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यदि गाँधी या नेहरू चाहते तो टल सकती थी भगत सिंह की फाँसी।

mahatmagandhi and nehru can save bhagat singh
M.K. Gandhi and Sardar Bhagat Singh


Bhagat Singh
– जब “बिना खड़ग बिना ढ़ाल” भारत जैसे बड़े देश को अज़ादा कराया जा सकता हैं तो भगत सिंह की फाँसी रुकवाना कौन सा बड़ा पहाड़ था ? कही जानबूझकर चुप हो गए या अंग्रेजो को भीतरी सहमती देकर फाँसी दिलवाया जैसे चंद्रशेखर आज़ाद को मरवाया? बहुत से प्रश्न हैं जो चिल्ला चिल्ला कर कहते हैं

भारत आज़ाद हैं यह सबसे बड़ा मजाक हैं. 

स्वतंत्रता अहिंसा का नहीं सुभाष बाबू भगत सिंह जैसे लाखो क्रांतिकारियों के बलिदान का परिणाम हैं. इन सभी क्रांतिकारियों को एक षड्यंत्र के तहत भुला दिया गया ताकि इन महान क्रांतिकारियों के विचार को आम जनता तक जाने से रोका जाए. इनमें से कई ऐसे क्रांति कारी थे जिनका बहुत दुखद अंत हुआ 1947 में मिली कथित आज़ादी के बाद क्या इन क्रांतिकारियों पर जुल्म होना चाहिए था नहीं? लेकिन इनके साथ बहुत बुरा हुआ.
कोई क्रन्तिकारी जिन्होंने आजीवन काला पानी का सजा काटा उसने आज़ादी के बाद भी सड़क पर फूल बेच के(नीरा नागिन) या स्टेशन किनारे चाय बेच के लाल किला के काल कोठरी में बंद होके वीर सावरकर  भारत की आज़ादी को देखा। कैसा आज़ादी ?  

क्रांतिकारियों के सपने का भारत अभी अधूरा हैं इन राष्ट्रवादियों के सपने का भारत अभी अधूरा हैं. आज़ादी अभी अधूरी हैं – श्री अटल बिहारी वाजपयी जी के कविता के अंश 

तो इन्हीं महान क्रांतिकारियों में से प्रमुख भगत सिंह के जीवन से जुड़ी और उनके फाँसी को टालने के लिया महामना मदन मोहन मालवीय जी के प्रयासों पर प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं.

भगत सिंह के जन्मदिन की तारीखों पर बुद्धिमानो का अलग अलग मत हैं वैसे भगत सिंह का जन्म दिन 28 सितम्बर 1907 को मनाया जाता हैं लेकिन कुछ विद्वानों का कहना हैं की उनका जन्मदिन 19ऑक्टूबर 1907 हैं।
भगत सिंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद व दल के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भारत से ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेकने के लिए अपना अभूतपूर्व योगदान दिया हैं।

प्रारंभिक जीवन परिचय :-


भगत सिंह का जन्म लायपुर जिले के बंगा नामक गाँव में हुआ था जो अब पकिस्तान में हैं। भगत सिंह  का जन्म  एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिंह का परिवार उनके जन्म से पहले से ही आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था और जेल की सजा भी काटि थी।

भगत सिंह के चाचा अजित सिंह और श्वाना सिंह भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई पहले से ही लड़ रहे थे। वे दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित ग़दर पार्टी के सदस्य थे जिसके चलते भगत सिंह बचपन से ही क्रन्तिकारी विचार धारा के थे। उनसे जुडी उनके बचपन की एक कहानी बहुत प्रिसद्ध हैं एक बार भगत सिंह खेतो में कुछ कर रहे थे उनके चाचा ने देखा तो पूछा ओए भगत की कर रिया हैं ? भगत ने बड़े ही गंभीर स्वर में जवाब दिया “बन्दुक बो रहा हूँ अंग्रेजो के खात्मे के लिए।”13 अप्रैल 1919 के जलियावाला घटना ने उनको बहुत ही प्रभावित किया।

gandhi can save bhagat singh
Sardar Bhagat Singh

भगत सिंह मात्र 12 वर्ष के थे जब जलियावाला बाग़ कांड हुआ था वो अपने घर से लगभग 15 किलोमीटर से ज्यादा पैदल चल कर जलियावाला बाग़ पहुंचे थे। खून से भरे बगीचे को देख कर उनका मन क्रोध और प्रतिशोध से भर गया। उस समय तक वो गाँधी जी के अहिंसावादी विचारो के पक्षधर थे लेकिन असहयोग आंदोलन वापस लेने के कारण भगत सिंह ने गाँधी का अहिंसात्मक आंदोलन छोड़ हिंसात्मक आंदोलनों से जुड़ने का निर्णय लिया। फिर उन्होंने जुलूसों में भाग लेने लगे और क्रन्तिकारी डालो के सदस्य बने। उनके दल के प्रमुख क्रांतिकारियों में से चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु, इत्यादि थे।

