मेरे पास कोई बहुत बड़ा बड़ा डिग्री नहीं हैं मै कोई इतिहासकार या साहित्यकार नहीं हूँ। अपने सूझ-बुझ और विभिन्न प्रकार के इतिहासकारो को पढ़कर अपने आस-पास की घटनाओ, सरकारी कानून,सरकारी तंत्रो के कार्य प्रणाली को देखकर तथा राजनितिक पार्टियों समूहों के विचार को देख कर मैंने भारत को आज़ाद नहीं अभी परतंत्र ही पाया हैं। और इस पुस्तक के माध्यम से आप को भी बताना चाहता हूँ।
यहाँ भारत का अर्थ भारतीय सनातन परम्परा से हैं जिसे बड़ी चालाकी से एक षड़यंत्र के तहत ख़त्म करने का प्रयत्न किया जा रहा हैं। यह लोकतंत्र नहीं षड़यंत्र है। भारत का सिर्फ नाम ही नहीं बदला गया भारत को भी मिटाने का प्रयास किया गया हैं यहाँ इंडिया वाली कुसंस्कृति को विकास करते और भारत वाले संस्कृति को मृत्यु शैया पर पड़ा दिखाई दे रहा हैं।
और यही सब कारण हैं की पुरे विश्व में भारत सिर्फ भ्रस्टाचार के नाम से जाना जाता था थोड़ा बहुत क्रिकेट ने काम कर दिया था बाकी सब ताजमहल पर आकर भारत ख़त्म हो जाता था। देश भक्तो के हाथ से छीनी गई सत्ता लगभग हजारो साल बाद पहली बार पूर्ण रूप से देशभक्तों के हाथ में आई 2014 के बाद एक बार फिर से आज भारत का डंका पुरे विश्व में बजना शुरू हुआ हैं।
भारत मूलतः वही था जो पहले के सरकारों में था लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व ने भारत को एक नई दशा और नई दिशा दी और सिद्ध कर दिया की सत्य को चाहे आप जिस मार्ग पर धकेल दो उसकी प्रकृति नहीं बदलती जो बदल जाए वो फिर सत्य नहीं।
यह सर्व विदित हैं पूरी दुनिया में जितने आक्रमण भारत या भारतीय संस्कृति पर हुवे हैं उतना लम्बे समय तक दुनिया की किसी भी संस्कृति ने आक्रमण को झेल नहीं पाय हैं बरबाद हो गया। कितनी संकृतियाँ तो 10 से 20 साल के अल्प समय में ही ख़त्म कर दी गयी। अरबी कबीलो और ईसाईयों के विस्तारवाद ने हजारो संस्कृतियों, भाषाओं को निगल लिया वो सभी संस्कृतियाँ, भाषाएँ, परम्पराये जीवन जीने के कपडे पहने के अलग-अलग तरीके सब डायनासोर की तरह विलुप्त हो गए। इतिहास में नाम तक कितने दर्ज नहीं करा पाए।
अंग्रेजी पश्चातय इतिहासकारो को जब से लिखना आया तभी से इतिहास को आप देख लीजिये अकेला भारतीय संस्कृति ही जीवित बच पाई हैं। क्यों? एकमात्र कारण हैं हमारी संस्कृति की शक्ति जो हमारा धर्म हैं वह सत्य हैं। महाभारत में भी कहा गया हैं -धर्म की रक्षा होगी तो धर्म आपकी रक्षा करेगा। हमने अपना धर्म नहीं छोड़ा इसीलिए धर्म ने आज भी हमारी सामूहिक रूप से रक्षा और भरण-पोषण कर रहा हैं।
धर्म ने अब प्रेम दया शांति फैलाने का मन बना लिए हैं जिसके लिए यदि हिंसा करनी पड़े तो वो भी धर्म हैं यह सब गूढ़ ज्ञान पहले से हैं। हम भारतीय बहुत भाग्य शैली हैं की हमें सबकुछ पूर्वजो द्वारा बना बनाया मिला हैं। जिसके परिणाम स्वरुप भारत विश्व गुरु सोने की चिड़िया कहलाया हैं।
18 वी सदी से पहले तक हिरा, मोती, मूँगा इन बेशकीमिति पत्थरो का ज्ञान साथ ही सभी प्रकार का ज्ञान सिर्फ भारत में ही था। पूरी दुनिया जानवरो की तरह असभ्य आचरण करती थी आज भी करती हैं लेकिन कलयुग का प्रकोप ही कहिये की उन जानवरो के हाथ में विश्व गुरु और सोने की चिड़िया आ गई और हम बरबाद हो गए।
