो गये। राजकुमार अब राजा बन गए। एक दो वर्ष में राज्य अच्छी प्रकार जम गया।
राजा ने अपने मित्रों में से एक को बुलाकर कहा की तुम्हें याद हैं की तुमने क्या कहा था -‘राजा बनके मित्रता निबाहो, तब समझे।’ ‘अब तुम्हे दिन दिन के लिए राज्य दिया जाता हैं। आप राजगद्दी पर बैठो और राज्य करो’
वह बोला-‘अन्नदाता ! वह तो बचपन की बात थी। मैं राज्य नहीं चाहता।’ बहुत आग्रह पर उसने उस मित्र ने तीन दिन के लिए राज्य स्वीकार कर लिया।
मित्र राजगद्दी पर बैठा दिन खान-पान, ऐश-आराम में मगन हो गया। दूसरे दिन सैर-सपाटा, शिकार खेलने आदि में व्यतीत हो गया। तीसरे दिन रात हुई तो बोला -‘ हम तो राजमहल जायेंगे।’ सब बड़ी मुश्किल में पड़ गए।
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रानी बड़ी पतिव्रता थी। वह मित्र तो अड़ गया की सब कुछ मेरा हैं, मैं राजा हूँ तो रानी भी मेरी हैं। रानी ने अपने कुलगुरु ब्राह्मण देवता से पुछवाया की अब मैं क्या करूँ ? गुरूजी महाराज ने कहा-‘बेटी ! तुम चिंता मत करो, हम सब ठीक कर देंगे। Moral Stories In Hindi: शिक्षाप्रद प्रेरक कहानियाँ हिंदी में।
गुरूजी ने उस तीन दिन के लिए राजा बने मित्र से पूछा की आप महल में जाना चाहते हैं तो राजा की भांति जाना होगा। इसीलिए आपका ठीक तरह से साज-सज्जा और श्रृंगार होगा। उन्होंने भृत्यों को बुलाया और आज्ञा दी महाराज के महलों में जाने की तैयारी करो, श्रृंगार करो।
नाइ को बुलाया गया और कहा की महाराज की हजामत करो ठीक ढंग से। तीन-चार घंटे बीत गए, तब वह राजा बोला – ऐसे क्या देरी लगाते हो ? तो नाई बोला महाराज! राजाओं का मामला हैं, साधारण आदमी की तरह हजामत कैसे होगी ? हजामत में बहुत देर लगा दी गयी।
उसके बाद वस्त्र पहनाने वाला आया। उसने कई बार बद-बदल के कपडे पहनाये जिस वजह उसमे भी कई घंटे निकल गए। उसके बाद इत्र-तेल-फुलेल आदि लगाने वाला आया। उसने भी तरह-तरह के इत्र का खूब वर्णन कर समय व्यतीत किया।
इस प्रकार श्रृंगार-श्रृंगार में ही रात बित गयी और सुबह हो गयी। सुबह होते ही उसका तीन दिन का कार्य समाप्त हो गया राजकुंवर ने उससे राजगद्दी वापस ले ली। Moral Stories In Hindi: शिक्षाप्रद प्रेरक कहानियाँ हिंदी में।
राजा साहब ने अब अपने दूसरे मित्र को बुलाया उसको भी पहले मित्र की तरह तीन दिन के लिए राजा बना दिया और राज-दरबार सौंप दिया साथ ही कहा की मैं मेरी स्त्री मेरा घर तो मेरा हैं और हम सब आपकी प्रजा हैं।
राज्य मिलते ही उस मित्र ने पूछा की मेरा कितना अधिकार हैं ? मंत्री ने जवाब दिया -‘महाराज! साड़ी फौज, पल्टन, खजाना और इतनी पृथ्वी पर आपका राज्य हैं।’ उसने दस-बिस योग्य अधिकारियों को बुलाकर कहा की हमारे राज्य में कहाँ-कहाँ, क्या-क्या चीज की कमी हैं, किसके क्या-क्या तकलीफे हैं पता लगाकर शीघ्र मुझे बताओ।
उस मित्र ने सभी दिशा में अनेक अधिकारी भेजे ताकि कम समय में ज्यादा से ज्यादा सहायता पहुंचे जा सके। उन अधिकारीयों ने आकर बताया की यह कमी हैं। इस इस गांव में पानी की समस्या हैं यहाँ-यहाँ विद्यालय नहीं हैं फलाँ-फलाँ जगह मंदिर और आषौधालय की मरमत्ति आवश्यकता हैं आदि-आदि समस्या बताया गया।
उस राजा ने आदेश दिया की सब गांव में जहाँ-जहाँ जो कमी हैं उसे तीन दिन में पूरी हो जाना चाहिए। खजांची को कहा की माकन, धर्मशाला, पाठशाला, नहर, कुएँ आदि बनाने में जो भी धन की आवश्यकता हो तुरंत दिया जाय। राजा का हुक्म होते ही अनेक लोग राजाज्ञा के पालन में लग गये। Moral Stories In Hindi
