गीता ज्ञान के ज्ञान के रहस्यों को जान लेने के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता हैं। पुरे विश्व में गीता को किसी भी प्रमाण की आवश्यकता नहीं हैं गीता वह कामधेनु और कल्पवृक्ष हैं जिसको प्रमाण मान कर ऋषियों ने विद्वानों ने अपनी रचनाएँ की हैं। विद्या का लक्ष्य गीता के परम रहस्यों को ही जानना हैं। गीता खुद प्रमाण हैं, गीता को किसी भी प्रकार के प्रमाण की आवश्यकता नहीं हैं। बड़े बड़े आचार्यो ने विद्वानों ने अपने-अपने सिद्धांतो की प्रमाणिकता सिद्ध करने के लिए श्री गीता को ही मख्य आधार माना हैं। गीता पर भाष्य रच, टिका लिख अपने सिद्धांतो को गीता-सम्मत बताना ही आचार्यो का हमेशा से लक्ष्य रहा हैं।
गीता-विरोधी किसी भी संप्रदाय को विद्वान जान असंभव समझते हैं। विद्वान जानो का तो मानना है जो भी धर्म गीता से सर्व सम्मत नहीं हैं फिर वो धर्म नहीं अधर्म की श्रेणी में आता हैं। जिस धर्म, आचार व सिद्धांत को ब्रह्मरूपा गीता से सिद्ध कर दिया वो सर्वशास्त्र और वेद-सम्मत मान लिया जाता हैं।
द्वापरयुग(आज से लगभग साढ़े पाँच हजार वर्ष पहले ) में हस्तिनापुर के भाइयो की लड़ाई पुरे भारतवर्ष में भीषड़ युद्ध का रूप में बदल जाती हैं परमाणु बम जैसे विध्वंशक अस्त्र ब्रह्मास्त्र का साक्षी रहा लाखो से ज्यादा लोगो की हत्या हुई इस पुरे इतिहास को महर्षि व्यास में महाभारत नामक विश्व के सबसे बड़ी रचना में लिखा हैं। महाभारत युद्ध में इतना लहू बहा था की करुक्षेत्र की रणभूमि आज भी लाल हैं। यह युद्ध सिर्फ हस्तिनापुर के सिंघासन पर सिर्फ अधिकार या वर्चस्व के लिए ही नहीं लड़ा गया था यह युद्ध धर्मयुद्ध भी था यह युद्ध धर्म के विजय के लिए भी लड़ी गई थी कौरव पुत्रो और पांडवपुत्रो के बिच लड़े गए इस युद्ध में पाण्डवपुत्र धर्म को आधार मान कर युद्ध में विजय के लिए खड़े हुवे थे वही कौरव पुत्र सिर्फ हस्तिनापुर के युवराज बनाने के लालच में सिंघासन पर अपने एकाधिकार के लिए वह अधर्म का मार्ग अपनाया और अधर्म के साथ युद्ध भूमि में खड़े थे।
युद्ध के समय युद्धभूमि में कौरव और पांडवो की सेना आमने सामने युद्ध करने के लिए तैयार कड़ी थी। पांडव पुत्र धनुर्धारी अर्जुन ने भगवान् श्री कृष्ण को रथ को दोनों सेनाओ के मध्य में ले जाने का आग्रह किया। भगवान् श्री कृष्ण ने रथ को दोनों सेनाओ के मध्य में गए फिर अर्जुन ने सामने खड़े अपने प्रियजन को देख कर मोहग्रस्त हो गए और भगवान् श्री कृष्ण से नाना प्रकार के प्रमाण देते हुवे कहने लगे अपने दादा, गुरु और भाइयो को मार कर इस युद्ध को जित कर यदि मुझे पुरे पृथ्वी का भी राज मिल जाये तो भी मैं सुखी नहीं रह सकता यह युद्ध शास्त्र सम्मत नहीं, इस युद्ध से कुल ख़त्म होने का खतरा हैं और कुल ख़त्म करने का भी पाप लगता हैं इसीलिए युद्ध अनुचित हैं और उसे यह युद्ध नहीं करनी चाहिए। युद्धभूमि में खड़े होकर एक क्षत्रिय अर्जुन द्वारा ऐसी माया से वशीभूत बात सुन कर श्री कृष्ण ने जो ज्ञान दिया वही ज्ञान गीता कहलाया जिसमे कुल अठारह अध्याय और 700 श्लोक हैं आइये आज प्रथम 10 श्लोकों को पुरे विस्तार पूर्वक अर्थ सहित जानते हैं।
जन्म से अंधे धृतराष्ट्र का मन कौतुहल से भरा था। धृतराष्ट्र केअपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योद्धन को राज गद्दी पर बैठाने की कामना भी कही न कही इस युद्ध के मुख्य कारणों में से एक हैं।
कौरव के पिता धृतराष्ट्र संजय से पूछते है बताओ युद्ध भूमि धर्मभूमि करुक्षेत्र में क्या हो रहा हैं ?
