सावन के अगले ही महीने भाद्रपद में पितृ पूजन का उत्सव शुरू हो जाता हैं जिसमे हिन्दू अपने मृत पूर्वजो की पिंड दान कर पूजा करते है और उनके आत्मा की शांति की कामना करते हैं। १५ दिनों तक चलने वाल यह पर्व अपने आप में बहुत ही ख़ास हैं। इस पर्व के बितते ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाती हैं।
नवरात्र के पहले दिन से माँ शक्ति के नव रूपों की पूजा नौ दिनों तक की जाती हैं इस अवसर पर माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमा का पूरी श्रद्धा से निर्माण किया जाता हैं और महिसासुर नामक राक्षस के माता दुर्गा के हाथों वध को याद किया जाता हैं। नौ दिनों तक चलने वाल यह पर्व बहुत धूम धाम से मनाया जाता हैं। महिसासुर का वध करते हुवे शक्ति स्वरुप माँ दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण होता हैं और पुरे नौ दिनों तक शक्ति के नौ रूपों की विधि पूर्वक पूजा होती हैं। महिसासुर का वध करने के कारण माँ दुर्गा को महिषासुरमर्दिनि भी कहा जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने भी रावण वध से पहले त्रेतायुग में शारदीय नवरात्र के नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा की थी और विजय होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। फिर विजयदशमी को रावण का वध किया था।
शारदीय नवरात्र के एकम से ठीक दसवे दिन विजयादशमी या दशहरा उत्सव मनाया जाता हैं जिस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने रावण का वध किया था। शारदीय नवरात्र से दसवे दिन पर मनाये जाने के कारण दशे दशहरा कहा जाता हैं। दशहरा कब आ रहा हैं आसानी से इसे याद रखा जा सके साथ ही असत्य पर सत्य की विजय के प्रतिक इस उत्सव को पुरे हर्षो उल्लास के साथ मनाया जा सके। विजयादशमी के शुभ अवसर पर पुरे भारत में कई जगह विश्व प्रसिद्ध रामलीला का आयोजन हैं। इस दिन शस्त्र पूजन का भी विशेष महत्व हैं।