तीन दिन पुरे होते-होते विभिन्न स्थानों से समाचार आने लगे की इतना-इतना काम हो गया हैं और इतना बाकी रहा हैं। जल्दी पूरा करने का आदेश देकर, उस मित्र ने राज्य वापस राजा को दे दिया। राजा बड़े प्रसन्न हुवे और बोले की हम तुम्हें जाने नहीं देंगे।
अपना मंत्री बनाएंगे। हमें राज्य मिला लेकिन हमने अपनी प्रजा का इतना ख्याल नहीं रखा, जितना तुमने तीन दिन में रखा हैं। वह मित्र सदा के लिए राजा का विस्वास पात्र मंत्री बन गया। Moral Stories In Hindi: शिक्षाप्रद प्रेरक कहानियाँ हिंदी में।
इसी प्रकार हमे बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था ऐसे तीन दिन के लिए भगवान् की तरह से राज्य मिलता हैं। अब जो रुपया-संग्रह और भो भोगने में लगे हैं, उनकी तो हजामत हो रही हैं और जो दूसरे मित्र की तरह सेवा कर रहे हैं उनको भगवान् कहते हैं – “मैं तो हूँ भगतन को दास, भगत मेरे मुकुट मणि।।”
तो भाई, हमारे पास जो भी धन, संपत्ति, वैभव आदि हैं, उसके द्वारा सबका प्रबंधन करो, सबकी सेवा करो। यह राज्य तीन दिन के लिए मिला हैं। अब निर्णय अपने को करना हैं की हजामत में समय खोना हैं या भगवान् का विश्वासपात्र बनना हैं।
एक सेठ था. उसके सात बेटे थे. उन सातों में छः का विवाह हो चूका था। अब सातवें बेटे का विवाह हुआ। उसका विवाह जिस लड़की से हुआ, वह अच्छे समझदार माँ-बाप की पुत्री थी। माँ-बाप ने उसको अच्छी शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी दिए थे।
उस घर में सबका भाव अच्छा था। सात भाई होते हुवे भी सभी एक साथ रहते थे। एक विलक्षण बात यह थी घर की रसोई स्त्रियाँ ही बनाती थीं। कोई रसोइया नहीं था। स्त्रियाँ स्वयं रसोई बनाती हैं तो वे पति-पुत्र, सास-ससुर आदि को प्रेम से भोजन कराती हैं। परन्तु रसोइया रसोई बनाता हैं तो वह मजदूरी करता हैं.
घर में छः जेठानियाँ थी और सुबह-शाम बारी बारी से रसोई बनाया करती थी। हरेक जेठानी की तीन दिन में बारी आया कराती थी। परन्तु उनमे खटपट रहती थी। कोई बीमार हो जाय तो दूसरी कहती की मेरी बारी में तूने रसोई नहीं बनाई फिर तेरी बारी में मैं क्यों बनाऊ ?
छोटी बहु आई तो उसके अंदर बहुत उत्साह था. वह एक दिन स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर पहले ही रसोई में जा बैठी। जेठानी जे ने देखा तो कहा की ‘बहु! तू रसोई क्यों बनाती है ? रसोई बनाने के लिए हम काम हैं क्या? फिर भी छोटी बहु ने बड़े प्रेम से रसोई बनाई और सबको भोजन कराया। सब बड़े प्रसन्न हुए की आज छोटी बहु ने बहुत बढ़िया रसोई बनाई हैं।
सभी भाइयों के अलग-अलग कमरे थे। दिन में सास छोटी बहु के कमरे में गयी और उससे कहा की ‘बहु ! तू सबसे छोटी हैं, इसीलिए सब तेरे से लाड-प्यार रखते हैं। तू रसोई क्यों बनाती हैं ? तेरी छः जेठानियाँ हैं। ‘ छोटी बहु बोली -‘माँजी! कोई भूखा अतिथि घर आ जाय तो उसको आप अन्न क्यों देते हैं ? सास बोली-‘ बहु! इससे बड़ा पुण्य होता हैं।
घर में कोई भूखा आ जाये उसको भोजन कराना गृहस्थ का खास धर्म हैं। उसको तृप्ति होती हैं, सुख मिलता हैं तो देने वाले को पुण्य होता हैं। ‘छोटी बहु बोली -‘दुसरो को भोजन कराने से पुण्य होता हैं तो क्या घरवालों को भोजन कराने से पाप होता हैं ?
मकान आपका, घर आपका, आपका अन्न, आपका बर्तन सब चीजे आपकी हैं। मैं थोड़ी-सी म्हणत करके रसोई बनाकर खिलाऊँ तो मेरा पुण्य होगा की नहीं होगा? सब भोजन करके तृप्त होंगे, प्रसन्न होंगे तो इससे कितना लाभ होगा ! इसीलिए माँजी, आप रसोई मुझे ही बनाने दो।
मैं बैठी-बैठी करुँगी भी क्या? कुछ मेहनत करुँगी तो शरीर भी ठीक रहेगा, स्वास्थ्य ठीक रहेगा।’ सास ने यह बातें सुनीं तो मन में सोचा की बहु बात ठीक कहती हैं ! हम इसको सबसे छोटी समझते हैं, पर इसकी बुद्धि बहुत अच्छी हैं!