Geeta in hindi |
धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ।।
भावार्थ: “धृतराष्ट्र, संजय से पूछते हैं की धर्मक्षेत्र में करुक्षेत्र में युद्ध की इक्षा से एकत्रित मेरे और पांडव के पुत्र क्या कर रहे हैं ?”
संजय उवाच
महर्षि वेद व्यास जी ने धृतराष्ट्र की युद्ध को जानने की इक्षा को पूर्ण करने के लिए संजय को दिव्यदृष्टि दी थी जिससे की संजय बिना युद्ध भूमि में गए ही युद्ध का सारा आंखोदेखा हाल जिसे आज हम लाइव कमेंट्री कहते हैं सुनाया। :-
दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत ।
भावार्थ: संजय कहते हैं की- उस समय राजा दुर्योधन ने पांडवो की विशाल सेना के व्यूहरचना को देख कर आचार्य गुरुद्रोण के समिप जा कर यह वचन कहा।
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।
भावार्थ: हे आचार्य ! पाण्डुपुत्रों के इस विशाल सेना को देखिए जो आपके ही बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टधुम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की गई हैं।
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङग्वः ।।
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्चा सर्व एवं महरथाः ।।
भावार्थ: इस सेना में बड़े बड़े धनुषवाले योद्धा तथा युद्ध में अर्जुन और भीम सामान शूरवीर योद्धा, विराट और राजा द्रुपद जैसे महारथी, धृष्टकेतु, चेकितान तथा वीर्यवान काशी नरेश, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यो में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधा मन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रा पुत्र एवं द्रौपदी पाँचो पुत्र : ये सभी महारथी हैं।
अस्माकंतु विशिष्टा ये तान्निवोध द्विजोत्तम
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थ तान ब्रवीमिते ।।
भावार्थ: हे ब्राह्मणश्रेष्ठ ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं उनको आप समझ लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मेरे सेना के जो जो सेनापती हैं उनके बारे में बतलाता हूँ ।।
भवान्भीष्मश्च कर्णश्चकृपश्च समितिञ्जयः
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ।।
भावार्थ: आप – द्रोणाचार्य पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा ।।
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ।।
भावार्थ: और भी मेरे लिए जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्र अस्त्रों सुसज्जित और सब के सब चतुर हैं।
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षित्तम्
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ।।
भावार्थ: भीष्मपितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सर्व प्रकार से अजेय हैं भीम द्वारा रक्षित इनलोगो की यह सेना जितने में सुगम हैं।
कुरुवंश के वयोवृद्ध पितामह अपने पौत्र दुर्योधन का मनोभाव जान गये और उनके प्रति अपनी स्वाभाविक दयावश उन्होंनेउसे प्रसन्न करने के लिए अत्यन्त उच्च स्वर से अपना शंख बजाया जो उनकी सिंह के समान स्थिति के अनुरूप था | अप्रत्यक्ष रूप में शंख के द्वारा प्रतीकात्मक ढंग से उन्होंने अपने हताश पौत्र दुर्योधन को बता दिया कि उन्हें युद्ध में विजय की आशा नहीं है क्योंकि दुसरे पक्ष में साक्षात् भगवान् श्रीकृष्ण हैं | फिर भी युद्ध का मार्गदर्शन करना उनका कर्तव्य था और इस सम्बन्ध में वे कोई कसर नहीं रखेंगे | सम्पूर्ण गीता सुनने के लिए सब्सक्राइब करना ना भूले।