यदि आज़ादी मिली तो 1947 से ही युद्धस्तर पर क्षति पूर्ति शुरू होनी चाहिए थी लेकिन आम जनता का शोषण उससे भी ज्यादा होने लगा जैसे की इन जानवरो के हाथो गुलामी काल में होता था। हमारी ज्ञान और महान परंपरा को किसी से सर्टिफिकट की आवश्यकता नहीं हैं फिर भी विश्व के बड़े बड़े ज्ञानी विज्ञानी कहे जाने वाले लोगो ने भारत के सनातन ज्ञान और संस्कृति को पुरे जोर-शोर से चिन्हित भी किया हैं। दुनिया के लोग सराहना करते हैं और अनेक विश्व प्रसिद्ध लोग धर्म का अनुसरण भी करते हैं।
फिर भी हम भारत के लोग अंग्रेजो के बनाये तंत्र पर चलते हैं जिस तंत्र ने हमें विश्व गुरु बनाया उसको काल्पनिक मान बैठे हैं। नरेंद्र मोदी पहली बार कोई प्रधानमन्त्री खुल कर इंडिया को नहीं भारत को प्रमोट कर रहे हैं। अंग्रेजो के तंत्र पर ही सही लेकिन भारत में धीरे धीरे विकास की गाडी को गति मिली हैं लेकिन इस अंग्रेजी तंत्र का भविष्य अन्धकारमय हैं इससे भुखमरी, बेरोजगारी, जनसँख्या, प्रदुषण, गरीबी, भ्रस्टाचार, असामनता, अज्ञानता, कट्टरता और बिमारी ही फैलेगा।
हमें जरुरी हैं की हम अपनी जड़ो को खोजे अपने सनातन तंत्र को आत्मसात करे भविष्य उसी तंत्र के अनुसार जीवन यापन या सामाजिक व्यवस्था करने से सुरक्षित हैं।
मोदी जी की सरकार आने से एक नए बदलाव की बेयार बह चली हैं। सदियों से फँसे पड़े मामले बदल रहे हैं। इसी बिच भारत के स्वर्णिम इतिहास और इतिहास में हुवे छेड़छाड़ की पोल भी खुलनी चाहिए। कैसी आज़ादी किसकी आज़ादी आज़ादी की परिभाषा की भी खोज होनी चाहिए। राष्ट्र पुरुष भारत ने एक बड़ा महा परिवर्तन का मन बना लिया हैं।
हम एक महापरिवर्तन की तरफ बढ़ चुके हैं अब जरुरी हैं की इतिहास में जो दाग धब्बे हमारे ऊपर लगाए गए हैं उसको साफ़ किया जाए जरुरी हैं की सभी कुछ जिसको जानबूझकर छिपाने की कोशिश की गई हैं वह खुले सत्य कड़वा होता हैं. मोदी सरकार अभी कड़वा बनने के स्थान पर नहीं हैं इसी लिए भारत आज़ाद हैं यह सबसे बड़ा मजाक हैं खुलकर नहीं कहती हैं।
बहुत कूटनीति हैं लेकिन हम जनता को यह अधिकार हैं और यह अधिकार, जिस अधिकार ने मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाया हमें अंग्रेजो ने ही दिया हैं इंग्लैंड के ब्रिटिश पार्लियामेंट से मिला सर्टिफिकट ही हमारा पहचान हैं। यह पुस्तक इसी पहचान को मिटाने का एक प्रयास हैं। पूजनीय वाजपेयी जी ने भी अपनी कालजयी रचना के माध्यम से आज़ादी अभी अधूरी हैं की बात कह चुके हैं –
चलिए मान लेते हैं मुस्लिम हमारे साथ थे लेकिन फिर प्रश्न ये उठता हैं की जब साथ थे तो पकिस्तान किसने बनाया और ट्रेन में भरकर कौन लाश भारत को भेज रहा था क्या उन लाखो लाशो में एक भी मुस्लिम का लाश था ? साथ रह थे या जानबूझकर साथ रखा गया एक वोट बैंक को बनाने के लिए ताकि सत्ता की चासनी एक लम्बे समय तक खाई जा सके और हुआ भी यही।