दूसरे दिन सुबह ही जल्दी ही सास रसोई बनाने बैठ गयी। बहुओं ने देखा तो बोला -‘माँजी! यह आप क्या कर रही हैं ? रसोई बनाने वाली बहुत हैं. आप परिश्रम मत कीजिये। सास बोली-‘तुम्हारी अवस्था छोटी हैं, पर मेरी अवस्था बड़ी हैं। मेरेको जल्दी मरना हैं। मैं अभी पुण्य नहीं करुँगी तो कब करुँगी ?
बहुँएँ बोली -‘इसमें पुण्य क्या हैं? यह तो घर का काम हैं? सास बोली-‘ घर का काम करने से पाप होता हैं क्या?
जब भूखे व्यक्ति को, साधू को, ब्राह्मणो को, भोजन कराने से पुण्य होता हैं तो क्या घर वालो ो भोजन कराने से पाप होता हैं क्या?
उलटे इसका तो व्यक्तिगत पुण्य मिलता हैं। घर की चीज सब घर वालों की होती हैं, इसीलिए दान-पुण्य करने से सबको पुण्य होता हैं। परन्तु खुद मेहनत करके रसोई बनायी जाय तो अकेले रसोई बनाने वाले को पुण्य होता हैं। हम बड़े-बूढ़े अभी पुण्य नहीं करेंगे तो फिर कब करेंगे ?
सास की बात सुनकर सब बहुओं के भीतर उत्साह हुआ की इस बात का हमने ख्याल ही नहीं किया की घर का काम करने से, भोजन बनाकर खिलाने से भी पुण्य होता हैं ! यह युक्ति बहुत बढ़िया हैं। अब जो बहु पहले जग जाए। वही पहले रसोई बनाने बैठ जाय। Moral Stories For Kids In Hindi.
पहले रसोई बनाने की सभी बहुओं में होड़ मच गयी। पहले जब ‘रसोई तू बना तू बना’ यह भाव था, अब छः बारी बाँधी थी। अब मैं बनाऊ मैं बनाऊ का भाव था। काम करने में तू कर तू कर – इससे काम बढ़ जाता हैं और आदमी कम हो जाते हैं, पर मैं करू, मैं करूँ – इससे काम हल्का हो जाता हैं और आदमी बढ़ जाते हैं।
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छोटी बहु ने सोचा की अब रसोई बनाने की कोई दिक्कत नहीं हैं अब क्या किया जाए? घर में आटा पीसने की पुरानी चक्की पड़ी थी। वह उसको अपने कमरे में ले आयी और आटा पीसना शुरू कर दिया। मशीन की चक्की का आटा गरम होता हैं और गरम-गरम हो बोरी में भर देने से जल जाता हैं, जिससे उसकी रोटी स्वादिष्ट नहीं होती।
परन्तु हाथ से पिसा गया आटा ठंडा होता हैं और उसकी रोटी बहुत ही स्वादिष्ट होती हैं। छोटी बहु ने हाथ से पीस कर उसीसे रोटी बनाई तो सब कहने लगे की बहुत ही स्वादिष्ट भोजन लग रहा हैं, छोटे-बड़े सबने छोटी बहु की सराहना की।
सास ने छोटी बहु के पास जा कर कहा की -‘बहु ! तू आता क्यों पिसती हैं ? अपने पास पैसों की कमी नहीं हैं। भगवान् ने बहुत दिया हैं !’ बहु ने कहा -‘माँजी ! भले ही पैसा बहुत हो, पर आता तो रोजाना मैं ही पीसूँगी। हाथ से आटा पीसने से शरीर ठीक रहता हैं। व्यायाम स्वतः ही हो जाता हैं। बिमारी नहीं आती। डाक्टरों के चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं।
दूसरी बात, रसोई बनाने से भी ज्यादा पुण्य आटा पीसने का हैं। रसोई चाहे कोई बनाये, आटा तो मेरा ही पिसा हुआ सब खाएंगे !’ सासने और जेठानियों ने ये बातें सुनीं तो विचार करने लगी की छोटी बहु सभी बाते ठीक कहती हैं।
उन्होंने अपने-अपने पतियों से कहा की घर में चक्की ले आओ, हम सब आटा पिसेंगी। सब चक्की ले आये। सभी चक्की चलने लगी सभी बहुएँ आटा पीसने लगी। प्रतिदिन ढाई सेर से ज्यादा पीसने लगीं। आटा अधिक होने लगा। अब अधिक आटे का क्या करें? छोटी बहु ने कहा की अपनी दूकान में आते की बिक्री कर दो। छोटी बहु की बात सबने मान ली।
अब छोटी बहु विचार करने लगी की आटा पीसने का काम तो मेरे हाथ से गया, अब क्या करूँ ? घर में कुआँ था। रोजाना एक नौकर पानी भरने के लिए आया करता था। छोटी बहु ने सुबह जल्दी उठकर स्नान करके कुएँ से सब पानी भर दिया। नौकर आया तो देखा बरतनों में पहले से ही पानी भरा हुआ हैं। वह चुपचाप वही बैठ गया।
सेठ आया तो बोला की बैठा क्यों हैं ? पानी क्यों नहीं भरता ? नौकर बोलै -‘आप देखो, सब पानी पहले से ही भरा हुआ हैं, मैं क्या करूँ ?सेठ बोला की पता लगाओ, पानी किसने भरा हैं ? सास ने छोटी बहु के पास जाकर कहा -‘बहु ! पानी तूने भरा ? बहु ने बोला -‘माँजी ! आप चुप रहो, आप बोलो मत ! आपके बोलने से मेरी कमाई चली जाती हैं !