काकोरी काण्ड:-

जलियावाला घटना से आहात भगत सिंह अंग्रेजो से युद्ध करने के लिए चंद्रशेखर द्वारा गठित ग़दर पार्टी के सदस्य बने। उसके बाद भगत सिंह चनद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर अंग्रेजो खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया तथा क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए ,अंग्रेजो से युद्ध करने के लिए, हथियार जुटाने के लिए अंग्रेजो का खजाना लूटने की योजना बनाई। 
फिर 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर पुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर ट्रेन को काकोरी नामक एक छोटे स्टेशन पर उस ट्रेन में रखे अंग्रेजो के खजाने को सफलता पूर्वक लूट लिया गया। काकोरी स्टेशन पर इस घटना को अंजाम दिया गया था इसीलिए इसे काकोरी काण्ड के नाम से जानते हैं।  
23 मार्च 1931 को शाम करीब 7:33 में भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फाँसी दी गई
23 मार्च 1931 को शाम करीब 7:33 में भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फाँसी दी गई

काकोरी घटना में चंद्रशेखर तिवारी और भगत सिंह के अलावा राम प्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु आदि क्रन्तिकारी भी सम्मिलित थे। इस घटना के बाद अंग्रेजो का ग़दर दल के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज हो गई जिससे बचने के लिए भगत सिंह और सुखदेव लाहौर चले गए। 
लाहौर में उनके चाचा अजित सिंह ने उनकी शादी करनी चाही लड़की भी देख ली थी लेकिन भगत सिंह को शादी नहीं करनी थी उन्होंने कहाँ मेरी शादी आज़ादी से हो गई हैं आज़ादी ही मेरी दुल्हन बनेगी। भगत सिंह को फिल्म देखना और मिठाई खाना बहुत पसंद था। जब भी मौका मिलता वो राजगुरु और यशपाल के साथ फिल्म देखने चले जाया करते थे। इस आदत पर उनलोगो कई बार अपने गुरु चंद्रशेखर आज़ाद की नाराजगी भी उठानी पड़ती थी।

लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध :-

पुरे भारत में इस साइमन कमीशन जोरदार विरोध होना शुरू हो गया सड़के जाम हो गई। गरम दल के नेता लाला लाजपत राय  की मृत्यु इन्ही आंदोलनों में अंग्रेजो के लाठी खाने से हो गई। जिससे की चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु, भगत सिंह उग्र हो गए। 

इस साइमन कमीशन जिसका विरोध पूरा भारत कर रहा था भीमराव आंबेडकर इस साइमन कमीशन के बहुत बड़े समर्थक थे और अंत समय तक उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद के विरुद्ध साइमन कमीशन के लिए कार्य करते रहे। लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए भगत सिंह, राजगुरु, और चंद्रशेखर आज़ाद ने एक गुप्त योजना बनाई जिसमे पुलिस अधिकारी जिसके लाठियों से लाला लाजपत राय की मृत्यु हुई थी उसकी हत्या की योजना बनी। 