कांग्रेस ने 1947 से अब तक लगभग 60 साल तक सत्ता में रही सिर्फ मुस्लिम वोटबैंक की बदौलत। इस वोटबैंक की वजह से सत्ता में आई सभी सरकारों ने सभी सरकारी तंत्र जिनका उपयोग भारत के विकास के लिए होना था उन सभी सरकारी तंत्रो को सिर्फ एक वोट बैंक के विकास में लगाया गया भारत का विकास जानबूझकर रोक कर रखा गया। शिक्षा पद्धति ने उनके अंदर भी सत्य का बोध करने में क्यों सहयोग नहीं किया शिक्षा का एक अर्थ हैं सत्य की सुरक्षा सत्य का प्रचार
2011 कॉलेज में जाने तक मैं भी सभी की तरह मॉडर्न कम वेस्टर्न ज्यादा था। इंग्लिश बोलना मात्र ही ज्ञानी होने का प्रमाण हैं ऐसा विचारधारा वाला था। अमेरिका इंग्लैंड को ही स्वर्ग समझने वाला और मल्टिनैशनल कंपनी में जॉब करना ही सफल होने का परिभाषा था। मेरा ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम वाला विचार था। क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सब भाई भाई।
फर्क तो तब पड़ा जब कॉलेज में कश्मीरी मुस्लिमो छात्रों का भारतीयता पर टोंट मारना उनका धरना प्रदर्शन करना बिना सोचे-समझे रामायण महाभारत की कहानियों का मजाक बनाना। हमारी पूजा पद्धति का मजाक बनाना साथ ही मूर्तिपूजा को गलत बताना वेद को गलत कहना, मंत्रो का अनर्थ लगाना आदि आदि मेरे अंदर क्रोध को जन्म देने के लिए काफी था।
मैं एक दो बार उनसे बात करने का प्रयास किया लेकिन उल्टा ही उन्होंने मेरा ब्रैनवॉश करने का प्रयास किया लेकिन दाल गलता न देख बोले की यह सब बात तुम्हे समझ में नहीं आयेंगी -“ये सब राजनीति द्वारा शोषण करने की बात है हिन्दू धर्म, मूर्तिपूजा ये सब काल्पनिक हैं और तुमलोग कश्मीर को गुलाम बना के रखे हो और मुस्लिमो पर पुरे भारत में अत्याचार कर रहे हो।
उसकी बाते मुझे इंट्रस्टिंग लगी और चैलेंज करने वाली भी लगी। मैंने कहा ऐसे कैसे समझ नहीं आएगी जब आइंस्टीन की फिजिक्स तुम जैसे लोगो को समझा सकता हूँ तो ये बात भी कोई वैदिक गणित नहीं हैं।
यह सभी बाते मेरे लिए नई थी लेकिन आश्चर्य की बात थी की हमेशा क्लास में टॉप किया मैं फिर यह मुस्लिम राजनीति और अपने मजहब का ज्ञान उसको मुझसे कही ज्यादा था। यह सब बात सिलेबस का भी हिस्सा नहीं था फिर इन सभी बातो का ज्ञान उसको कहा से हो रहा हैं हो रहा हैं ? खोजने में पता चला की उनके नेताओ जैसे ज़ाकिर नायक जैसे इस्लामिक मौलवियों से मदरसे मस्जिद में बैठे मौलवियों से उनका कनेक्शन हमेशा रहता हैं इन सभी बातो का मुख्य स्त्रोत यही मौलवी मस्जिद मदरसे जहा से इनके दिमाग में इस्लाम के लिए कट्टरता भरी जाती हैं अपने मजहब के सपने को पूरा करने के लिए। पूरी दुनिया को काफिर मुक्त करने के लिए।
मेरा दिमाग घुमा ये कश्मीरी मुस्लिम हद से बढ़ती बेरोजगारी, दंगे, बलात्कार, गरीबी, प्रदुषण, जनसँख्या, अपराध, भ्रस्टाचार पर आंदोलन या धरना प्रदर्शन नहीं करते लेकिन आज़ादी लेने के लिए धरना प्रदर्शन करते हैं।
एक मुस्लिम जो श्री राम को नहीं मानता हैं वो भी श्री राम के बारे में बहुत कुछ जनता हैं और मैं उसके धर्म या मजहब के बारे में एक लाइन भी नहीं जानता हूँ। जिस शिक्षा पद्धति से वह मुस्लिम पढता हैं उसी शिक्षा पद्धति द्वारा दी गई पुस्तक को हिन्दू भी पढता हैं फिर अपने अपने मत के ज्ञान के मामले में हिन्दू ही क्यों पीछे हैं, या कही जानबूझकर पीछे तो नहीं रखा जा रहा हैं ?