आपने वैशाख – माहात्म्य सूना हैं की नहीं ? वैशाख के महीने में पानी पिलाने का बड़ा महत्व हैं। पानी पिलाने का जितना पुण्य हैं, उतना अन्न देने का नहीं हैं; क्युकी अन्न तो दिन में दो बार ही खाते हैं, पर पानी दिन में कई बार पीते हैं। पानी से स्नान करते हैं, कुल्ला करते हैं, हाथ-पैर धोते हैं। पानी ज्यादा काम आता है।
दूसरे दिन सास जल्दी उठकर कुएँ पर चली गयी और पानी खींचने लगी। दूसरी बहुओं ने देखा तो बलि -‘माँजी ! यह आप क्या कर रही हैं ? लोगो में हमारा मुँह काला होगा की घर में इतनी बहुएँ बैठी हैं और सास पानी भर्ती हैं !’ सास बोली -‘बूढ़ो को जो जल्दी मरना हैं, इसीलिए उनको पहले काम करके पुण्य कामना चाहिए यदि वह काम कर सकती हैं तो’
अब सब बहुओं ने भी पानी भरने का काम शुरू कर दिया। सेठ ने देखा तो कहा की -‘अब नौकर निकम्मा बैठा रहता हैं, इसको छुट्टी दे दो।’ यह बात छोटी बहु ने सुनी तो वह सास के पास गयी और बोली -‘मेरी प्रार्थना हैं की आप पिताजी से कहिए की नौकरी को छुट्टी न दे। Moral Stories In Hindi: 10 प्रेरक कहानियाँ हिंदी में।
वह गृहस्ती आदमी हैं। बेचारे की कमाई होती हैं। इसको छुट्टी न देकर दूसरे काम में लगा दें।’ इस बात का सास पर असर पड़ा की छोटी बहु का कितना अच्छा भाव हैं ! यह कितनी समझदार हैं।
अब छोटी बहु ने विचार किया की रसोई भी सब बनाने लगे, आटा भी सब पीसने लगे, पानी भी सब मिलकर भरने लगे अब मैं क्या करू ? घर में जूठे बर्तन माँज ने के लिए एक नौकरानी आती थी। छोटी बहु राख लेकर कोने में बैठ गयी और अपने सब बर्तन धोने लगी और सभी बर्तन मांज दिए।
नौकरानी दूर बैठी रह गयी। सास ने देखा तो बोली -‘बहु ! विचार तो कर बर्तन मांजने से तेरा कीमती गहना घिस जायेगा, फायदा क्या होगा ?’ बहु कहा – ‘माँजी ! जूठन उठाने का बड़ा महत्व हैं। आपने महाभारत में कहानी नहीं सुनी ? पांडव ने यज्ञ किया तो सबसे पहले भगवान् श्री कृष्ण का पूजन हुआ।
उन्ही भगवान् श्री कृष्ण ने सभी के जूठी पत्तलें उठाने का काम किया। जितना छोटा काम होता हैं, उतना ही उसको करने का बड़ा महत्व होता है। अगर जूठन उठाने का ज्यादा महत्व नहीं होता तो भगवान् यह कार्य क्यों करते? प्रेरक कहानिया हिंदी में।
दूसरे दिन सास बर्तन माँजने के लिए बैठ गयी तो छोटी बहु ने कहा -‘माँजी ! मेरी बात सुनो। इस थाली -कटोरी-गिलास पर तो मेरा हक़ हैं क्युकी यह मेरे पतिदेव का हैं। अतः इनको मैं साफ़ करुँगी। ऐसे ही सभी बहु ने अपने-अपने पति देव के बर्तन साफ़ करने लगे।
छोटी बहु विचार करने लगी की अब मैं क्या काम करूँ ? सुबह रोजाना झाड़ू लगाने के लिए नौकर आया करता था। छोटी बहु ने सुबह जल्दी उठकर सब जगह झाड़ू लगाने लगी। नौकर ने आकर देखा की छोटी बहु झाड़ू लगा रही हैं वह भी साथ-साथ झाड़ू लगाने लगा।
सास छोटी बहु के पास गई और बोली झाड़ू तो छोड़ दो। बहु ने कहा – माँजी ! आपने रामायण नहीं सुनी क्या ? वन में बड़े-बड़े ऋषि मुनि रहते थे, पर भगवान् उनकी कुटिया में न जाकर पहले शबरी की कुटिया में गए। कारण क्या था ?
