क्यों माँ गंगा ने अपने पुत्रो को नदी में बहा दिया था? In Mahabharat Hindi.

गंगा इन महाभारत हिंदी - Mahabharat hindi आखिर क्यों गंगा ने अपने सातो पुत्रों को नदी में प्रवाहित कर दिया था? जानने के लिए पढ़े पूरा लेख।

द्वापर युग में घटित महाभारत में अनेक चमत्कारी, रहस्यमयी और प्रेरक कहानियाँ  हैं।  जीवन के सभी पहलुओं से जुडी हुई हैं। महाभारत में लिखा हैं की "जो महाभारत में नहीं वो पुरे सृष्टि में नहीं हैं।" यानि की महाभारत में ऐसा कोई ज्ञान नहीं हैं या ऐसा कोई विषय नहीं हैं जो छूट गया हैं। महाभारत में एक तरफ लालच, क्रोध, मोह, ईर्ष्या,अहंकार हैं तो दूसरी तरफ निःस्वार्थ, दया, प्रेम, करुणा और न्याय का भी खूब बोल बाला हैं।

बड़े से बड़े शुरवीर पराक्रमी योद्धा भी कर्म के फल से नहीं बच सके। जो किया वो प्राप्त होगा ही, यह सिख हमें महाभारत से मिलती हैं। इससे भी आगे श्री कृष्ण द्वारा गीता में निष्काम कर्म को ही मुक्तिकारक बताया गया हैं।महाभारत के पात्रो के कर्मो का फल ही महाभारत जैसा भयंकर युद्ध था।

दो चचेरे भाइयो, पांडवो और कौरवो के बिच संपत्ति बटवारे में हुए बेईमानी की वजह से हुआ युद्ध धर्मयुद्ध बन गया तथा कश्मीर राज्य को छोड़ कर पुरे एशिया आधा यूरोप के बड़े-बड़े शक्तियाँ इस युद्ध में सम्मिलित थे। गंगा इन महाभारत Mahabharat Hindi

गंगा इन महाभारत हिंदी Mahabharat 

कोई धर्म (पांडवो) के साथ था तो कोई अधर्म(कौरवों) के साथ था। अंत में धर्म की जित हुई पृथ्वी पुनः अधर्म मुक्त हो गई। Mahabharat हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव छोड़ती हैं। महाभारत की कहानियाँ बहुत ही प्रेरणादायक हैं। पुरे विश्व में महाभारत जैसा अद्भुत ग्रन्थ कोई नहीं हैं। महाभारत ग्रन्थ से जुडी हजारो रहस्यमयी कहानियो में से एक आपको बताने जा रहे हैं।

हिन्दू धर्म में गंगा नदी बहुत ही पूजनीय मानी जाती हैं। गंगा नदी को माता के नाम से सम्बोधित किया जाता हैं। गंगा नदी को मोक्षदायिनी कहा जाता हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पूर्वज भागीरथी ने ब्रह्मा जी की और शिव जी की कठिन तपस्या करके अपने 60 हजार भतीजो को महर्षि के श्राप से मुक्ति दिलाने तथा मोक्ष दिलाने के लिए माता गंगा को ब्रह्मा जी के कमंडल से शिव जी की जटा से होते हुए पृथ्वी पर आशीर्वाद रूप में प्राप्त किया।

माता गंगा से जुड़े अनेक पौराणिक कहानिया हैं। सदियों से माता गंगा अपने अविरल धारा से लोगो को और पृथ्वी को तृप्त कर रही हैं। महाभारत के सबसे सम्मान्नित पात्र महामहिम भीष्म माता गंगा और महाराज शांतनु के ही पुत्र थे।

महाराज शांतनु और गंगा के आठवे पुत्र देवव्रत हुये थे यही देवव्रत आगे चलकर भीष्म नाम से प्रचलित हुये। कहा जाता हैं की भीष्म जैसा बलशाली और धर्मप्रिये उस काल में पुरे आर्यव्रत में कोई भी नहीं था। भीष्म बिना युद्ध लड़े ही सिर्फ अपने नाम से ही बड़े-बड़े राज्यों को अपने सामने झुका लेते थे। उनकी भीष्म प्रतिज्ञा ने उन्हें एक आदर्श पुत्र चाचा, दादा आदि के रूप में स्थापित किया हैं। गंगा इन महाभारत Mahabharat Hindi.