भीष्मदेव द्वारा बजाये गये शंख कि तुलना में कृष्ण तथा अर्जुन के शंखों को दिव्य कहा गया है | दिव्य शंखों के नाद से यह सूचित हो रहा था कि दूसरे पक्ष की विजय की कोई आशा न थी क्योंकि कृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे | जयस्तु पाण्डुपुत्राणां येषां पक्षे जनार्दनः – जय सदा पाण्डु के पुत्र-जैसों कि होती है क्योंकि भगवान् कृष्ण उनके साथ हैं | और जहाँ जहाँ भगवान् विद्यमान हैं, वहीँ वहीँ लक्ष्मी भी रहती हैं क्योंकि वे अपने पति के बिना नहीं रह सकतीं | अतः जैसा कि विष्णु या भगवान् कृष्ण के शंख द्वारा उत्पन्न दिव्य ध्वनि से सूचित हो रहा था, विजय तथा श्री दोनों ही अर्जुन की प्रतीक्षा कर रही थीं | इसके अतिरिक्त, जिस रथ में दोनों मित्र आसीन थे वह अर्जुन को अग्नि देवता द्वारा प्रदत्त था और इससे सूचित हो रहा था कि तीनों लोकों में जहाँ कहीं भी यह जायेगा, वहाँ विजय निश्चित है।
इस श्लोक में अर्जुन को धनञ्जय कहा गया है क्योंकि जब इनके बड़े भाई को विभिन्न यज्ञ सम्पन्न करने के लिए धन की आवश्यकता हुई थी तो उसे प्राप्त करने में इन्होंने सहायता की थी | इसी प्रकार भीम वृकोदर कहलाते हैं क्योंकि जैसे वे अधिक खाते हैं उसी प्रकार वे अतिमानवीय कार्य करने वाले हैं, जैसे हिडिम्बासुर का वध | अतः पाण्डवों के पक्ष में श्रीकृष्ण इत्यादि विभिन्न व्यक्तियों द्वारा विशेष प्रकार के शंखों का बजाया जाना युद्ध करने वाले सैनिकों के लिए अत्यन्त प्रेरणाप्रद था | विपक्ष में ऐसा कुछ न था; न तो परम निदेशक भगवान् कृष्ण थे, न ही भाग्य की देवी (श्री) थीं | अतः युद्ध में उनकी पराजय पूर्वनिश्चित थी – शंखों कि ध्वनि मानो यही सन्देश दे रही थी |
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थाप्य मेSच्युत |
यावदेतान्निरिक्षेSहं योद्धुकामानवस्थितान् || २१ ||
कैर्मया सह योद्ध व्यमस्मिन्रणसमुद्यमे || २२ ||
भगवान् का शुद्ध भक्त होने के कारण अर्जुन को अपने बन्धु-बान्धवों से युद्ध करने कि तनिक भी इच्छा न थी, किन्तु दुर्योधन द्वारा शान्तिपूर्ण समझौता न करके हठधर्मिता पर उतारू होने के कारण उसे युद्धभूमि में आना पड़ा | अतः वह यह जानने के लिए अत्यन्त उत्सुक था कि युद्धभूमि में कौन-कौन से अग्रणी व्यक्ति उपस्थित हैं | यद्यपि युद्धभूमि में शान्ति-प्रयासों का कोई प्रश्न नहीं उठता तो भी वह उन्हें फिर से देखना चाह रहा था और यह देखना चाह रहा था कि वे इस अवांछित युद्ध पर किस हद तक तुले हुए हैं।
त इमेSवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च |
आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः || ३३ ||
मातुलाः श्र्वश्रुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा |
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोSपि मधुसूदन || ३४ ||
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते |
निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीति स्याज्जनार्दन || ३५ ||
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् |
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन || ३८ ||
Sudhi
आपके आर्टिकल मुझे काफी अच्छे लगते है, आप ऐसे ही प्रेरणादायक आर्टिकल लिखते रहा करो
Sudhir here from latestnewssuno.com
गुरूजी इन हिंदी
dhnywaad aapki bhi blog bahut gud hain. best of luck!!