शबरी रोजाना रात में प्रभु राम के भक्ति में उनके प्रेम में वशीभूत होकर उनके मार्ग की सफाई करती थी झाड़ू लगाती थी ताकि छोटा सा कंकड़ भी उनके पैर में न चुभे।” इसीलिए इस सेवा का भी बड़ा ही महत्व हैं।
यह बात जानकार सभी बहुवे आपस में मिलकर सभी काम मिल बांटकर करने लगी तथा प्रेम से रहने लगी। सेठ के घर में ख़ुशी का माहौल फ़ैल गया सबकोई स्वस्थ और सुख पूर्वक रहने लगा।
अर्थ- ” जिस घर में सबका आपस में प्रेम होता हैं वहाँ लक्ष्मी का वास होता हैं। जिस घर में कलह होता हैं, वहाँ निर्धनता आ जाती हैं।
एक बड़े सदाचारी और विद्वान ब्राह्मण थे। उनके घर में प्रायः रोटी-कपड़े की तंगी रहती थी। साधारण निर्वाह मात्र होता था। वहां के राजा बड़े धर्मात्मा थे। ब्राह्मण की पत्नी ने कई बार कहा की आप एक बार तो राजा से मिल आओ, पर ब्राह्मण कहते की वहाँ जाने के लिए मेरा मन नहीं करता।
ब्राह्मणी ने कहा की मैं आपसे माँगने के लिए नहीं कहती। वहां जाकर आप माँगों कुछ नहीं, केवल एक बार जाकर आ जाओ। कई बार कहने पर स्त्री की प्रसन्नता के लिए ब्राह्मण जी राजा के पास चले गए। राजा ने उनको बड़ा त्याग से रहने वाले गृहस्थी जानकार इनका बड़ा आदर-सत्कार किया और उनसे कहा की आप एक दिन और पधारे।
अभी तो आप अपनी मर्जी से आये हैं, एक दिन आप मेरे पर कृपा मेरी मर्जी से पधारें। ऐसा कहकर राजा ने उनकी पूजा करके आनंदपूर्वक उनको विदा कर दिया। घर आने पर ब्राह्मणी ने पूछा की राजा ने क्या दिया ? ब्राह्मण बोले- दिया क्या, उन्होंने कहा की एक दिन आप फिर आओ।
ब्राह्मणी ने सोचा की अब खूब सारा धन मिलेगा। राजा ने निमंत्रण दिया हैं, इसीलिए अब जरूर देंगे।
एक दिन राजा रात्रि में अपना वेश बदलकर, बहुत गरीब आदमी के कपडे पहनकर घूमने लगे। ठंडी के दिन थे। एक लुहार के यहाँ एक कड़ाह बन रहा था। उसमे गहन मारने वाले आदमी की जरुरत थी। राजा इस काम के लिए तैयार हो गए।
लुहार ने कहा की एक घंटा काम करने के दो पैसे दिए जाएंगे। राजा ने बड़ी तत्परता से बड़े उत्साह से दो घंटे काम किया। राजा के हाथ में छाले पड़ गए, पसिन्ना टपकने लगा, बड़ी मेहनत पड़ी। लुहार ने खुश होकर चार पैसे दे दिए। राजा उन चार पैसों को लेकर आ गया और आकर हाथो पर पट्टी बाँधी। धीरे-धीरे हाथों में पड़े छले ठीक हो गए।
एक दिन ब्राह्मणी के कहने पर वे ब्राह्मण देवता राजा के यहाँ फिर पधारे। राजा ने उनका बड़ा आदर किया, आसान दिया, पूजा किया और उनको वो चार पैसे भेंट दे दिए। ब्राह्मण बड़े संतोषी थे। वे उन चरों पैसों को लेकर घर वापस आ गए। Moral Stories In Hindi.
ब्राह्मणी सोच रही थी की आज खूब माल मिलेगा। जब उसने चार पैसों को देखा तो कहा की राजा ने क्या दिया और क्या आपने लिया ! आप जैसे पंडित ब्राह्मण और देने वाला राजा ! ब्राह्मणी ने चार पैसे बाहर फेंक दिए।
जब सुबह उठकर देखा तो वहां चार जगह सोने की सिंके दिखाई दी। सच्चा धन उग जाता हैं। सोने की उन सिखों को वे रोजाना काटते पर दूसरे दिन वे पुनः उग आती। उनको खोदकर देखा तो उनकी जड़ों में वही चार पैसे मिले।
राजा ने ब्राह्मण को अन्न नहीं दिया, क्युकी राजा का अन्न शुद्ध नहीं होता, खराब पैसों का होता हैं। मदिरा आदि पर टैक्स का होता हैं, चोरो को दंड देने से प्राप्त पैसे होते हैं -ऐसे पैसे को देकर ब्राहण को भ्रस्ट नहीं करना हैं इसीलिए राजा ने अपनी खरी कमाई के पैसे दिए। आप भी धार्मिक अनुष्ठानो आदि में अपनी खरी कमाई का धन खर्च करो।
एक चोर ने राजा के महल में चोरी की। राजा के सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने उसके पदचिह्नों का पीछा किया। चोर के पदचिह्नों को देखते-देखते वे नगर से बाहर आ गए। पास में एक गाँव था। उन्होंने चोर के पदचिह्न गाँव की ओर जाते देखा। Moral Stories In Hindi.