गहन अध्ययन से मैं भी अब सबकुछ समझ चुका था। उनकी कश्मीर की मांग जायज था या नहीं सब समझ में आ चुका था और उनके द्वारा किये गए कश्मीरी पंडितो पर अत्याचार का भी पता चल चुका था।
फिर कॉलेज में हुआ वाद-विवाद एक बार नहीं कई बार और उन्हें हर बार करारा जवाब मिला और कश्मीर को आज़ाद कराने वाले उनके धरना प्रदर्शन का जम कर विरोध हुआ, हमारे विरोध से उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ा क्युकी भारत का सविधान ही कुछ ऐसा हैं। कश्मीर में तो ये हथियार से संपन्न भारतीय सेना के ऊपर पत्थर बरसाते हैं यदि कोई सैनिक अकेले दिख जाए तो उनके ऊपर लात जुत्ते भी बरसाते हैं फिर हमारे विरोध से क्या फर्क पड़ने वाला था।
उस वाद-विवाद से यह तो तय हो गया की मुस्लिम अपने मजहब और उस मजहब के लिए ज्यादा से ज्यादा जमीन अपने अंडर में करने के लिए बेचैन हैं। मुझे पता चला की कितना जहर इस देश के प्रति कश्मीरी मुस्लिमो में भरी हैं इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। मुझे लगा ऐसी विचार धारा वाले शायद मेरे ही कॉलेज में थे लेकिन मैं गलत था धीरे धीरे जब हमने अपना दृष्टिकोण बदला वेस्टर्न या कथित मॉडर्न का चश्मा हटा के देखा तो ऐसे देशद्रोही सिर्फ मेरे कॉलेज में ही नहीं भारत के कोने-कोने में हैं।
क्यों हैं ऐसे देशद्रोही भारत के कोने-कोने में हम तो आज़ाद हो गए हैं ? हर साल भारत का झंडा लहराते हैं 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मानते है क्युकी १५ अगस्त १९४७ को जो देशद्रोही थे उनसे हमे आज़ादी मिली भारत का बड़ा भाग भी तोड़ कर मुलिम के नाम दे दिया गया फिर भी भारत के टुकड़े करने वाले आजतक भारत में फल फूल क्यों रहे हैं फिर हमें आज़ादी किससे मिली? मैं तो जहा देखता मुझे भारत परतंत्र ही नजर आ रहा हैं आखिर किसकी आज़ादी ? कैसी आज़ादी की देश का नाम विदेशियों ने अपने अनुरूप रखा देश का नाम बदल दिया भारत की आत्मा सनातन धर्म को ख़त्म करने का षड्यंत्र किया।
आखिर क्यों मेरे साथ रहने वाला मुस्लिम या ईसाई अपने मजहब अपनी संस्कृति अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं ? जबकि मैं मल्टीनेशनल कंपनी में बड़ा नौकरी करने के आलावा किसी और भविष्य को जानता ही नहीं था मूलतः मैं कौन हूँ ? मेरी संस्कृति क्या हैं? धर्म क्या हैं? मेरी संस्कृति का भविष्य क्या हैं ? इस बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
जबकि इसके उलट मुस्लिम कम उम्र में ही वे अपने मजहब का पूरा ज्ञान भी रखता हैं की उसका मजहब क्या हैं? उसकी संस्कृति क्या हैं ? उसके कुरआन के आयतो का अर्थ क्या हैं ? और इस्लाम का भविष्य कैसे सुनिश्चित हो सकता हैं?
लेकिन इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाले किसी भी हिन्दू लड़के-लड़कियों को शायद ही धर्म की परिभाषा का ज्ञान भी होगा या शायद ही अपने पूर्वजो के महान गौरवशाली इतिहास का उनको ज्ञान होगा। 95% हिन्दू युवा तो ऐसे होंगे जिनको एक मन्त्र का भी अर्थ सहित ज्ञान नहीं होगा। क्यों ?
