कोलकता उस समय युवा क्रांतिकारियों का केंद्र बन चूका था और धर्मांतरण मुख्य रूप से क्रांतिकारियों के लिए गहरी चिंता का विषय था। कोलकत्ता विश्वविद्याल के हॉस्टल में ऐसे कई युवा क्रांतिकारी रहते और पढाई करते थे। एक दिन अग्रेजो को शक हुआ की कुछ क्रन्तिकारी हॉस्टल में भी रहते हैं फिर अंग्रेजो ने बिना किसी चार्ज इन हॉस्टल के सभी छात्रों को जेल में ठूस दिया .
इन सभी युवा छात्रों में एक छात्र ऐसा था जो सामान्य मारवाड़ी परिवार से शिक्षा ग्रहण करने आया था उसका इससे पहले राजनितिक या क्रांति में कभी कोई हअनुभव नहीं था। दादीमाँ के द्वारा संस्कारित यह छात्र पूरी तरह से धार्मिक और हनुमान जी का भक्त था। लेकिन जेल में क्रांतिकारियों के साथ बिताए गए पल ने इस छात्र के दिल और दिमाग पर गहरा छाप छोड़ा जिसने आने वाले समय में भारत में एक बौद्धिक सांस्कृतिक क्रांति को जन्म दिया। जेल क्रांतिकारियों के विचारो के प्रभाव से ही उस छात्र का हृदय परिवर्तन हुआ और फिर वह भारत को सांस्कृतिक आज़ादी दिलाने के क्रांति में कूद पड़ा
Hanuman Prasad Poddar ji |
गीता प्रेस सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में एक प्रसिद्ध प्रेस है जिसका अपना एक ब्रांड वैल्यू हैं। गीता प्रेस के संस्थापक कोई और नहीं कोलकत्ता विश्वविद्यालय के हॉस्टल का वही छात्र था जिसे सभी छात्रों के साथ जेल में ठूस दिया गया। बड़ा हो कर मारवाड़ी परिवार में जन्मे वह छात्र व्यवसाय छोड़ धर्म कार्य में लग गया। गुलामी काल में भी घर घर तक गीता प्रेस के माध्यम से गीता, रामायण, महाभारत, पुराणों, वेदो, ऋषियों की लिखी अनेक प्रेरक रचनाओं को पहुँचाया और ईसाई साहित्यो के षड्यंत्र का अंत किया।
वह छात्र कोई और नहीं हनुमान प्रसाद पोद्दार थे जिन्होंने विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस की नीव रखी और आज भी घर घर गीता रामायण आदि ग्रंथो को पहुँचाने का कार्य उनकी प्रेरणा से और बताए गए रास्तो पर चल कर गीता प्रेस कर रही हैं। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का जन्म 17 सितम्बर 1892 एक मारवाड़ी परिवार में हुई थी। जब वो मात्र दो साल के उम्र के थे तब माँ का साया सर से उठ गया, जिस कारण हनुमान प्रसाद पोद्दार के पालन पोषण की सारी जिम्मेदारी उनकी दादीमाँ पर आ गई थी। हनुमान प्रसाद का पालन पोषण उन्होंने बहुत ही सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से कीया जिस वजह से मारवाड़ी परिवार में जन्मे हनुमान प्रसाद पोद्दार बचपन से ही बहुत धार्मिक और हनुमान भक्त थे। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के माता का नाम रिखीबाई तथा पिताजी का नाम लाला भीमराज अग्रवाल था। पोद्दार जी के माता-पिता दोनों बहुत बड़े हनुमान भक्त थे इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम हनुमान रखा।
उस समय के मारवाड़ी प्रचलन के अनुसार हनुमान प्रसाद पोद्दार का विवाह कम उम्र में ही हो गया और पत्नी को माँ बाप के पास छोड़ वो काम धंधा सिखने कोलकता चले गए जहाँ उनकी गिरफ्तारी हुई और वो फिर क्रांतिकारी गतिविधियों में जुट गए तथा बाइबिल के बराबर गीता को भी घर घर पहुँचाने का मन बनाया।
जेल से छूटने के बाद काम धंधे के सिलसिले में पहले तो मुंबई चले गए लेकिन उनका मन किसी बड़े धार्मिक कार्य की तरफ आकर्षित हो रहा था। मुंबई में रहते हुवे उन्होंने मारवाड़ी खादी प्रचार संघ की स्थापना की उसके बाद वो प्रसिद्ध संगीताचार्य विष्णु दिगंबर सत्संग में भी आये उनके ह्रदय में संगीत का झरना बाह निकला भक्ति गीत लिखे जो ‘पत्र-पुष्प’ के नाम से प्रकशित भी हुवे। उनका गीता के प्रति प्रेम और लोगो का गीता के प्रति जिज्ञासा को देखते हुवे उन्होंने निश्चय किया की वो कम से कम लागत पर घर घर इस परम पुष्तक को पहुंचाने का कार्य करेंगे।
yogi aaditynaath naath sampraday head |
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