सिपाहियों ने गाँव के चारो तरफ घूमकर देखा की चोर गाँव से बाहर नहीं गया, गाँव में ही हैं। गाँव में जाकर उन्होंने देखा एक जगह सत्संग चल रहा हैं और बहुत से लोग बैठकर सत्संग सुन रहे हैं। सिपाहियों को संदेह हुआ की चोर भी यही कही छुपा होगा वे वही खड़े होकर उसका इन्तजार करने लगे।
सत्संग में संत कह रहे थे की जो भी मनुष्य सच्चे ह्रदय से भगवान् की शरण में चला जाता हैं भगवान् उसके सब पापों को माफ़ कर देते हैं।
भगवान् ने श्री गीता में कहा हैं की –
“सभी धर्मों का आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरण में आजा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा। चिंता मत कर।”(गीता १८| ६६ )
“जो एक बार भी शरण में आकर ‘मैं तुम्हारा हूँ’ ऐसा कहकर मुझसे रक्षा की याचना करता हैं, उसे मैं सम्पूर्ण प्राणियों से अभय कर देता हूँ- यह मेरा व्रत हैं।” (वाल्मीकि रामायण ६१८३३ )
इसकी व्याख्या करते हुए संत ने कहा की जो भगवान् का हो गया, उसका मानो दूसरा जन्म हो गया। अब वह पापी नहीं रहा, साधू हो गया !
“अगर कोई दुराचारी-से-दुराचारी भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता हैं तो उसको साधू ही मानना चाहिए। कारन की उसने निश्चय बहुत अच्छी तरह कर लिया हैं।” (गीता ९३० )
चोर वही बैठा सुन रहा था। उसपर सत्संग का गहरा असर पड़ा। उसने वही बैठे-बैठे यह द्रिढ निश्चय कर लिया की अब मैं भगवान् शरण लेता हूँ ! अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। मैं भगवान् का हो गया ! सत्संग समाप्त हुआ। लोग उठकर बाहर जाने लगे।
बाहर राजा के सिपाही सबके पदचिन्हों को देख रहे थे। चोर बाहर निकला तो उसके पदचिन्ह को सिपाहियों ने पहचान लिया।
सिपाहियों ने चोर को राजा के सामने प्रस्तुत किया और कहा -‘महाराज ! हमने चोर को पकड़ लिया है। इसी आदमी ने चोर को पकड़ लिया हैं। इसी आदमी ने चोरी की हैं।’ राजा ने चोर से पूछा -‘इस महल में तुमने चोरी की ? सच-सच बताओ, तुमने चोरी किया धन कहाँ रखा हैं ?
चोर ने दृढ़ता पूर्वक कहा -‘महाराज ! चोरी मैंने नहीं की। मैंने तो इस जनम में कभी चोरी नहीं की !’ सिपाही बोले -‘महाराज ! यह झूठ बोलता हैं। हम इसके पदचिन्हों को पहचानते हैं। इसके पदचिन्हों से साफ़ सिद्ध होता है की चोरी इसी ने की हैं।’
राजा ने चोर की परीक्षा लेने की आज्ञा दी, जिससे पता चले की वह झूठ हैं या सच्चा। चोर के हाथ पर गरम करके लाल किया हुआ लोहा रखा। उसका हाथ जलना तो दूर रहा, उसे दर्द भी नहीं हुआ। उसने लोहा निचे फेका तो लोहा जहा गिरा वहा काला हो गया।
राजा ने देखा की इसने वास्तव में चोरी नहीं की, यह निर्दोष हैं। अब राजा सिपाहियों पर बहुत नाराज हुआ की तुमलोगो ने एक निर्दोष पुरुष पर चोरी का आरोप लगाया। तुमलोगो को दंड दिया जायगा। यह सुनकर चोर बोला -‘नहीं महाराज ! इनको आप दंड न दें। इनका कोई दोष नहीं हैं।
चोरी मैंने ही की थी। राजा ने सोचा की यह साधू पुरुष हैं, इसीलिए सिपाहियों को दंड से बचाने के लिए चोरी का दोष अपने ऊपर ले रहा है। राजा बोला -‘तुम इनपर दया करके, इनको बचाने के लिए ऐसा बोल रहे हो। पर मैं इनको आवश्य दंड दूँगा।’
चोर बोला महाराज ! मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, चोरी मैंने ही की थी। अगर आपको विस्वास न हो तो अपने आदमियों को मेरे साथ भेजो। मैंने चोरी का धन जंगल में छिपा कर रखा हैं, वहाँ से लाकर दिखा दूँगा।’ राजा ने अपने आदमियों को चोर के साथ भेजा।
चोर उनको वहाँ लेकर गया, जहाँ उसने धन जमीं में गाड़ रखा था। चोर ने वहाँ से धन निकाल लिया और लाकर राजा के सामने रख दिया। यह देखकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ ! राजा बोला -‘अगर तुमने चोरी की थी तो परीक्षा करने पर तुम्हारा हाथ क्यों नहीं जला ? परन्तु तुम्हारा हाथ भी नहीं जला और तुमने चोरी का धन भी लाकर दे दिया।
यह हमारी समझ में नहीं आ रहा हैं ! ठीक-ठीक बताओ, बात क्या हैं ?