पुलिस सुपरिटेंडेंट सांडर्स  की हत्या:-

अपनी गुप्त योजना के तहत भगत सिंह और राजगुरु लाहौर पुलिस मुख्यालय के सामने टहलने लगे उधर जयगोपाल अपनी साईकिल ठीक करने के बहाने सांडर्स के आने का इन्तजार करने लगे और चंद्रशेखर आज़ाद रक्षक बन वही स्कूल के पास खड़े थे।  जैसे ही जयपाल ने सांडर्स के आने का इशारा किया  राजगुरु सचेत हो गए और 17 दिसम्बर 1928 को शाम सवा चार बजे लाहौर कोतवाली आ रहे पुलिस सुपरिटेंडेंट सांडर्स को गोली मार हत्या कर दी।  
Bhagat Singh in action
Bhagat Singh in action
पहला गोली राजगुरु ने चलाया जो सीधे सांडर्स के सर पर लगी वह वही गिर पड़ा फिर भगत सिंह ने 3-4 गोली और मारकर सांडर्स की मृत्यु सुनिश्चित कर दी। गोली मारने के बाद दोनों वह से तेजी से निकलने लगे तभी एक पुलिस उनको पकड़ने के लिए दौड़ा पास पे खड़े चंद्र शेखर आज़ाद ने अपनी बन्दुक निकली और उस पुलिस पर तानते हुवे बोले की रुक जा नहीं तो गोली मार दूँगा लेकिन वह नहीं रुका और चंद्र शेखर आज़ाद ने उसको गोली मार दी।  
सांडर्स की हत्या के बाद अंग्रेजो का अत्याचार और बढ़ने लगा भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद के विचारो को दबाने का प्रयास होने लगा। जिस वजह से भगत सिंह ने अपनी आवाज अंग्रेजो तक पहुँचाने के लिए एक और योजना बनाई।  
क्रन्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली में अंग्रेजो के सेंट्रल एसेम्ब्ली में बम और पर्चियाँ फेकि। इस बम में न ही किसी मृत्यु हुई और ना ही किसी को चोट लगी। इन पर्चियों पर साइमन कमीशन वापस जाओ,अंग्रेजो भारत छोडो इंकलाब जिंदाबाद आदि राष्ट्रवादी विचार लिखे गए थे।  
Real image of bhagat singh
Real Image of Bhagat Singh
उसके बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया भगत सिंह लगभग दो साल में जेल में रहे। 26 अगस्त 1930 को लाहौर अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302, तथा आईपीसी धरा 120 के तहत भगत सिंह को  अपराधी सिद्ध किया।  7 सितम्बर को भगत सिंह के साथ राजगुरु और सुखदेव को भी फॉंसी की सजा सुनाई गईं।  सजा सुनाते ही लाहौर में 144 धारा लगा दिया गया था। 
भगत सिंह लगभग 2 साल जेल रहे। इस दौरान उन्होंने कई लेख लिखे और अपने क्रन्तिकारी विचारो को  लेखों के माध्यम से व्यक्त किया। भगत सिंह एक क्रन्तिकारी देशभक्त ही नहीं एक अध्यनशील विचारक, लेखक, संपादक भी थे। उन्होंने ‘अकाली’ और ‘कीर्ति’ नामक दो अखबारों का संपादन भी किया। भगत सिंह को कई भाषाओ जैसे उर्दू, हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, पंजाबी आदि भाषाओ का ज्ञान था। जेल में भी उनके अध्यन अध्यापन का कार्य जारी रहा और उन्होंने विश्व के कई प्रसिद्ध क्रांतिकारियों की जीवनी पढ़ ली थी। 
Bhagat Singh in prison
Bhagat Singh in prison 

पंडित मदन मोहन मालवीय ने सजा माफ़ करने के किये थे प्रयास :-

  भगत सिंह और उनके साथियों की फाँसी की सजा माफ़ करने की जनता के कई  गई लेकिन सभी अर्जियों को रद कर दिया गया उसके बाद। पंडित मदन मोहन मालवीय ने तत्कालीन वायसराय के पास भगत सिंह और उनके साथियो की फाँसी की सजा माफ़ी के लिए एक अर्जी लगाई।  उसके बाद तत्कालीन वायसराय ने पंडित जी से कहा की आप काम से काम 20 कांग्रेसी नेता से इस अर्जी पर साइन करा लाइए हम फाँसी सजा माफ़ कर देंगे।  

पंडित मदन मोहन उस को लेकर गांधी जी और नेहरू जी के पास गए लेकिन किसी ने भी पंडित जी की एक न सुनी और उस पर साइन करने से मना कर दिया साथ ही जो साइन करता पार्टी से उसको भी निकाल देने इशारा मिल गया। पंडित जी को  साइन नहीं मिला। भगत सिंह अपने कारनामो से पुरे भारत में बहुत ही प्रसिद्द हो  चुके थे यदि वो जिन्दा बचते तो नेहरू और गाँधी को अपनी प्रसिद्धि और पद खोने का डर था। 

और अंत में 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7:33 में भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फाँसी दी गई । फाँसी पर जाने से पहले भगत सिंह ‘बिस्मिल’ की जीवनी पढ़ रहे थे। फाँसी पर जाते समय भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव तीनो पुरे जोश से ‘मेरा रंग दे बसंती चोला , माय रंग दे बसंती चोला ‘ गाना को गाते जा रहे थे। 

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