परन्तु सनातन लोग ऐसा नहीं सोचते या ऐसा उनके पूर्वजो ने नहीं बताया हैं। सनातन लोगो का विचार यह हैं की इस फिजिकल बॉडी के अलावा भी एक एनर्जी हैं जो इस फिजिकल बॉडी के अंगो को चला रही हैं इस एनर्जी से ही दिमाग और धड़कन को शक्ति मिलती हैं लेकिन यह एनर्जी कभी मरती नहीं हैं फिजिकल बॉडी मरती हैं। “मै नहीं मरा मेरा शरीर मरा।”
ऊर्जा का कभी अंत नहीं होता मनुष्य अपने विवेक से इस एनर्जी को बस ट्रांसफॉर्म कर पाता हैं। हमारे कई ग्रंथो में कितनी ऐसी कहानियाँ हैं की हमारे ऋषि मुनि इस एनर्जी को भली प्रकार जान चुके थे उन लोगो ने इस एनर्जी का सम्पूर्ण कण्ट्रोल सिद्ध कर लिया था।
A hindu performing pitra puja |
आत्मा कर्मो के फल के बंधन से बंधी हैं आत्मा शरीर द्वारा जिन कर्मो में संलिप्त रहता हैं उसी अनुसार फल रूपी शरीर मिलता है या पुण्य कर्म की अधिकता पर मोक्ष या शरीर बंधन या जन्म-मृत्यु बंधन से मुक्ति मिलती हैं। नाली के कीड़ो वाला कर्म नाली के कीड़े की योनि दिलाता हैं साधू वाला कर्म फल बंधन से मुक्ति या मोक्ष दिलाता हैं।
सब कर्म के फल पर निर्भर हैं यह एनर्जी, शक्ति या आत्मा कभी मरती नहीं बस कर्म के फलो अनुसार शरीर बदलती रहती हैं जैसे हम कपडे बदलते हैं वैसे ही आत्मा शरीर बदलती हैं। जब आत्मा मरती ही नहीं और जीवन भौतिक शरीर का और आत्मा का योग हैं तो वास्तव में कोई कभी मरता कहा हैं ? वह तो उसका शरीर काम लायक नहीं रहता, एक्सपायर हो जाता हैं। वह तो हैं बस उसका भौतिक शरीर ना रहा।
A hindu performing pitra puja |
अब कर्म फल के अनुसार मुक्ति पायेगा या फिर किसी योनि में भौतिक शरीर धारण करेगा। इसी सत्य को ऋषि मुनियों ने पुनर्जन्म कहा आत्मा के द्वारा शरीर बदलना ही पुनर्जन्म कहलाता हैं। ठीक इसी अवधारणा के तहत सनातन हिन्दू अपने पितृ लोगो के आत्मा की मुक्ति के लिए पूजा करते हैं। आत्मा द्वारा मुक्ति मिलने में या दूसरा शरीर मिलने में कर्म के फल के अनुसार कुछ समय लग भी सकता हैं अपने कर्मो के अनुसार आत्मा कुछ समय के लिए स्वर्ग तो कुछ समय के लिए नर्क में रहती हैं कभी कभी कर्मानुसार आत्मा प्रेत योनि में भी प्यासा तड़पती रहती हैं।
यह एनर्जी, शक्ति या आत्मा, शरीर द्वारा जैसा कर्म करती हैं वैसा ही गति को प्राप्त होती हैं। विज्ञान में भी न्यूटन ने एक सिद्धांत दिया जिसका नाम हैं ‘गति का नियम’ जिसका तीसरा और आखिरी नियम भी यही कहता हैं “Every action has a equal reaction.” हम भारतीय इस नियम को बहुत ही सरल रूप में जानते हैं “जैसी करनी वैसी भरनी ” .
कर्म का फल तो मिलता ही हैं लेकिन पुण्य कर्म करके, पूजा करके, भक्ति करके, अच्छे फल सुनिश्चित किया जा सकता हैं इसलिए हर एक पुत्र का कर्तव्य हैं की वो अपने पिता के भौतिक शरीर के मृत्यु के बाद भी उनके आत्मा के उच्च गति के लिए मुक्ति के लिए वह पुत्र अपने पितरो की पूजा करे। जिससे की उनके आत्मा को शांति मिले यदि वह प्रेत योनि में हो तो तर्पण द्वारा उनकी प्यास बुझाया जा सके।
पुत्र ही क्यों ? क्युकी पिता के गुण ही पुत्र में आते हैं पिता के आत्मा के कुछ अंश पुत्र में ही होते हैं। पुत्र के हाथो की गई पूजा, पुत्र के हाथो श्रद्धा पूर्वक अर्पित किया गया जल पितृ को प्राप्त होता हैं यह बहुत ही सूक्ष्म विज्ञान हैं बहुत ही गूढ़ हैं। भौतिकता के पैमाने पर इस विज्ञान को अभी तक डिटेक्ट नहीं किया जा सका हैं।
इसीलिए हमें अपने पितरो की पूजा करनी चाहिए खास कर पितृ पक्ष के समय क्युकी इस समय पितृ एनर्जी का लेवल अलग होता हैं। पितृ पक्ष में किया गया विधि पूर्वक पूजा शुभ फलो को प्रदान करने वाला होता हैं। यदि पितृ खुश तो आपका जीवन भी खुश आपके बच्चे भी खुश।
पितृ ऋण को चुकाने का सबसे सुगम मार्ग यह हैं की यदि आपके पिताजी, दादाजी या परदादाजी जो भी जीवित हैं तो पूरी ईमानदारी और धर्मानुसार उनकी सेवा करें और जो पितृ(पूर्वज) शरीर छोड़ चुके हैं उनकी आराधना और पूजा अवश्य करें।
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