“जय जवान जय किसान” जैसे क्रन्तिकारी विचारधारा के जनक श्री लाल बहादुर शास्त्री भारतीय इतिहास में देशहित के लिए एक बहुत ही मजबूत और कठोर निर्णय लेने वाले पहले प्रधानमंत्री थे।
लाल बहादुर शास्त्री जैसी ईमानदारी, सहजता, रहन-सहन, विचार वाला व्यक्तित्व भारतीय इतिहास में ना कभी हुआ और होगा। विलक्षण प्रतिभा के धनि लाल बहादुर शास्त्री त्याग की मूर्ति हैं। लाल बहादुर शास्त्री ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं।
भारत के रेल मंत्री या प्रधानमंत्री जैसे सबसे उच्च पदों पर रहते हुवे भी धूलि बराबर भी अभिमान अंतिम साँस तक लाल बहादुर शास्त्री जी को नहीं हुआ।
Lal Bahadur Shastri मर गए या मार दिए गए ? |
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लाल बहादुर शास्त्री जी का जीवन हर उस नौजवान के लिए प्रेरणा का प्रतिक हैं जो अभावो में जी रहा हैं। शास्त्री जी ने ही हमें सिखाया की कैसे सिमित संसाधनों से भी द्रिढ प्रयासों द्वारा पढाई भी की जा सकती हैं और भारत का प्रधानमंत्री भी बना जा सकता हैं।
शास्त्री जी ने अपना सारा जीवन गरीबो की सेवा में देश की सेवा में समर्पित कर दिया। ऐसे महापुरुष जिन्होंने हमारी सुऱक्षा के लिए देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान दे दी उनके बारे में जानने प्रयास करते हैं।
शास्त्री जी के पिताजी का नाम शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था जिन्होंने बाद में राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी करने लगे थे। लाल बहादुर शास्त्री जब मात्र डेढ़ वर्ष के थे तभी उनकी पिताजी की मृत्यु हो गई थी। फिर परिवार की सारी जिम्मेदारी माताजी पर आ गई और जीवन बहुत ही कठिन दौर में पहुंच गया। लालबहादुर जी के माँ का नाम राम दुलारी था।
संस्कृत भाषा में स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् शास्त्री जी को काशी विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि दी गई। शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद लाल बहादुर श्रीवास्तव के नाम में श्रीवास्तव की जगह शास्त्री लग गया तबसे वो लाल बहादुर शास्त्री कहलाने लगे।
शास्त्री जी सच्चे देशभक्त थे और उन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे राष्ट्र के कल्याण में लगाया इसी विचारधारा और कठिन परिश्रम की वजह से शास्त्री का कोंग्रस पार्टी में पद बढ़ने लगा। लाल बहादुर शास्त्री ने मुख्यतः असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च और भारत छोडो आंदोलन में सक्रिय और महत्वपूर्ण निभाया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश राज को अपूर्णिय क्षति उठानी पड़ रही थी। अंग्रेजो को भारत जैसे बड़े देश को युद्ध जैसे नाजुक समय में संभाल पाना बहुत कठिन हो रहा था। इसी मौके का फायदा उठाते हुवे सुभाष चंद्र बोस ने अपनी आज़ाद हिन्द फौज को ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया और अंग्रेजो के ऊपर चढ़ाई की शुरुआत की।
अहिंसात्मक आंदोलन को बहुत ही चालाकी से लाल बहादुर शास्त्री ने मरो की जगह मारो का प्रचार शुरू किया जिसमे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी खूब सहयोग किया। पुरे देश में यह आंदोलन हिंसात्मक रूप लेने लगा। अंग्रेजो का जड़ हिल गया। अंग्रेजो का भारत में रहना मुश्किल हो गया फिर अंग्रेजो ने बड़ी चतुराई से ‘फुट डालो राज करो’ की विचारधारा से और गद्दारो के सहयोग से इस आंदोलन को काबू में ले लिया।