मुस्लिम या ईसाई अपने अपने पूर्वज का कथित स्वर्णिम इतिहास को चिल्ला चिल्ला कर बताते हैं कोई कहता हैं अकबर महान था तो कोई कहता हैं बाबर महान था तो कोई कहता हैं भारत में कुछ नहीं था मुगलो ने सब बड़े बड़े भवन का निर्माण कराया तो अंग्रेजो ने हमें सभ्यता से जीना सिखाया और हम हिन्दू तालिया बजाते हैं क्यों क्युकी हमारी शिक्षा पद्धति भारत की भाषा नहीं बोलती वह ऐसे ही मुस्लिमो और ईसाईयों की भाषा बोलती हैं।
हमे अपने पूर्वजो का ज्ञान ही नहीं होने दिया गया हम तो यह सोचते हैं की सबकुछ इंग्लैंड अमेरिका वालो ने ही सिखाया आगे भी उनका ही मुँह ताकते रहते हैं।
इस भाषा को समझने की सूझ बुझ मेरे अंदर विकसित हुई और फिर मैंने भारत के गुलामी काल का और भारत के आज़ादी का इतिहास पढ़ना शुरू किया। मैंने देश-विदेश के अनेक लेखकों दार्शनिको कूटनीतिज्ञों को पढ़ा साथ ही कई इतिहासकारों द्वारा लिखित इतिहास को भी पढ़ा भारत के कई जगह घूमने के दवारन अनुभव द्वारा मिली जानकारी का भी इस लेख में संग्रह किया गया हैं।
भारत में घट रही घटनाओ को देखने से, बेहिसाब बढ़ती जनसँख्या, बेरोजगारी, प्रदुषण, गरीबी, भुखमरी के आकँड़ो को देखने से और इतिहास को गहराई से पढ़ने से बहुत ऐसी सही बातो का पता चलता हैं जो की पाठ्यपुस्तक से नदारद हैं ऐसा लगता हैं उन्हें छिपाने का प्रयास किया गया भारत का नाम ही नहीं बदला गया बल्कि भारत के पुरे पहचान को मिटाने का षड्यंत्र किया गया हैं और इस षड़यंत्र को बड़ी ही चालाकी से लोकतंत्र का चोला पहनाकर स्वतंत्र घोषित कर दिया हैं एक लिखी हुई स्क्रिप्ट की तरह।
हमने षड़यंत्र के इसी चोले को बेनकाब करने का कार्य कई कड़ियों को जोड़ एक एक अर्थपूर्ण बात पर पहुँचा हूँ की यह लोकतंत्र नहीं षड़यंत्र हैं भारत आज़ाद हैं यह सबसे बड़ा मजाक हैं।
मुझे अपनी संस्कृति पर गर्व करने का और इसके भविष्य की चिंता करने का सम्पूर्ण अधिकार हैं। मेरी संस्कृति कैसी हैं इस पर भी प्रश्न करने का अधिकार किसी को नहीं हैं।
50 से ज्यादा इस्लामिक देश और 70 से ज्यादा ईसाई देश हैं। इन देशो में कोई पूछने नहीं जाता की आपका मजहब या रिलिजन कैसा हैं ? इसीलिए हिन्दू संस्कृति पर भी किसी भी प्रकार का प्रश्न नहीं उठना चाहिए की हम कैसे हैं ?
हम कैसे हैं पूरी दुनिया जानती हैं सिंकदर ने भी जब भारत पर आक्रमण किया था वो भी जान गया था की भारत और भारतीय कैसे हैं लेकिन उसके जानने का तरिका हिंसात्मक था इसीलिए उसे हिंसात्मक ही जवाब मिला क्युकी उस समय गाँधी नहीं थे चाणक्य थे।
सिंकदर फिर कभी लड़ने लायक नहीं बचा। वह युद्ध उसके जीवन का अंतिम युद्ध बना। अपने देश लौटते समय रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गयी। कई ऐसे प्रामाणिक इतिहासकार हैं जो इस बात को कहते हैं। लेकिन भारत के शिक्षा से यह इतिहास गायब हैं।
इस्लामिक आतंकवादियों ने जब पर्शिया पर हमला किया और लोगो को इस्लाम कबुल कराया नहीं तो सबका गला काट दिया तो वहा से कुछ पर्शियन लोग नाव में बैठकर भागे। कही शरण नहीं मिला, हमने भारत ने उनको शरण दी आज हमारे साथ शांति सद्भाव के साथ रहते हैं। भारत के संस्कृति की महानता की बात करू तो शायद मेरा जीवन बित जाए फिर भी सभी बाते पूरी नहीं हो पाएंगी।
फिर भी हमें असहिष्णु कहा जाता हैं। सिंकदर को भारत के योद्धाओ ने हराया फिर भी प्रचारित किया गया की “जो जीता वही सिकंदर।” क्यों झूठा प्रचारित किया गया क्युकी सही इतिहास छुपाना हैं।
गाय को माता न कहे, गाय को काटकर खाये, भारत को माता न कहे, वन्दे मातरम पर गुस्साए फिर भी हम सभी हिन्दू मुस्लिम भाई-भाई चिल्लाय। कही ऐसी ही सच्चाई हमारी आज़ादी का तो नहीं हैं?