चोर बोला -‘महाराज ! मैंने चोरी करने के बाद धन को जंगल में गाड़ दिया और गाँव में चला गया। वहाँ एक जगह सत्संग हो रहा था। मैं वहाँ जाकर लोगो के बिच बैठ गया। सत्संग में मैंने सूना की जो भगवान् की शरण में जाता और फिर कोई पाप नहीं करने का निश्चय कर लेता हैं,
उसको भगवान् सब पापों से मुक्त कर देते हैं। उसका नया जन्म हो जाता हैं। इस बात का मेरे पर असर पड़ा और मैंने दृढ निश्चय कर लिया की अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। अब मैं भगवान् का हो गया। इसीलिए तबसे मेरा नया जन्म हो गया।
इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की, इसीलिए मेरा हाथ नहीं जला। आपके महल में मैंने जो चोरी की थी, वह तो पिछले जन्म में की थी।
इस तरह डेढ़ बरस में उसके बारह महीने पुरे हो गए। सास-बहु में परस्पर बड़ा प्रेम हो गया। दो-ढाई वर्ष बितने पर महाराज जी फिर उसी गाँव आये और उनसे बोले की ‘एक दिन हम तुम्हारे घर भिक्षा करेंगे।’ वे बहुत राजी हुए। महाराजजी बड़े त्यागी संत थे। वे दो-चार घरों से ही भिक्षा लेकर खाते थे।
कपडे फट जाते थे कई ज्यादा आग्रह करता तो कपड़ा ले लेते थे। रुपयों-पैसों का कोई काम ही नहीं था। जब वे उनके घर भिक्षा के लिए गए तो बहुत-से-लोग इकठ्ठा हो गए की महाराजजी आये हैं, सत्संग सुनाएंगे। महाराज जी ने भिक्षा ग्रहण किया और सत्संग सुनाया। फिर कहा की ‘दूसरे घरों के जो लोग आये हैं उन्हें भेज दो’
केवल आपके ही घरवाले रहे, आपसे एक बात करनी हैं।’ घरवालों ने हाथ जोड़कर सबसे अपने-अपने घर जाने आग्रह किया। सभी लोगो के चले जाने के बाद। घरवाले महाराज जी के पास आकर बैठ गए।
महाराजजी बोले की ‘मैंने जो ताबीज बनाकर दी थी, उसको लाओ।’ उन्होंने ताबीज लाकर महाराज जी के सामने रख दी। महाराज जी ने कहा इसको खोल कर पढ़ो इसमें क्या लिखा हैं?’ उन्होंने ताबीज के भीतर रखा कागज़ खोलकर पढ़ा।
उसमे लिखा था – ‘सास-बहु राजी तो साधू को क्या और सास-बहु नाराज तो साधू क्या’ महाराज जी बोले ‘सास-बहु शांति से रहे तो हमें क्या मतलब और रोजाना आपस में लड़े तो अपना नुक्सान ही करेंगे। हमारा मतलब तो यह हैं की तुम्हारे घर में शांति, आनंद रहे।
यह शक्ति ताबीज में नहीं यह शक्ति हमारे अंदर हैं यदि हम सामने न बोले और जैसा कहे, वैसा कर दे। देखो, दूसरा कोई जंतर-मंतर की बात कहे की हमें देवता सिद्ध हैं, हम तुम्हारे को ऐसा कर देंगे तो डरना नहीं ! इसलिए तुमको यंत्र खोलकर दिखाया हैं।’
जंतर-मंतर को मैं नहीं मानता। परन्तु तुम्हारे को मेरी बात पर विश्वास हो जाय, इसीलिए यंत्र बनाकर दिया हैं। बड़ो के सामने बोलना नहीं और उनकी आज्ञा का पालन करना- इन दो बातों का घर के सभी लोग पालन करें तो आपके लोक और परलोक दोनों सुधर जायेंगे।
कभी सास कोई ऐसा काम करने को कह दे, जिससे आगे नुक्सान दिखता हो तो प्रेम से बढ़िया से हाथ जोड़ कर खड़ी हो जाए। जब सास पूंछे की क्यों कड़ी हो तो, कहे की आपका काम तो मैं कर दूंगी, पर इससे बिगाड़ हो जायेगा। वह कहें की नहीं-नहीं, यह काम करना हैं’ तो वैसा कर दे।
अगर काम बिगड़ जाए तो शेखी न बघारे की देखो, मैंने तो पहले ही कह दिया था, पर आपने माना नहीं। प्रत्युत बड़ी नम्रता, सरलता, निरभिमानता रखे।’ महाराज जी इन बातों का सबपर गहरा असर पड़ा।
सभी पाठक भाई-बहनो से भी करबद्ध प्रार्थना हैं की आप लोग भी आज इस विलक्षण यंत्र को धारण कर ले की
बड़ो के सामने कभी ऊँची आवाज में नहीं बोलेंगे, उनका तिरस्कार, अपमान अवहेलना नहीं करेंगे और वो जैसा कहेंगे, वैसा कर देंगे। फिर आपके भी घरों में शांति, आनंद और लक्ष्मी का वास हो जायगा।
एक राजा थे। उस राजा की साधू-महात्मा के वेश में बड़ी श्रद्धा और निष्ठा थी. यह निष्ठा किसी किसी में ही होती हैं. वह राजा साधु-संतो को देखकर बहुत राजी होता। साधू वेश में कोई आ जाय, कैसा भी आ जाये, उसका बड़ा आदर करता बड़ा सेवा करता। Moral Stories In Hindi.