इलाहाबाद में लाल बहादुर शास्त्री सचिव के पद पर रहते हुवे पूरी ईमानदारी और सादगी से अपनी सेवा देने लगे। इलाहाबाद में रहने के कारण नेहरू से नजदीकियां बढ़ने लगी।
उसके बाद अपनी ईमानदारी और साफ़-सुथरी छवि के कारण शास्त्री जी निरंतर सफलता की सीढियाँ चढ़ने लगे और 1947 में सत्ता के हस्तारान्तरण के बाद नेहरू के सत्ता में गृहमंत्री के पद पर भी पूरी निष्ठाभाव से अपनी सेवा दी और नेहरू के मृत्युपरांत भारत को पहली बार अपना बेटा अपनी विचारधारा वाला कुशल नेतृत्व देने वाला प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के रूप में मिला।
नेहरू के गलत निर्णयों के कारण भारत का चौमुखी विनाश हो रहा था भारत अन्न लिए विदेशो पर निर्भर रहता था भारत में संक्रमित चूहे वाले गेहूँ अमेरिका से खाने के लिए आते थे जिससे अनगिनत महामारी फैली और सैकड़ो लोगो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। खाद्द्यानो के अकाल को ख़त्म करने के लिए कृषि की तरफ जाने का आह्वाहन किया।
युद्ध की शुरुआत होते ही राष्ट्रपति भवन में आपातकालीन बैठक हुई और तीनो सेना के प्रमुखों ने लाल बहादुर शास्त्री को सारी वस्तुस्थिति समझाया और आगे क्या किया जाए इसकाआर्डर माँगा। लाल बहादुर शास्त्री ने बहुत कम शब्द में बहुत बड़ा निर्णय लिया और ये कहते हुवे सेना को खुली छूट दी की ‘आप हमारे देश की सुरक्षा कीजिए अब आप बताइये की हमें क्या करना हैं।’
तथा लोगो को युद्ध में सहयोग करने के लिए सोमवार का व्रत करने का आह्वाहन किया और खुद अपने परिवार के साथ व्रत करना प्रारम्भ किया ताकि एक दिन के अन्न के बचत से देश के जरुरी कार्य किए जा सके। अपने प्रिये प्रधानमन्त्री के एक आह्वाहन पर पुरे देश में नई सोच और नई क्रांति का संचार होने लगा। क्रन्तिकारी परिवर्तन हुवे पूरा देश एकता के सूत्र में बध गया। ऐसी एकता देख कर पाकिस्तानी आश्चर्यचकित रह गए।
तब शास्त्री जी ने अमेरिका को करारा जवाब दिया की हमें सड़े गले गेहूँ नहीं चाहिए और हम अब खुद अपनी गेहूँ उपजा लेंगे नहीं चाहिए तुम्हारा गेहूँ लेकिन हमारी सेना पीछे नहीं हटेगी और पकिस्तान को सबक सीखा के ही दम लेगी और एक बार फिर ‘जय जवान जय किसान’ की हुंकार भरी।
हर विदेश यात्रा में शास्त्री जी की पत्नी उनके साथ ही जाती थी लेकिन इस यात्रा में उनको भी कई बातो में उलझाकर भारत ही रोक लिया गया और रसोइया एक मुस्लिम और डॉक्टर और कुछ सलाहकारों के साथ ताशकंद के लिए रवाना हो गए।
कहा जाता है की ताशकंद में शास्त्री जी को उसके मुस्लिम रसोइये के द्वारा दूध में जहर मिला के दिया गया था। बाद में वह रसोइया पकिस्तान चला गया था।
उनकी पत्नी ललिता ने बताया की उनके शरीर पर कई जगह गहरे निशान थे। उनकी पत्नी ललिता देवी को उनके साथ नहीं जाने का पछतावा जीवन भर के लिए हो गया। शरीर के पड़ जाने के कारण कहा जाता हैं की उनकी मृत्यु जहर देने से हुवी हैं।
Unknown
I think the writer us from RSS who admiring the RSS people and denied the Congress leader.
Unknown
I think the writer is from RSS who admiring the RSS people and denied the Gandhi ji.
Pushpendra Kumar Singh
मुगलों से जो सत्ता लालुपता की विरासत अंग्रेजों ने पाई , वही विरासत अंग्रेजों से कांग्रेस ने पाई और कांग्रेस के सत्ता के लोभ ने कई महापुरुषों के त्याग को हिंदुस्तान की जनता के समक्ष आने ही नहीं दिया
कांग्रेस ने देश बर्बाद कर दिया