दूसरी बात इतने देश जब गर्व से अपने आपको अपने मजहब या रिलिजन के नाम से बता सकते हैं की ख़ुशी हैं की हम इस्लामिक देश हैं या ख़ुशी हैं हम ईसाई देश हैं या ख़ुशी हैं हम बौद्ध देश हैं या ख़ुशी हैं हम कम्युनिस्ट देश हैं या ख़ुशी हैं हम यहूदी देश हैं फिर हम हिन्दू आधिकारिक रूप से क्यू नहीं कह सकते की हमें भी ख़ुशी हैं और गर्व हैं की हम हिन्दू देश हैं ऐसा हम नहीं कह सकते क्युकी पूरी पृथ्वी पर हिन्दू के नाम एक स्कॉर मीटर इतना छोटा देश भी नहीं हैं
2020 के समय पुरे विश्व में जब इतनी बड़े संख्या में इस्लामिक, ईसाई, बौद्ध, कम्युनिस्ट देश आधिकारिक रूप से हैं फिर इस अधिकार से विश्व के तीसरे सबसे बड़े शांतिप्रिय हिन्दू धर्म को अलग क्यों रखा गया हैं ?
पुरे विश्व में एक भी देश ऐसा नहीं हैं जो हिन्दू के नाम से हो आखिर क्यों इस अधिकार से हिन्दू को वंचित रखा गया।
इतना तो तय है की भारत यदि आज़ाद रहता तो उसकी पहचान जरूर भारतीय होती। हिन्दू संस्कृति ही भारतीय संस्कृति हैं इसमें किसी को कोई संदेह नहीं हैं और यदि आपको संदेह हैं तो आपको अपना ज्ञान बढ़ाने की आवश्यकता हैं।
यह वंचित करने वाला कौन था ? आखिर क्यों हिन्दुओं के अपने देश को एक अंग्रेजी पहचान देकर धर्मनिरपेक्ष नया शब्द गढ़ नई परिभाषा बना कर एक कथित धर्मनिरपेक्ष बना दिया गया। क्या यह संस्कृति को मिटाने प्रयास नहीं हैं।
सम्पूर्ण विश्व को सभ्यता की परिभाषा हमने सिखाया जानवर से मनुष्य कैसे बनना है हम भारतियों ने ही सबसे पहले बताया। दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं हैं जो महाभारत में नहीं हैं। जो महाभारत में नहीं हैं वो पूरी दुनिया में नहीं हैं।
इतना आत्मविश्वास से कहने वाले वेद व्यास जी के एक ग्रन्थ में दुनिया के सभी विषयों को विस्तार से बताया गया हैं सोचिये सभी वेद सभी पुराण सभु उपनिषद उपवेद आदि आदि कितना ज्ञान का अथाह सागर हमारे पास हैं इतना ज्ञान रखने वाले देश को कोई असभ्य अंग्रेज आकर रहने का तरिका कैसे सीखा गया ? शासन करने का तरीका कैसे सीखा गया ?