ब्रह्मा जी का श्राप 

भीष्म ने अपने से बड़े सात भाइयो को कभी नहीं देखा क्युकी गंगा ने सभी सात पुत्रो को जन्म होने के बाद जल समाधी दे दी थी।  गंगा ने अपने ही सात पुत्रो को नदी में प्रवाहित कर दिया था। इसके पीछे क्या कारण था क्या उद्देश्य था इस पर हम प्रकश डालेंगे।


                                              Mahabharat Ki Kahani In Hindi

Mahabharat Hindi - Ganga shed her seven sons in the river
Mahabharat Hindi - Ganga shed her seven sons in the river 

महाभारत के आदि पर्व के अनुसार राजा दुष्यंत और शंकुन्तला के गन्धर्व विवाह से भरत जी का जन्म हुआ यह वही भरत हैं जिनके नाम पर अपने देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। भरत एक महान प्रतापी राजा थे तथा अपने प्रजा की सेवा बड़े ईमानदारी पूर्वक करते थे।

भरत के पाँच पुत्र थे लेकिन उनमे किसी में भी राजा बनने के गुण नहीं थे इसीलिए भरत जी ने बृहस्पति के पुत्र विरथ को अपना उत्तराधिकारी बनाया इन्ही विरथ की चौदहवी पीढ़ी में शांतनु का जन्म हुआ। शांतनु का जन्म भी एक श्राप की वजह से हुआ था। महाराज शांतनु कौरवों और पांडवो के परदादा थे।

पिछले जन्म में शांतनु  इक्ष्वाकु वंश के राजा महाभिषक थे जो बहुत धर्मी तथा तपस्वी थे अपने कठिन तपस्या और धार्मिक आचरणों के चलते वो ब्रह्मलोक में गए।

एक बार ब्रह्मलोक में महाभिषक अपने स्थान पर बैठे थे ब्रह्मा जी भी यथा स्थान पर विराजमान थे तभी वहा गंगा माता आई गंगा माता का दिव्य तेज को देखकर महाभिषक एकटक उनको घूरते रहे जबकी स्त्री को घूरना असभ्यता का प्रतिक माना जाता हैं।

महाभिषक को इस प्रकार एक स्त्री को घूरने की वजह से गंगा को भी क्रोध आ गया तथा ब्रह्मा जी ने महाभिषक को श्राप दिया की तुम ब्रह्मलोक में रहने लायक नहीं हो तुम मनुष्य योनि में पृथ्वी लोक पर जन्म लोगे।

ब्रह्मा जी के इस श्राप को सुनकर गंगा को अत्यंत हर्ष और गर्व के कारण अहंकार हो गया। ब्रह्मा जी ने गंगा के नेत्रों में अहंकार को भांप लिया और गंगा को भी मनुष्य योनि में जन्म लेकर अहंकाररहित होने का सजा सुनाया। ब्रह्मा जी का श्राप सुन कर महाभिषक को बहुत दुःख हुआ। यही महाभिषक पृथ्वी लोक पर कुरु वंश में विरथ के चौदहवे पीढ़ी में शांतनु के रूप में जन्म लिया।
 

गंगा इन महाभारत : माता गंगा और शांतनु का विवाह

एक बार शांतनु के पिताजी महाराजा प्रताप गंगा तट पर तपस्या कर रहे थे। महाराज प्रताप के मुख मंडल और तेज को देखकर गंगा उन पर मोहित हो गई तथा उन्होंने अपना जल स्तर बढ़ा दिया और महाराज प्रताप के दाहिने पैर को स्पर्श करते हुवे स्त्री रूप में प्रकट हुई और महाराज प्रताप से विवाह का निवेदन किया। महाराज प्रताप ने कहा "हे गंगे! धर्मपत्नी तो वाममांगी होती हैं तुम तो दाहिने पैर पर विराजमान हो गई हो वह तो पुत्रवधु का स्थान होता हैं।" गंगा इन महाभारत 

महाराज प्रताप के मुख से इस प्रकार का वचन सुनकर गंगा वहाँ से अंतर्ध्यान हो गई। कुछ समय पश्चात् महाराज प्रताप के एक पुत्र हुये जिनका नाम पड़ा शांतनु। एक बार शांतनु गंगा नदी किनारे शिकार खेलने गए। शिकार का पीछा करते-करते उनको बहुत जोर से प्यास लगी वो जैसे ही गंगातट पर अपना प्यास बुझाने गए की वहा एक अति सुन्दर स्त्री को खड़ा पाया वह स्त्री देवलोक की जान पड़ती थी।