कहीं सुन लेता की अमुक तरफ से संत आ रहे हैं तो पैदल जाता और उनको ले आता, महलो में रखता और खूब सेवा करता। साधु जो माँगे, वही दे देता। उसकी ऐसी प्रसिद्धि हो गयी. पड़ोस देश में एक दूसरा राजा था, उसने यह बात सुन रखी थी.
उसके मन में ऐसा विचार आया की यह राजा बड़ा मुर्ख हैं, इसको साधू बनकर कोई भी ठग ले. उसने एक बहरूपिये को बुलाकर कहा की तुम उस राजा के यहाँ साधु बनकर जाओ. और उसके बारे में सभी जानकारी उसके राजधानी के बारे में, सिमा बल के बारे में, सैनिक के बारे में जानकारियाँ इकट्ठी करके लाओं साथ ही वह तुम्हारे साथ जो-जो बर्ताव करे, वह आकर मेरे से कहना।
बहरूपिया भी बहुत चतुर था. वह साधु बनकर वहाँ गया. वहाँ के राजा ने जब सुना की अमुक रस्ते से एक साधू आ रहा हैं तो वह उसके सामने गया और उसको बड़े आदर-सत्कार से अपने महल में ले आया, अपने हाथो से उसकी खूब सेवा की.
बहुरूपिये ने सोचा की यदि मैं इस राजा से दान स्वरुप खूब धन माँग लूँ तो फिर मुझे किसी अन्य राजा का नौकरी नहीं करना पड़ेगा मैं दूसरे राज्य में जाकर सुखपूर्वक रह सकता हूँ यह राजा तो मुझे योगी समझता हैं आसानी से धन दे भी देगा, फिर उस बहुरूपिये ने सोचा की मैं अकेले कितना धन उठा पाउँगा इसीलिए घोड़ा भी माँग लूँगा ताकि धन ढोने में आसानी होगा।
एक दिन राजा ने उस साधु से कहा की -‘महाराज!, कुछ सुनाओ।’ साधू ने कहा की- ‘राजन! आप तो बड़े भाग्यशाली हो की आपको इतना बड़ा राज्य मिला हैं, धन मिला हैं. आपके पास इतनी फौज हैं. आपकी स्त्री, पुत्र, नौकर आदि सभी आपके अनुकूल हैं।
साधू का भौतिक सम्पत्तियों को इतना महत्व देना राजा को थोड़ा अटपटा लगा, साधू तो दुनियादारी धन, राज्य से उलट वैराग्य, सन्यास आदि को महत्व देते हैं यह कैसा साधु हैं जो धन-संपत्ति को महत्व दे रहें यहीं। यह तो धन का लालची जान पड़ता हैं,
राजा बहुत शिक्षित थे तथा उन्हें वेद-उपनिषद तथा शस्त्र-शास्त्र का भी ज्ञान था, वह उस बहुरूपिये साधू से धर्म के विषय पर चर्चा करने लगे वेद-उपनिषद की बात करने लगे वो बहुरुपिया सकपका गया उसका पोल खुल गया राजा ने उसे कारावास में डाल दिया।
और फिर इस राजा ने अपने बुद्धिमानी से अपने प्रजा और राज्य की रक्षा की इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं की हम कितने भी नकाब लगा कर बहुरिपये बन कर अपनी पहचान छुपाने का प्रयास क्यों न कर ले हम कभी सफल नहीं हो सकते एक न एक दिन पोल खुल ही जाएगा और फिर हमें मजाक का पात्र या फिर कारावास की भी सजा भुगतनी पड़ सकती हैं.
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Hindi kahaniya universe
आपने बहुत मंनोरंजक…और ज्ञानवर्धक कहानी लिखी है।
नियम पालन का फायदा ये कहानी मुझे बहुत रोचक लगी क्यों कि इसमें जैसे दिखाया गया हैं कि अगर ईमानदारी से कोई काम किया जाए तो उसका फल जरूर मिलता है।
धन्यवाद।
rohit
आपने बहुत मंनोरंजक…और ज्ञानवर्धक कहानी लिखी है।
नियम पालन का फायदा ये कहानी मुझे बहुत रोचक लगी क्यों कि इसमें जैसे दिखाया गया हैं कि अगर ईमानदारी से कोई काम किया जाए तो उसका फल जरूर मिलता है।
धन्यवाद।