तब प्रश्न उठता हैं की क्या सही में हम आजाद हैं या यह सबसे बड़ा मजाक हैं। इस बात को या इस षड्यंत्र को समझने के लिए जरुरी नहीं आपका दिमाग आइंस्टीन वाला होना चाहिए मैं बहुत बेसिक बात पर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ सर्व विदित हैं की
इन्हे पढ़े- गणतंत्र दिवस या षड्यंत्र दिवस निबंध हिंदी में
यदि अंग्रेजो ने सिर्फ चुनाव की व्यवस्था कर दी होती तो भारत के आज का लोकतंत्र और अंग्रेजो के गुलामी तंत्र में रत्ती भर भी अंतर नहीं होता और तब हमको पता चलता की हम आज़ाद कहा हैं। बस 1947 के बाद चुनाव करने का अधिकार मिला बाकी सब अंग्रेजो द्वारा पहले ही सेट किया जा चूका था चाहे वो न्याय तंत्र हो, शिक्षा तंत्र हो.
आखिर किस प्रकार की आज़ादी हमें मिली हैं जहाँ पहले गाँव का आम किसान, हजाम, बुनकर, सोनार, बनिया, वेद उपनिषद का प्रमाण दे कर अपनी बात रखता हो, जहाँ गाँव-गाँव गुरुकुलों में वैज्ञानिक, सर्जन, कलाकार, दार्शनिक जनहित में फ्री में बैठा हो, वहाँ स्वतंत्रता के 72 सालो बाद आज भी कई गावो में एक अदद विद्यालय और एक बढ़िया हॉस्पिटल नहीं बन पाया साथ ही अशिक्षित नेरोजगार बीमार लोग तड़प तड़प मर रहे हैं बेरोजगारों और सनातन व्यवसाय को ख़त्म होता देख प्रश्न उठा हैं क्या हम आज़ाद हैं ?
Bhagwa Dhwaj |
न्याय तंत्र, शिक्षा तंत्र को तथा इनके परिणामो को करीब से देखने पर मन में प्रश्न उठना लाजमी हैं आखिर जिसने हमें गुलाम बनाया हमारे संस्कृति को धरातल में पहुँचा दिया जिसने भारतीयों का नरसंहार किया, हजारो हिन्दू माँ-बहनो को अपने हरम में रखा उनका बलात हर लिया आखिर वो औरंगजेब, शाहजहाँ, अकबर हमारे पाठ्यपुस्तक में प्रेम के निशानी या महान कैसे हैं?
भारतीय शिक्षा तंत्र को देख कर ऐसा लगता हैं जैसे हमसे कुछ छुपाने की कोशिश की जा रही हैं पहला शिक्षा मंत्री कट्टर मौलवी था अब आप सोच सकते हैं हम या हमारी आने वाली पीढ़ी किस विचारधारा से प्रेरित पाठ्यपुस्तक पढ़ रही हैं। फिर हमारी मानसिकता उसी विचारधारा जैसी ही होंगी और हो भी गई है नहीं तो भारत माता की जो जय न बोले गाय जिसकी माता ना हो वो हमारे भाई कैसे फिर भी हम हिन्दू मुस्लिम भाई भाई चिल्लाते रहते हैं। क्या स्वतंत्र भारत की शिक्षा निति, जिसने भारत को कभी विश्वगुरु बनाया वैसा होना चाहिए या मुल्लो-मौलवियों, वामपंथियों, अंग्रेजो का गुणगान करने वाली होनी चाहिए ?
तो यह निबंध आपको कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया इस निबंध के अंत में कमेंट बॉक्स में अवश्य दे. आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए मार्गदर्शन सामान हैं. आपके प्रतिक्रिया से हमें प्रेरणा मिलेगी और हम ऐसे ही प्रेरक लेख और कहानियाँ हमेशा खोज-खोज के आपके लिए लाते रहेंगे.
सुरेश गंगवार
आपका लेख बहुत बढ़िया है झूट से पर्दा उठता है पता चलता है कैसे चंद लोगों ने निजी स्वार्थ के लिए इतिहास से छेड़छाड़ की है
Unknown
भाई साहब मैं अपना पुरा जीवन इस काम को करने के लिए सबकुछ त्याग कर सकता हुँ जो आपने लेख लिखा वह कडवा सत्य है अगर यही लेख पर 2024 का चुनाव लडा जायें तो देश में भुचाल आ जाएगा मैं आपसे अनुरोध करता हुँ की आप जिस काम मैं मुझे लगायेगें मैं उस काम मैं तन मन धन करम वचन से निभाउगा मेरा वाटसाप नंबर 8005698849 हैं धन्यवाद
kalpesh patel
bahut hi badiya lekh hain..jitni tarif kare kum hai