वह स्त्री कोई और नहीं गंगा ही थी। महाराज शांतनु  सुन्दर स्त्री देख कर मोहित हो गए था महाराज शांतनु ने उनसे विवाह करने का अनुरोध किया। गंगा ने भी हामी भर दी लेकिन उन्होंने शांतनु के सामने एक शर्त रखी की जब तक आप वह शर्त मानेंगे तभी तक मै आपके पास रहूँगी जिस दिन शर्त टूट गया उस दिन मै हमेशा के लिए आपको छोड़ कर चली जाउंगी।
गंगा इन महाभारत-गंगा और शांतनु का मिलन और गंगा की
गंगा इन महाभारत- गंगा और शांतनु का मिलन और गंगा की
गंगा ने यह शर्त राखी की महाराज शांतनु कभी कोई प्रश्न नहीं करेंगे चाहे गंगा कुछ भी क्यों न करे। महाराज शांतनु ने ख़ुशी-ख़ुशी गंगा के इस शर्त को मान लिया तथा जीवनभर कोई प्रश्न नहीं पूछने का वचन दिया। उसके बाद महाराज शांतनु और गंगा का विवाह हो गया। दोनों खुशी-ख़ुशी सुखपूर्वक जीवन साथ-साथ बिताने लगे। महाराज शांतनु कभी कोई प्रश्न गंगा माता से नहीं करते और माता गंगा भी सदैव महाराज शांतनु के साथ रहने लगी।

क्यों गंगा ने अपने ही 7 पुत्रो को दे दी जल समाधी-

समय बीतता गया समय के साथ महाराज शांतनु और माता गंगा को प्रथम पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।  महाराज शांतनु बहुत खुश हुवे उनका उत्तराधिकारी ने जन्म ले लिए था लेकिन महाराज शांतनु का यह ख़ुशी ज्यादा समय तक नहीं रहा उन्होंने देखा की गंगा ने पहले पुत्र को नदी में प्रवाह कर दिया। चुकी महाराज शांतनु गंगा से कभी भी प्रश्न न करने का वचन दिया था इसीलिए उन्होंने गंगा से विलग होने के मोह में कुछ नहीं कहा और अपना सारा दुःख सह गए।

ऐसे ही सात साल बीत गए इन सात सालो में गंगा और शांतनु से सात संतान उत्पन्न हुये सातो पुत्रो को गंगा ने  अपने ही हाथो नदी में बहा दिया। शांतनु महाराज अपने पुत्रो को उसकी माता द्वारा इस प्रकार से नदी में बहा देना अत्यंत कष्टकारक होने लगा उनके लिए गंगा का यह कर्म असहनीय हो गया।

आठवे साल महाराज शांतनु और गंगा को अठवा पुत्र का जन्म हुआ गंगा पहले की भाती इस बार भी आठवे पुत्र को अपने गोद में उठा लिया और नदी में प्रवाहित करने के लिए चल पड़ीं लेकिन इस बार महाराज ने अपने वचन को तोड़ कर गंगा का हाथ पकड़ लिया और उनसे प्रश्न किया की आखिर उसने क्यों उनके सभी पुत्रो को नदी में प्रवाहित कर रही हैं  ?


 आप पढ़ रहे हैं -Mahabharat Hindi गंगा की कहानी गंगा इन महाभारत

 महाराज को अपना वचन तोड़ के प्रश्न करते हुवे देख कर गंगा ने आठवे पुत्र को नदी में प्रवाहित नहीं किया तथा शांतनु से बोली महाराज आपने अपना वचन तोडा मुझे भी अपने वचन अनुसार आपको छोड़ कर जाना होगा। लेकिन यह आपका आठवा पुत्र देवव्रत को भी अपने साथ ले जा रही हूँ इसका पालन-पोषण एक माँ की तरह करुँगी और जब यह वीर योद्धा, ज्ञानी हो जाएगा तो आपके पास आपके पुत्र को पहुँचा दूंगी।

वसुओं की मुक्ति 

इतना कहकर गंगा जाने लगी तभी महाराज ने कहा इतना तो बता दो की तुमने आखिर क्यों मेरे सातो पुत्रो को जलसमाधि दे दी गंगा ने जाते-जाते विष्णुवतार पृथु के आठ पुत्रो को ऋषि वशिष्ठ के श्राप की कहानी सुनाई और बताया की उन्ही वसुओं की मुक्ति के लिए मैंने उन सात पुत्रो को जलसमाधि देना पड़ा।

आठवा पुत्र घौ नाम का वसु हैं जिसको श्राप मिला हैं की वह लम्बे समय तक मनुष्य योनि में पृथ्वी पर मनुष्य योनि के दुःख को भोगते हुवे व्यतीत करेगा यह वही अठवा वसु का महर्षि वशिष्ठ के श्राप के कारन देवव्रत के रूप में पुनर्जन्म हुआ हैं।
Mahabharat Ki Kahani In Hindi
गंगा अपने आठवे पुत्र देवव्रत को वापस शांतनु महाराज को लौटाते हुये
अठारह वर्ष पश्चात एक बार शांतनु महाराज गंगा नदी किनारे टहल रहे थे और गंगा की पानी को देख कर गंगा और अपने पुत्र देवव्रत को हृदय से याद किया तभी गंगा अपने पुत्र देवव्रत के साथ महाराज शांतनु के सामने प्रकट हुई और बोली महाराज आपका पुत्र अब एक वीर योद्धा हो चूका हैं।

राज चलाने में यह अब निपूर्ण हैं वचन के अनुसार यह पुत्र को मै आपके पास ही छोड़ के जा रही हूँ और इतना  कहकर गंगा हमेशा के लिए अंतर्ध्यान हो गई।

Mahabharat Hindi: आठ वसुओं के श्राप की कहानी

महाभारत के अदि पर्व के अनुसार  प्राचीन समय में मेरु पर्वत पर ऋषि वशिष्ठ का आश्रम था ऋषि वशिष्ट के पास कामधेनु समान एक गाय थी जिसका नाम नन्दनी था जो सभी प्रकार के इक्षित फल प्रदान करने वाली थी। एक बार घौ आदि वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर घूम रहे थे।

घौ नाम का वसु उस नन्दनी गाय को देखकर मोहित हो गया तथा अन्य वसुओं के साथ मिलकर जब ऋषि वशिष्ठ ध्यानमग्न में थे तो उनके नन्दनी गाय को अपनी पत्नी के लिए हर ले गये।घौ इस गाय को अपने पत्नी को उपहार स्वरुप देना चाहते थे।

 जब महर्षि वशिष्ठ को इस बात का पता चला तो वो क्रोधित होकर सभी वसुओं को श्राप दिया की तुम सब मनुष्य योनि में पृथ्वी पर जन्म लोगे और मनुष्यो के दुःख को भोगोगे।  इस श्राप के बाद सभी वसु महर्षि वशिष्ठ से क्षमा-याचना माँगने लगे। महर्षि लोग तो होते ही दयालु हैं।

महर्षि वशिष्ठ ने इनके श्राप को माफ़ करते हुवे कहा की तुम सातो वसुओं को तो तुरंत ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएँगी लेकिन यह घौ नामक वसु मनुष्य रूप में लम्बे समय तक पृथ्वी पर वास करेगा और मनुष्य योनि के दुःख-सुख का भोग करेगा।


 आप पढ़ रहे हैं- Mahabharat Hindi, गंगा की कहानी 


 फिर सभी वसु माता गंगा से अनुनय-विनय प्रार्थना किया की इस श्राप से मुक्ति का कोई रास्ता बताये ? फिर माँ गंगा ने उन सभी वसुओं के प्रार्थना से प्रसन्न हो कर उनको अपने पुत्र रूप में जन्म देने का और तुरंत ही मुक्ति देने का आशीर्वाद दिया। गंगा इन महाभारत

 माता गंगा ने महाराज शांतनु से कभी भी प्रश्न न करने का वचन लेकर एक-एक कर सात वसुओं को नदी में प्रवाहित करके मानवयोनि से मुक्ति दुलाई जिससे सातो वसु वापस देवलोक को लौट आए लेकिन आठवे वसु अपने श्राप के कारण लम्बे समय तक पृथ्वी पर भीष्म के रूप में वास किया और इक्षामृत्यु द्वारा देव लोक को प्राप्त हुये।


 जय गंगे माता। हर हर गंगे, जय हो मोक्षदायनी, गंगा की कहानी

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